आज के दिन नाशिक की बौद्ध गुफाओं को देखने गया। नाशिक की बौद्ध गुफाओं के विशेषज्ञ अतुल भोसेकर साथ में थे।
अतुल भोसेकर ने नासिक की बौद्ध गुफाओं पर अंग्रेजी में एक बेहतरीन पुस्तक लिखी है।
बौद्ध गुफाओं को विकृत करने का कार्य सैकड़ों साल से चल रहा है।
पहली तस्वीर गुफा सं. 3 की है। आप तस्वीर में पूरा स्तूप का शैल - चित्र देख सकते हैं।
दूसरी तस्वीर गुफा सं. 10 की है। आप तस्वीर में स्तूप की सिर्फ हर्मिका का शैल - चित्र देख सकते हैं।
आज से कोई 850 साल पहले किसी ने हथौड़े और छैनी का प्रयोग कर स्तूप की हर्मिका के निचले हिस्से को मिटाकर किसी भैरव की मूर्ति उत्कीर्ण कर दी है।
मगर स्तूप का ऊपरी हिस्सा अभी बरकरार है। आप इसे तस्वीर दो में देख सकते हैं।
आप तस्वीर दो में यह भी देख सकते हैं कि स्तूप मिटाकर उस पर भैरव की मूर्ति उत्कीर्ण करने में छेद हो गया है।
बौद्ध निशानियों को मिटाने का कार्य सैकड़ों साल से बड़ी निर्ममता पूर्वक किया गया है।
बौद्ध गुफा हैं लेकिन नाम रख दिया घटोत्कच गुफा...लेकिन ये बौद्ध गुफाएं हैं जो भारत के जिंजला गाँव के पास हैं, अजन्ता के पश्चिम में 18 किमी की दूरी पर स्थित हैं।
गुफाओं में तीन बौद्ध गुफाएं शामिल हैं, एक चैत्य है और दो विहार हैं। 6 वीं शताब्दी ईस्वी में गुफाओं की खुदाई की गई थी, और महायान बौद्ध धर्म से प्रभावित थे। अब ज्यदातट गुफाओं के नाम महाभारत कालीन पात्रों पर क्यूँ रखे गए जबकि ये गुफाएं दो हजार साल से ज्यादा पुरानी नहीं हैं
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