माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा अभी हाल ही में आदेश पारित किया गया है कि सिविल जज के पद पर नियुक्त होने के लिए 3 वर्ष के विधि व्यवसाय की योग्यता अनिवार्य है।
""संक्षिप्त टीका - 571""
माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा अभी हाल ही में आदेश पारित किया गया है कि सिविल जज के पद पर नियुक्त होने के लिए 3 वर्ष के विधि व्यवसाय की योग्यता अनिवार्य है।
अर्थात अब किसी अभ्यर्थी को सिविल जज के पद पर नियुक्त होने के लिए 3 वर्ष के विधि व्यवसाय की योग्यता अनिवार्य हो गई है विधि की उपाधि धारण करने के बाद उसे संबंधित स्टेट बार काउंसिल का सदस्य के रूप में पंजीकरण अनिवार्य होगा।
हालांकि माननीय उच्चतम न्यायालय का फैसला कुछ दृष्टिकोण से सराहनीय है तथा नवीन अभ्यर्थियों के हितों पर कुठाराघात के समान साथ ही कभी खुशी कभी गम के समान है जिसका कोई लॉजिक समझ में नहीं आता है जब इच्छा हुई 3 वर्ष विधि व्यवसाय अनिवार्य जब इच्छा हुई 3 वर्ष विधि व्यवसाय अनिवार्य नहीं।
जब किसी अभ्यर्थी के सिविल जज के पद पर नियुक्ति होने के बाद उसे 1 वर्ष तक निरंतर गहन प्रशिक्षण दिया जाकर उसे बोर्ड प्रदान किया जाता है तो ऐसे स्थिति में यदि कोई वास्तविक कमी रह रही है तो उसके प्रशिक्षण देने के तौर तरीके में है जिसमें सुधार की आवश्यकता है न कि 3 वर्ष के विधि व्यवसाय की अनिवार्य योग्यता करने की ।
आजादी के बाद से लेकर मध्यप्रदेश का गठन वर्ष 1956 में हुआ था अभी तक प्राप्त जानकारी अनुसार मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में केवल 3 बार की भर्ती परीक्षाओं में अर्थात 1997, 2000 एवं 2003 में ही 3 वर्ष के विधि व्यवसाय के अभ्यर्थियों की नियुक्ति की गई जबकि इन 9 वर्ष के दौरान हुई नियुक्तियों को छोड़ दिया जाए तो लगभग 60 वर्षों तक बिना 3 वर्ष के विधि व्यवसाय के अनुभव के बिना अभ्यर्थियों नियुक्ति की गई क्या विगत 60 वर्षों में जो जज नियुक्त किए गए क्या उनके फैसले में कोई दोष रहा इसका उत्तर भी कही न कहीं ढूंढने की आवश्यकता है तथा इस पर भी चिंतन की गहन आवश्यकता है।
आजादी के बाद से लेकर वर्ष 1997 तक बिना किसी 3 वर्ष के विधि व्यवसाय की योग्यता के केवल प्रारंभिक ऑब्जेक्टिव परीक्षा लेकर उसे सिविल जज बना दिया जाता था समय के साथ परिवर्तन हुआ और 1996 के बाद मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया कि किसी विधि उपाधि धारण करने वाले व्यक्ति को 3 वर्ष के विधि व्यवसाय की योग्यता अनिवार्य है तथा यह परंपरा वर्ष 1997 से लेकर 2003 तक चली और उसके बाद आगामी आने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में 3 वर्ष के विधि व्यवसाय की योग्यता को शिथिल कर दिया गया तथा यह भी कहा गया कि जो अभ्यर्थी एलएलबी अंतिम वर्ष में अध्ययनरत है वे भी सिविल जज की परीक्षा में शामिल होकर सिविल जज बन सकते है।
अभी कुछ वर्षों पूर्व मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा नियमों में संशोधन कर कहा गया कि 3 years practice or 70% marks in bachelor’s degree mandatory for Civil Judge exam: इस नियम को MP High Court में चुनौती दिए जाने प उसे संवैधानिक करार दिया गया अर्थात मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित सिविल जज के पद हेतु आयोजित की जाने वाली परीक्षा में उक्त नियम के तहत वही अभ्यर्थी पात्र होगा जिसके लॉ की डिग्री में 70 प्रतिशत अंक हो या फिर 3 वर्ष के विधि व्यवसाय की योग्यता हो।
