*_जमीर बिक गया किरदार बिक गये।_*
*_खून से छपकर के अखबार बिक गये।_*
*_इस कदर लूटा मुफलिस को सियासत ने।_*
*_टूटे फूटे थे जो वो घर बार बिक गये।_*
*_जिनपे था यकीं हक की आवाज़ उठाने का।_*
*_वो भी आज यहाँ सरे बाजार बिक गये।_*
*_सच्चाई की चादर ओढ़े अहले ईमान बैठे रहे।_*
*_पल भर मे झूठे और मक्कार बिक गये।_*
*_शायद दिखाई ना दिया इन्हें दर्द मिल्लत का।_*
*_फिर यूँ हुआ की साहिब ए किरदार बिक गये।_*
*_अब किस पर करे गुमान अपनी रहनुमाई का।_*
*_जब चंद टुकड़ों में कौम के सरदार बिक गये।_*
A 🌹 k🌹
टिप्पणियाँ