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विषय: समान नागरिक संहिता लागू होने पर देश के SC, ST, OBC वर्गों पर संभावित संवैधानिक प्रभाव

 


*विषय: समान नागरिक संहिता लागू होने पर देश के SC, ST, OBC वर्गों पर संभावित संवैधानिक प्रभाव*

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*भारत एक बहुलतावादी, बहुजातीय और बहुधार्मिक देश है जहाँ संविधान सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की गारंटी देता है। संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य को समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) लागू करने का निर्देश है, जो सभी नागरिकों के लिए समान व्यक्तिगत कानून लागू करने की बात करता है। यद्यपि इसका उद्देश्य सामाजिक समरसता और कानूनी समानता को बढ़ावा देना है, लेकिन इसका प्रभाव अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) पर बहुआयामी और जटिल हो सकता है*

*सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता पर प्रभाव:*

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SC, ST और OBC समुदायों की सामाजिक संरचना, रीति-रिवाज, विवाह परंपराएं, उत्तराधिकार के नियम और स्थानीय परंपराएं भिन्न हैं। समान नागरिक संहिता के तहत यदि एकरूप कानून लागू किए जाते हैं, तो इन समुदायों की विशिष्ट पहचान और सांस्कृतिक विरासत को खतरा हो सकता है। खासकर जनजातीय समुदायों के लिए, जो संविधान की छठवीं अनुसूची या विशेष कानूनों के तहत संरक्षण प्राप्त करते हैं, यह सीधा हस्तक्षेप हो सकता है।

*संवैधानिक अधिकारों और विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप:*

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भारतीय संविधान ने SC/ST/OBC वर्गों को ऐतिहासिक अन्याय की भरपाई के लिए विशेष संरक्षण दिए हैं जैसे कि –

अनुच्छेद 15(4), 16(4): आरक्षण की व्यवस्था

अनुच्छेद 46: शिक्षा और आर्थिक हितों की सुरक्षा

अनुसूचित जनजातियों के लिए भूमि अधिकारों का संरक्षण


यदि UCC के माध्यम से सभी नागरिकों के लिए एकसमान नियम बनाए जाते हैं, तो यह इन विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप के रूप में देखा जा सकता है। यह सामाजिक न्याय की अवधारणा के विपरीत हो सकता है।


*महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक संतुलन:*

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UCC के समर्थक यह तर्क देते हैं कि यह महिलाओं को सभी समुदायों में समान अधिकार देगा। लेकिन SC, ST, और OBC समुदायों में पहले से ही कुछ परंपराएँ महिलाओं के पक्ष में अधिक प्रगतिशील रही हैं, जैसे कि कुछ जनजातीय समुदायों में मातृसत्तात्मक व्यवस्था। यदि ऐसे समुदायों पर भी समान कानून थोपा जाता है, तो यह उन्हें उनके अधिक न्यायसंगत परंपराओं से दूर कर सकता है।

*भूमि और उत्तराधिकार कानूनों पर प्रभाव:*

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अनेक अनुसूचित जनजातीय समुदायों को भूमि स्वामित्व के विशेष अधिकार मिले हैं। कई राज्यों में ST समुदायों की भूमि गैर-जनजातीय को बेची नहीं जा सकती। यदि UCC में उत्तराधिकार या संपत्ति कानूनों को समान किया गया, तो यह पारंपरिक जनजातीय भूमि अधिकारों को कमजोर कर सकता है, और यह समुदाय अपने संसाधनों से वंचित हो सकते हैं।


*राजनीतिक दृष्टिकोण और सामाजिक प्रतिक्रिया:*

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SC, ST और OBC वर्ग लंबे संघर्षों और आंदोलनों के बाद संवैधानिक अधिकार प्राप्त कर पाए हैं। यदि उन्हें यह महसूस हुआ कि UCC के माध्यम से उनकी स्वायत्तता या विशेषाधिकारों को छीनने का प्रयास हो रहा है, तो यह सामाजिक असंतोष, विरोध और व्यापक जन आंदोलन का रूप ले सकता है। इससे सामाजिक सद्भाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

*समान नागरिक संहिता का विचार संविधान के दृष्टिकोण से आदर्श है, लेकिन भारत की विविधता और सामाजिक असमानताओं के यथार्थ को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। जब तक सामाजिक और शैक्षणिक समानता का लक्ष्य हासिल नहीं होता, तब तक UCC जैसे कानूनों को लागू करना कमजोर वर्गों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।*

इसलिए आवश्यकता है –

✔ संवैधानिक संरक्षणों की समीक्षा के बिना कोई निर्णय न लिया जाए।

✔ समुदाय विशेष की राय लेकर चरणबद्ध और समावेशी प्रक्रिया अपनाई जाए।

✔ सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखते हुए UCC का मसौदा तैयार किया जाए।


*समानता का अर्थ यह नहीं है कि सबको एक जैसा बना दिया जाए, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि सबको समान अवसर और गरिमा प्राप्त हो।*


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