नसबंदी
------------------ लघुकथा
चिंतित राजा ने कहा -'अब तो एकलव्यों को रोकने का कोई दूसरा तरीका ढूंढना पड़ेगा। हम लोकतंत्र में उनसे अंगूठा भी तो नहीं मांग सकते।"
महामंत्री -"आपका कथन उचित है महाराज! पढ़-लिखकर ये तो हमारी बराबरी करने लगे हैं। इनकी विशाल जनसंख्या से हमारे बच्चों को नौकरी के लाले पड़ने लगे हैं। ये एकलव्य लोग आजकल मेरिट में आ रहे हैं। टापर में इनका नाम आने लगा है। ऐसा ही रहा तो ये बड़े पदों पर बैठ जाएंगे और हमारे बच्चे इनके कार्यालयों में चपरासी का काम करेंगे। घोर कलयुग आ गया महाराज!"
राजा ने चतुर मंत्री से इसका हल पूछा।
चतुर मंत्री ने समाधान देते हुए कहा -"राजा साहब! आप उन विद्यालयों को बंद कर दें, जहां नि: शुल्क शिक्षा की व्यवस्था है। इससे राज्य का पैसा तो बचेगा ही, साथ ही निम्न जाति से निकलने वाले होनहार विद्यार्थियों पर अंकुश लग सकेगा।"
राजा ने तार्किक प्रश्न उछाला -"इससे निद्रालीन मानवाधिकार संगठन उठ खड़ा हो जाएगा। ये लोग हमारा जीना हराम कर देंगे। ऐसा करना संभव नहीं चतुर मंत्रीजी!"
चतुर मंत्री ने पुनः अपनी बात रखी -"फिर तो इन विद्यालयों में अध्ययन शुल्क लेना शुरू करें। शुल्क एक लाख रूपए वार्षिक कर दें। निम्न जाति के लोग गरीब होते हैं। इतना शुल्क वे दे नहीं पाएंगे और उनकी शिक्षा की इच्छा स्वत: समाप्त हो जाएगी।"
महामंत्री -"वाह क्या दूर की कौड़ी लाई है आपने। हमारे बच्चे इन विद्यालयों में आराम से पढ़ सकेंगे। हमें इतना शुल्क भरने में कोई कठिनाई भी नहीं होगी। ऐसा हुआ तो सिर्फ हम जैसे उंचे घराने के बच्चे ही बनेंगे डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, वैज्ञानिक और उच्च अधिकारी।"
राजा ने फिर टोका -"लेकिन विपक्षी हमें
गरीब और निम्न जातियों के विरोधी घोषित कर देंगे तो?"
चतुर मंत्री ने कहा -"वो भी तो उच्च वर्ग के हैं महाराज! इसलिए संतुष्ट करना आसान होगा। आप उन्हें कह सकते हैं, राज्य की आर्थिक स्थिति खराब है। अतः यह निर्णय राज्य हित में लिया गया। कोई चूं-चपड़ किया तो राजद्रोही घोषित करके हमारे सैनिक उनकी खाल खींच लेंगे।"
सुनकर राजा खुश होते हुए बोले -"वाह चतुर मंत्री जी वाह! तुमने तो ऐसी नसबंदी की व्यवस्था बताई है कि अब कोई एकलव्य धोखे से भी जन्म नहीं ले सकेगा।"
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