वे समझदार लोग थे जो चुप रहे

 


वे समझदार लोग थे जो चुप रहे

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वे

समझदार लोग थे 

जो चुप रहे

वे वर्तमान के कुछ बड़े चुप्पों को जानते थे

चुप के उनके गणित को जानते थे

जानते थे उनके हासिल

जो चुप्पियों का इनाम थे


जो  चुप रहे 

वे समझदार लोग थे

हासिल के जमा-घटा के प्रवीण लोग थे वे

उन्होंने अपने बच्चे देखे

उनके सुख देखे

उनकी तरक्की देखी

उनके लिये सुरक्षित भविष्य चाहा

उन्होंने सुविधा देखी

भौतिक सुखों का पहाड़ खरीदा

उसके ऊपर बैठ खुश होते रहे


उनकी चुप्पी

वर्तमान का गणित थी

और सुरक्षित भविष्य की चाहना थी


भविष्य में उतरते जीवन मे मगर

वे सुखों के पहाड़ के नीचे दबे पाए गए

उनके बच्चे दुनिया के कायर बच्चे साबित हुए

संवेदनाओं की जब सबसे अधिक जरूरत थी  चुप्पों को

तब उनके इर्द गिर्द भीड़ तो थी

संवेदना नही थी

वे भीड़ में घिरे अकेले लोग थे 


वे समझदार लोग थे

जो चुप रहे

उन्होंने बोलने वालों को मूर्ख कहा

लड़ने वालों को आतंकी उपद्रवी विद्रोही देशद्रोही कहा

अंतिम समयों में मगर 

वे बोलने वालों को पढ़ रहे थे 

लड़ने वालों से सीख रहे थे खड़ा रहना 


अपने मायूस दिनों में अकेलेपन में घिरे वे

बोलना चाहते थे

आवाज लेकिन

गले मे दबी रही

और वे

बिना अभिव्यक्त हुए

दुनिया से रुखसत हुए


चुप लोगों का खुद को अभिव्यक्त न कर पाना

उनका सबसे बड़ा दुख था

वे अंतिम समय मे जान पाए

कि जिसे वे समझदारी का गणित कहते थे

दरअसल वह कायरता थी ।

वीरेंदर भाटिया

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