"हाथी गिरा तो सदियों-सदियों की गुलामी एक बार फिर तोहफे में मिल जाएगी।"
बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 18 मार्च 1956 को आगरा के रामलीला मैदान में अत्यंत दुःखी मन से कहा था—
"हमारे समाज के पढ़े-लिखे लोगों ने हमें धोखा दिया है। वे उच्च पदों पर आसीन होकर भी अपने गरीब और शोषित भाई-बहनों के लिए कुछ नहीं करते।"
यह दुःखद मानसिकता 68 वर्षों बाद भी बनी हुई है। बाबासाहब के सपनों के अनुसार एक सशक्त राजनीतिक दल की स्थापना तो 3 अक्टूबर 1957 को RPI के रूप में हुई, लेकिन स्पष्ट दृष्टिकोण की कमी के कारण यह सफल नहीं हो सका। 1958 से ही मनुवादी शक्तियों (विशेष रूप से कांग्रेस) ने इसे विभाजित करना शुरू कर दिया।
मान्यवर कांशीराम जी का योगदान
मान्यवर कांशीराम जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक चमचा युग में इस विघटन पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया कि बाबासाहब के जाने के बाद SC नेतृत्व दो भागों में बंट गया:
1. प्रत्यक्ष चमचे: वे जिन्होंने कांग्रेस या अन्य दलों से सीधे संबंध बनाकर व्यक्तिगत स्वार्थ साधना उचित समझा।
2. अप्रत्यक्ष चमचे: वे जिन्होंने बाबासाहब के नाम से छोटे-छोटे संगठन बनाकर अप्रत्यक्ष रूप से इन्हीं दलों की सेवा की।
कांशीराम जी ने समाज के नेताओं को दो श्रेणियों में विभाजित किया:
1. बंदर नेता: जो बार-बार दल बदलते हैं और केवल निजी स्वार्थों के लिए काम करते हैं।
2. केंकड़ा नेता: जिनका एकमात्र काम अपने समाज के नेताओं की टांग खींचना है।
इन नेताओं को पहचानकर समाज के सामने नंगा करना अत्यंत आवश्यक है।
BAMCEF का विघटन और कांग्रेस की साजिश
1984 में DS4 (जो बाद में 14 अप्रैल 1984 को BSP बनी) ने चुनाव लड़कर कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाया। इसके बाद राजीव गांधी की अध्यक्षता में अरुण सिंह, एस. बी. चव्हाण, और अरुण नेहरू की एक समिति बनाई गई, जिसका उद्देश्य BAMCEF को समाप्त करना था।
पंजाब से इस विघटन की शुरुआत हुई। BAMCEF के अलग-अलग गुट जैसे—गंगवाने ग्रुप, डीके खपड़े ग्रुप, और वामन मेश्राम ग्रुप अस्तित्व में आए। इनमें से कई गुटों ने मान्यवर कांशीराम जी का सदा विरोध किया, परंतु उनके जाने के बाद उन्हें अपना लिया और BSP के कट्टर विरोधी बन गए।
वर्तमान परिदृश्य
आज BSP का विरोध तीन प्रकार के नेता कर रहे हैं:
1. पुराने BAMCEF गुट: जो कांग्रेस द्वारा तोड़े गए थे और अब कांशीराम जी की विरासत का नाम लेकर मायावती जी के विरोधी बने हुए हैं।
2. BSP से निकाले गए नेता: ये नेता कभी एक दल तो कभी दूसरे दल में जाते हैं (स्वामी प्रसाद मौर्य इसका ताजा उदाहरण हैं)।
3. Appropriated Chamchas: जो कांग्रेस और भाजपा जैसे दलों द्वारा पालित-पोषित हैं।
इन नेताओं का उद्देश्य BSP को कमजोर करना है, न कि मनुवादी दलों से लड़ना।
समापन
"हाथी अकेले मनुवादी दलों से तो लड़ ही रहा है, पर साथ ही मनुवादी दलों द्वारा पैदा किए गए चमचों से भी। जीत किसकी होगी, यह समय बताएगा। पर याद रहे—हाथी गिरा तो सदियों की गुलामी फिर तोहफे में मिल जाएगी, और चमचों का खेल भी खत्म हो जाएगा।"
जय भीम, जय भारत!
डॉ. केहर सिंह
सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता, पूर्व राज्य अध्यक्ष (BSP हिमाचल प्रदेश), वैज्ञानिक (US & Canada)
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