*~~ फिर इन्तजार अब किसका है~*
*~~ कुछ आर करो कुछ पार करो~~*
*हम सभी मुसाफिर कुछ पल के, किस ओर ढकेले जायेंगे ?*
*चाहे जितने भी जतन करो, पर सभी अकेले जायेंगे।*
है चार दिनों की चमक, इसे धुंधला हो कर खो जाना है।
पहले भी गुजरे हैं ये पल, चिर निद्रा में सो जाना है।
*फिर इन्तजार अब किसका है, कुछ आर करो कुछ पार करो।*
*सौदागर बन कर आये हो, अब खुल कर के व्यापार करो।*
जो इंसानों के सौदागर, उनको मत आगे बढ़ने दो।
हैं वीर बांकुड़े अभी बहुत, उनको मत शूली चढ़ने दो।
*माना है उनमें नशा धर्म का, चक्कर खाये रहते हैं।*
*उनकी आवाज बुलन्द रहे, कितना बौराये रहते हैं ?*
उद्देश्य तभी होगा पूरा, अब उनको आगे लाना है।
उनको उनके ही हाथों से, उनका ही घर जलवाना है।
*भावना यही तो पनपी है, जिसका है कोई अन्त नहीं।*
*खो गये अनेंकों आँधी में, जिन देखे कभी बसन्त नहीं।*
हम अपने आप नशे में हैं, हम अपने आप जागते हैं।
जब दिशा ज्ञान ही छूटा है, मन चाही दिशा भागते हैं।
*धुंधली धुंधली है शाम अभी, करना है काफी काम अभी।*
*कुछ कदम छिपा कर ही चलना, कर डालेंगे बदनाम अभी।*
अब तो मौसम ही बदल गया, सब छूट गये हैं राहों में।
कुछ सिसक रहे कुछ चीख रहे, कुछ तड़फ रहे हैं बाँहों में।
*ये कष्ट और भी शाल रहे, ये कैसे झेले जायेंगे ?*
*वे धूनी वहीं रमायेंगे, जब तक न ठेले जायेंगे।*
*हम सभी मुसाफिर कुछ पल के, किस ओर ढकेले जायेंगे ?*
*चाहे जितने भी जतन करो, पर सभी अकेले जायेंगे।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
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