*विज्ञान बनाम अंधविश्वास : नौतपा सिर्फ एक मान्यता, मॉनसून के हैं अपने वैज्ञानिक आधार*
ज्योतिषाचार्यों ने 25 मई 2025 से नौतपा की शुरुआत की घोषणा की, दावा किया कि सूर्य और शुक्र की युति से भीषण गर्मी होगी। लेकिन भारतीय मौसम विभाग (IMD) के आंकड़े इसे नकारते हैं, क्योंकि पश्चिमी विक्षोभ और प्री-मॉनसून बारिश ने तापमान को 7-9°C तक कम कर दिया। पिछले 15 वर्षों में नौतपा की भविष्यवाणी 7-8 बार गलत साबित हुई, जो ज्योतिष की बिना वैज्ञानिक आधार वाली संभाव्यता पर टिकी है। यह लेख भारत में मौसम के वैज्ञानिक आधार और पाखंडी मान्यताओं के मिथक को उजागर करता है।
*पृथ्वी का अक्षीय झुकाव और मौसम चक्र*
पृथ्वी का अपने अक्ष पर 66.5 डिग्री का झुकाव और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाना भारत सहित उत्तरी गोलार्ध में ऋतुओं का कारण है। यह झुकाव उत्तरायण (22 दिसंबर से 21 जून) और दक्षिणायन (21/22 जून से 6 महीने) का आधार बनता है। उत्तरायण में उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर झुका होता है, जिससे अधिक सीधी सूर्य किरणें और गर्मी मिलती है। मई और जून में सूर्य की किरणें सबसे तीव्र होती हैं, दिन लंबे होते हैं, और अधिक धूप से तापमान बढ़ता है। इसके विपरीत, दक्षिणायन में सूर्य से दूरी के कारण ठंड बढ़ती है। यह वैज्ञानिक प्रक्रिया नौतपा जैसी पाखंडी मान्यताओं से कहीं अधिक विश्वसनीय है।
*नौतपा का पाखंडी मिथक*
ज्योतिषियों के अनुसार, जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है, तो सूर्य और शुक्र की युति से नौतपा (9 दिन की भीषण गर्मी) शुरू होता है। इस साल 25 मई 2025 से नौतपा की घोषणा की गई। लेकिन IMD के आंकड़े इस दावे को खारिज करते हैं। 25 मई से पश्चिमी विक्षोभ और प्री-मॉनसून बारिश के कारण देश के अधिकांश हिस्सों में तापमान सामान्य से 7-9°C कम रहा। पिछले 15 वर्षों में नौतपा की भविष्यवाणी 7-8 बार गलत साबित हुई। ये भविष्यवाणियां वैज्ञानिक आधार के बजाय संभाव्यता सिद्धांत पर टिकी हैं, जहां सच और झूठ की संभावना बराबर होती है।
*मॉनसून : वैज्ञानिक प्रक्रिया*
भारत में बारिश का मुख्य कारण मॉनसून और पश्चिमी विक्षोभ हैं, न कि नौतपा। मॉनसून, अरबी शब्द “मौसिम” (मौसम) से निकला, हवाओं की मौसमी दिशा का चक्र है। गर्मियों में थार रेगिस्तान और उत्तरी-मध्य भारत में सौर ताप से निम्न दबाव का क्षेत्र बनता है। हिंद महासागर से नमी युक्त हवाएं इस शून्य को भरने के लिए आती हैं। अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) भी उत्तर की ओर खिसकता है, जिससे मई अंत या जून शुरू में मॉनसून केरल पहुंचता है। यह अरब सागर और बंगाल की खाड़ी की दो शाखाओं में बंटकर जुलाई तक पूरे भारत को कवर करता है।
*अल-नीनो और ला-नीना का प्रभाव*
मॉनसून पर अल-नीनो और ला-नीना जैसे महासागरीय चक्र भी असर डालते हैं। ये चक्र दक्षिण अमेरिका के तट पर पश्चिमी प्रशांत महासागर में उत्पन्न होते हैं और भारत तक पहुंचते हैं। एल-नीनो कमजोर मॉनसून और ला-नीना सामान्य या अधिक बारिश लाता है। मॉनसून का पीछे हटना अक्टूबर में शुरू होता है, जिससे साफ आसमान और तापमान में वृद्धि होती है। उत्तरी भारत में मौसम शुष्क रहता है, लेकिन प्रायद्वीपीय भारत के पूर्वी हिस्सों में अक्टूबर-नवंबर में भारी बारिश होती है। यह प्रक्रिया पूरी तरह वैज्ञानिक है और ज्योतिष से इसका कोई लेना-देना नहीं।
*गलत धारणाओं के खिलाफ जागरूकता*
नौतपा जैसी निराधार मान्यताएं अज्ञानता और धार्मिक भय का फायदा उठाकर जनता को गुमराह करती हैं। ऐसी ज्योतिषीय भविष्यवाणियां बिना वैज्ञानिक आधार के निजी लाभ के लिए की जाती हैं। 21वीं सदी में भारत की जागरूक जनता को अपने विवेक का उपयोग कर ऐसी मिथ्या मान्यताओं को नकारना चाहिए। मौसम का आधार पृथ्वी का अक्षीय झुकाव, सूर्य किरणों की तीव्रता, और मॉनसूनी हवाओं का वैज्ञानिक चक्र है, न कि ज्योतिष या धार्मिक अंधविश्वास।
ऋतुओं के बदलने का आधार पृथ्वी के अक्षीय झुकाव, सूर्य की स्थिति और मॉनसूनी हवाओं जैसे वैज्ञानिक कारक हैं। नौतपा जैसी पाखंडी मान्यताएं ज्योतिषियों की बिना आधार वाली भविष्यवाणियां हैं, जो बार-बार गलत साबित हुई हैं। IMD के आंकड़े और वैज्ञानिक तथ्य साफ बताते हैं कि मॉनसून और मौसम प्राकृतिक चक्रों पर निर्भर हैं। जागरूक नागरिकों को अंधविश्वास छोड़कर विज्ञान पर भरोसा करना चाहिए, ताकि 21वीं सदी में भारत सच्चाई और प्रगति की राह पर आगे बढ़े।
*लेखक - डॉ. वीरेंद्र सिंह लाठर,* पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली
साभार- गांव जंक्शन
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