अब देखना यह है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह स्पष्ट कह दिया गया है कि सिविल जज के पद पर नियुक्त होने के लिए 3 वर्ष के विधि व्यवसाय की योग्यता अनिवार्य है ऐसे स्थिति में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा जो नियम में परिवर्तन किया गया है क्या ऐसे अभ्यर्थी भी सिविल जज की परीक्षा में शामिल हो सकते है जिनके पास 3 वर्ष के विधि व्यवसाय की योग्यता न हो किंतु उनके विधि की उपाधि प्राप्त करने में 70 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हो। हालांकि अभी मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा स्वयं के नियमों में परिवर्तन किया गया हो ऐसी कोई अधिकृत जानकारी नहीं है किंतु विधि की उपाधि प्राप्त करने में 70 प्रतिशत अंक यदि प्राप्त किए हो तो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में वह सिविल जज के पद हेतु उपयुक्त माना जावेगा या नहीं यह प्रश्न भी अभी काल के गाल में छुपा हुआ है, जबकि माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा मालिक मजहर सुल्तान के फैसले में स्पष्ट कर दिया गया तथा कहा गया है सिविल जज से लेकर अपर जिला जिला न्यायाधीश की नियुक्ति बनाए गए टाइम टेबल अनुसार होना चाहिए किंतु हमारे देश की न्यायपालिका का एक तरह से दुर्भाग्य हो गया है माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश में वर्णित बात याने गधे की लात। अर्थात यह कहे जाने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस देश के माननीय सुप्रीम कोर्ट के माननीय जस्टिस महोदय ही अपने आदेश का पालन इस देश में नहीं करवा पा रहे है वैसे तो छपास कार्यक्रम के तहत मीडिया में बड़ी बड़ी डींगे हांकते है किंतु वही ढांक के तीन पात।
वही दूसरी और आईएएस तथा आईपीएस, आईएफएस की जब नियुक्ति की जाती है तो उसमें केवल बैचलर डिग्री प्राप्त व्यक्तियों की नियुक्ति की जाती है अर्थात उन्हें प्रशिक्षण देकर प्रशिक्षित किया जाता है जिससे वे प्रभावी तरीके से पदीय कर्तव्यों का निर्वहन करते है इससे स्पष्ट है कि कहीं न कहीं ऐसे आदेश तुगलकी है या फिर अपनी कमियों को छुपाने का तरीका है अगर यह पाया जा रहा है कि सिविल जज के पदों पर चयनित व्यक्तियों उचित रूप से कार्य कर पाने में अक्षम है तो फिर विगत 60 वर्षो में जो तीन वर्ष के विधि व्यवसाय के बिना जिन जजों द्वारा कार्य किया गया है उसमें क्या कमियां दोष रहा जो विगत 9 वर्षों में 3 वर्ष के विधि व्यवसाय की अनिवार्य योग्यता वाले जजों द्वारा कार्य किया गया उसका तुलनात्मक अध्ययन भी आवश्यक है केवल 3 वर्ष विधि व्यवसाय आवश्यक है यह प्रश्न नहीं है बल्कि पूर्ण रिकॉर्ड के साथ गुण दोषों पर इस प्रश्न का तथ्यात्मक निराकरण आवश्यक है।
जय भारत जय संविधान।
आर.के.श्रीवास
जसेनि जिला न्यायाधीश नीमच
40 जावरा रोड़ रतलाम 457001
9425485815
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