बाजार किसका? हम किसान जो भी खेतो मे पैदा करते है उसको दूसरे शहर/राज्य मे भी हम नही भेजते, मंडी भी हमारी नहीं। कृषि उत्पादों को प्रोसेसिंग भी हम नहीं करते।
मूलनिवासी समाज सुबह टूथपेस्ट/टूथपेस्ट से लेकर साबुन, पेन, कॉपी, मोबाइल, कपड़े, जूते, सोने तक जो भी समान चाहिए, सभी बाजार से खरीदते है।
बाजार किसका?
हम किसान जो भी खेतो मे पैदा करते है उसको दूसरे शहर/राज्य मे भी हम नही भेजते, मंडी भी हमारी नहीं। कृषि उत्पादों को प्रोसेसिंग भी हम नहीं करते।
हम क्या खायेंगे? वो भी हम निर्णय नहीं कर रहे। हमे चिंतन करना होगा और अम्ल मे लाना होगा।
हम आर्थिक #गुलाम है।
इससे मुक्त होने के लिए चिंतन और implementation जरूरी है।
धार्मिक रूप से भी सभी मन्दिर/मस्जिद/गिरिजाघरों पर ब्राह्मण का कब्जा है। वहा से हमे की सामाजिक लाभ नहीं। वहा decision सिर्फ ब्राह्मण हिंदू/ब्राह्मण मुस्लिम/ब्राह्मण ईसाई करता है। हम पालन करते है।
ये धार्मिक ग़ुलामी है।
हमें खुद की धार्मिक व्यवस्था खड़ी करनी होगी। चिंतन करना चाहिए।
शिक्षा व्यवस्था मे जिनकी राजनीति होती है उनके हिसाब से इतिहास पढ़ाया जाता हैं। सबसे बड़ा घोटाला इतिहास का हुआ है भारत मे।
चिंतन करें।
जय क्षात्र धर्म। जय मूलनिवासी।
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