बसपा को हराने के लिए सपा को पसंद करेंगे मनुवादी! क्यों? -डाॅ.एम.आर.रैपुरिया
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"बीजेपी द्वारा इस उपचुनाव में सपा को कुछ सीटें जिताने और बसपा को एक भी सीट नहीं जीतने देने को जनता समझ रही है" -सुश्री मायावती
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'द प्रिंट' के विश्लेषक ने अपने आलेख में यदि बसपा सुप्रीमो के उपर्युक्त ट्विट को समझा होता तो वह बसपा का विकल्प सपा को स्थापित करने से बचता। बसपा सुप्रीमो के ट्विट में ईवीएम की तरफ निशाना है जिसे बहुत कम बुद्धजीवियों की बुद्धि समझ पा रही है। क्योंकि ब्रह्मास्र ईवीएम को सबसे पहले ११मार्च २०१७ को बहिनजी के द्वारा बैन करने की मांग की गई थी और आज भी जारी है। लोकसभा२०१९ में ५०-६० सीटों के प्रबल जीत के दावेदार बसपा-सपा गठबन्धन में बसपा को १० और सपा को ५ सीटें मिली। बसपा को सीटें सपा से अधिक मिलने के बाद भी उन्होंने आशा के विपरीत परिणाम के मद्देनजर ईवीएम के दुरुपयोग का आरोप लगाया और कहा कि ये सीटे बसपा-सपा को दे दी गईं हैं ताकि ईवीएम पर किसी को शक न हो। जहां हमारी पार्टी का बेस वोट है न वहां ईवीएम के द्वारा धांधली की गई ।उनके तात्पर्य था कि भाजपा चाहती तो सपा बसपा को एक भी सीट नहीं मिलती । किंतु ईवीएम के दुरुपयोग का सवाल न उठ सके, इसलिए सपा को ५सीटें और बसपा को १० सीटें दे दी गईं थीं। ईवीएम की मुख्य विरोधी पार्टी होने के कारण सत्ताधारी दल को बसपा का कम सीटें दिए जाने पर उत्पन्न विरोध का अधिक भय था इसलिए उसे सपा से अधिक सीटें जीतने दी गईं। जबकि उपचुनाव में सपा को तीन सीटें जीतने दी गई और बसपा को एक भी सीट नहीं जीतने दी गई।
ऐसा करने के पीछे सपा बसपा को आपस में लड़ाना है ताकि ईवीएम मुद्दे पर दोनों में भ्रम बना रहे और कभी आपस में गठबंधन के लिए निकट न हो सकें। इसका प्रमाण है कि तीन सीटों पर जीतने की खुशी ईवीएम के दुरुपयोग पर अखलेश यादव को शक् नहीं करने देगी।इसी कारण मायावती की तरह लोकसभा चुनाव जैसा श्री अखिलेश का ईवीएम पर आरोपी बयान नहीं आया। जबकि मायावती का ट्विट पूरी तरह भाजपा के ईवीएम दुरुपयोग संबंधी अप्रत्यक्ष बयान है,जिसे तथाकथित बुद्धिजीवियों ने हास्यास्पद बता रहे हैं। यहां किसी भी विश्लेषक के लिए तर्कों की नहीं,समझ कर जरूरत है जो मन की शुद्धता व सक्रियता वह अनुभव की उपज होती है,किसी किताबी तथ्य और आंकड़ों की नहीं।
मनुवादी बसपा को हराने के लिए सपा को जिताना पसंद क्यों करेंगे? इसके कारण निम्न हैं:
१-बसपा अम्बेडकरी बिचाराधारा की वाहक है, जबकि सपा लोहियावादी है। मनुवादी तुलनात्मक रूप से दोनों में से लोहिया को ही पसंद करते हैं ।
२-बसपा मनुवाद के विरुद्ध कैडर बेस्ड पार्टी है , जबकि सपा नहीं । इसलिए मनुवादी दल के लिए सपा की अपेक्षा बसपा बड़ी दुश्मन है।
३-बसपा मनुवादी संस्कृति की समर्थक नहीं है। वह बुद्ध फुले शाहूजी अम्बेडकर की सांस्कृतिक विरासत संरक्षक है ,जैसे यूपी अम्बेडकर स्मारक का निर्माण। जबकि सपा मनुवादी संस्कृति में आकंठ डूबी है।
४-बसपा का घोषणापत्र भारतीय संविधान का क्रियान्वयन है। जबकि सपा की घोषणाएं कांग्रेस और भाजपा की तरह चुनाव-मौसमी रहती हैं।
५-यह राजनैतिक दल के साथ साथ सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति का आंदोलन है, जबकि सपा का समाजवाद का आंदोलन है ब्राह्मणवाद द्वारा हाईजैक है।
६-बसपा सम्पूर्ण भारत में फैली हुई राष्ट्रीय पार्टी है जिसकी बैचारिक जड़ें मजबूत हैं, जबकि सपा क्षेत्रीय पार्टी है।
उपरोक्त बसपा सपा की विशेषताओं के कारण मनुवादियों के लिए अपने असली दुश्मन ,जो बहुजनों का मजबूत दल है, बसपा को 'साम, दाम,दंड, भेद' से मिटाने की पहली प्राथमिकता होगी। ऐसी स्थिति में बसपा को हराने के लिए सपा को सहयोग करना उनकी रणनीति का हिस्सा स्वभाविक है।
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