*~~~नहीं झूठ की सीमा कोई~~~*
*~~~~पार न कोई पाया है~~~~*
*जिनकी छाया की ताकत में, सारा देश समाया है।*
*जो भी गुजरा हुआ अपावन, जा कर खूब नहाया है।*
हमसे क्या संघर्ष करेंगे, छाया से डरने वाले।
नहीं रास्ते पर आये तो, बिना मौत मरने वाले।
*भेदभाव की इन्हीं नीतियों ने, ये देश डुबोया है।*
*तंत्र मंत्र से मिला नहीं कुछ, अब तक सब कुछ खोया है।*
शिक्षा हक है सभी मूल का, उससे वंचित करते हैं।
दुनिया वाले समझ गये हैं, ये क्या संचित करते हैं ?
*धोखाधड़ी काम है इनका, मिथकों में उलझाना है।*
*यज्ञ हवन करने वालों का, ये ही एक बहाना है।*
यंत्र अगर ताकतवर होते, मोबाइल में क्यों रमते ?
पाँव सभी के उखड़ रहे हैं, दशकों से जमते जमते।
*तंत्र किताबों की शोभा है, कहाँ कारगर होते हैं ?*
*फँसे जाल में जो भी इनके, कई पीढ़ियाँ रोते हैं।*
अब तो खूब मिसाइल चलती, नहीं रोकने का दम है।
कितना झूठ बखान रहे हैं, उनका हीरो क्या कम है ?
*अभी लिखे ये ग्रंथ बताते, हैं ये बरस हजारों के।*
*असली वैद्य बताते हैं ये, सब लक्षण बीमारों के।*
नहीं झूठ की सीमा कोई, पार न कोई पाया है।
अनपढ़ ज्यादा बना बना कर, उनको ही बहकाया है।
*जिनकी छाया की ताकत में, सारा देश समाया है।*
*जो भी गुजरा हुआ अपावन, जा कर खूब नहाया है।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
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