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राजेंद्र सिंह रज्जू भैया विश्वविद्यालय प्रयागराज यूपी में योगी सरकार खुलेआम आरक्षण नीति का खुला उल्लंघन कर रही है ,ST और OBC को किया गया दरकिनार, क्या योगी सरकार देगी जवाब?

 



राजेंद्र सिंह रज्जू भैया विश्वविद्यालय प्रयागराज यूपी में योगी सरकार खुलेआम आरक्षण नीति का खुला उल्लंघन कर रही है ,ST और OBC को किया गया दरकिनार, क्या योगी सरकार देगी जवाब?


प्रो. राजेन्द्र सिंह विश्वविद्यालय, प्रयागराज  जिसे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा स्थापित किया गया था, आज एक गंभीर आरक्षण विवाद के केंद्र में है। आरटीआई के ज़रिए सामने आई जानकारी से पता चला है कि यहां शिक्षकों की नियुक्ति में संविधान और UGC के आरक्षण मानकों की खुली अवहेलना की गई है।


24 शिक्षकों में से 15 सामान्य वर्ग से हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग का एक भी प्रतिनिधि नहीं है। अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का प्रतिनिधित्व भी महज 16.67% है, जो अनिवार्य 27% कोटे से काफी कम है!


इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने अनुबंधित कर्मचारियों की जातीय संरचना, चयन प्रक्रिया और नियुक्ति मानकों की जानकारी देने से इंकार कर दिया। यह न सिर्फ़ RTI अधिनियम 2005 की धारा 6(1) और 7(1) का उल्लंघन है, बल्कि एक गंभीर सामाजिक और नैतिक लापरवाही भी है।


*संवैधानिक और UGC प्रावधानों की अनदेखी*

भारत का संविधान, विशेष रूप से अनुच्छेद 16(4), और UGC की गाइडलाइन, यह स्पष्ट रूप से कहती हैं कि शिक्षकों की नियुक्ति में SC – 15%, ST – 7.5%, OBC – 27% आरक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिए। लेकिन विश्वविद्यालय में 62.5% पद सामान्य वर्ग से भरे गए हैं, जो सामाजिक न्याय की भावना की हत्या है!


 योगी सरकार की चुप्पी सवालों के घेरे में

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार “सबका साथ, सबका विकास” का दावा करती है, लेकिन विश्वविद्यालयों में संविधान विरोधी नियुक्तियों पर चुप्पी गहरी चिंता का विषय है। राजेंद्र सिंह विश्वविद्यालय जैसे संस्थान, जिन्हें समाजवादी सरकार की पहल पर बनाया गया था, अब उच्च वर्ग के वर्चस्व और आरक्षित वर्गों की उपेक्षा का केंद्र बनते जा रहे हैं।


विशेषज्ञों और शिक्षाविदों का मानना है कि यह सामाजिक न्याय की अवधारणा के साथ सीधा धोखा है। अगर राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन ने जल्द कार्रवाई नहीं की, तो यह मुद्दा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राज्य सूचना आयोग, और यहां तक कि न्यायपालिका के हस्तक्षेप का कारण बन सकता है!


क्या उत्तर प्रदेश सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि संविधान के अनुसार सभी वर्गों को समान अवसर मिले? या फिर यह मामला भी अन्य मुद्दों की तरह कागजों में दफन कर दिया जाएगा!

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