*जानिए अछूत कब और क्यों और कैसे बने हिन्दू-*😳😳
क्या आपको पता है की अछूतो को सबसे पहले *1911* की जनसँख्या गणना में हिन्दू धर्म में शामिल किया गया था ?
उससे पहले की जनसँख्या गणना में *अछूत हिन्दू नहीं कहलाते थे बल्कि अवर्ण थे* ,
यानी की चारो वर्णों से बाहर थे।
जो हिन्दू नहीं थे और हिन्दू धर्म के लोग उन्हें हिन्दू नहीं सिर्फ *अछूत* मानते थे ।
अछूतो को हिन्दू धर्म में शामिल करने की हिन्दुओ की मज़बूरी क्या थी? क्या ऐसा कारण था की जो हिन्दू पहले अछूतो को हिन्दू ही नहीं मानते थे अचानक उन्हें हिन्दू मानने लगे और जनसँख्या गणना में उन्हें हिन्दू कहलवाने लगे?
इसके दो कारण थे, पहला कारण था जनसँख्या के आधार पर मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग रख दी थी, अब यदि अछूतो को हिन्दुओ से अलग कर दिया जाए तो कितनी संख्या कम हो जायेगी हिन्दुओ की ...
अत: अपनी जनसँख्या अधिक दिखाने के लिए मजबूरन हिन्दू धर्म के ठेकेदारो ने अछूतो को सरकारी आंकड़ो में हिन्दू लिखवाना शुरू कर दिया, पर उनका व्यवहार अछूतो के साथ पूर्व जैसा बना रहा ।
दूसरा कारण था की मुसलमनो को देख कर अछूतो में भी पृथकनिर्वाचन की मांग जोर पकड़ रही थी, यदि अंग्रेज अछूतो की बात मान लेते और पृथक निर्वाचन मताधिकार अछूतो को मिल जाता तो संभव था की मुसलमनो की तरह अछूतो को भी देश का अलग हिस्सा मिल गया होता , तब उस समय देश के दो नहीं तीन हिस्से होते ।
हिन्दु ठेकेदारो ने दोहरी चाल चली, अछूतो को हिन्दू भी बना लिया और उनका हक़ भी नहीं दिया ।
आरक्षण का विरोध करने वाले ये नहीं जानते की यदि आरक्षण नहीं दिया गया होता तो अछूतो को मुसलमानो की तरह अलग हिस्सा मिल गया होता ।
आरक्षण एक बहुत नगण्य कीमत है हिन्दुओ लिए
...
*हिंदुत्व क्या है??*
हिन्दू होकर भी हिन्दू, हिन्दू को अपनी बेटी नहीं देता है.
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू को अपनी थाली में रोटी नहीं देता है.
हिन्दू होकर भी हिन्दू, हिन्दू को मान, सम्मान नहीं देता,
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू के अधिकार छीन लेता है.
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू गरीबों का पेट काट लेता है.
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू के बच्चों से स्कूल-कालेजों में
भेदभाव करता है.
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू को ही शासन-सत्ता में आगे बढ़ते नहीं देखना चाहता है.
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू के ही बाल-बच्चो का गला काट देता है.
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू की काबिलियत पर ऊँगली उठाता है.
हिन्दू होकर ही हिन्दू, हिन्दू को एक समान अपने जैसा इंसान होने का दर्जा नहीं देता है.
ये कैसा हिन्दू है और कैसा इसका धर्म है. इसका ये कथित
धर्म, धर्म केसे हो सकता है?
दूसरे धर्मो में ऐसा भेदभाव ऐसी असमानता आपस में नहीं है।
फिर हिन्दू धर्म में ही क्यों ?
*ये धर्म नहीं, स्वार्थ का पुलिन्दा है, सिर्फ *मनुवादी जातियों का एक झुंड है और बहुजनों को गुलाम बनाए रखने की साजिश है.*
*हम हिन्दू ना थे, ना है, हम सिर्फ एक षड्यंत्र के शिकार हैं।*.
Chaman Lal Pradyot जी के कलम से।
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