शिक्षा सामाजिक और आर्थिक उन्नति का आधार है। शिक्षा ही हमें तर्क और विवेक से परिपूर्ण करती है। 19वीं शताब्दी के आरंभ में महात्मा फुले और ज्योति बा फुले ने सबके लिए शिक्षा प्रारंभ की। बीसवीं शताब्दी तक शिक्षा अच्छी और गुणवत्ता युक्त सबके लिए सुलभ थी। देश के शोषित, वंचित व गरीब तबकों में शिक्षा के प्रति जैसे जैसे जागरूकता बढ़ी, वैसे वैसे शिक्षा का व्यवसायीकरण होने लगा। 21 वी शताब्दी के प्रारंभ में शिक्षा महंगी होने लगी, गरीब वर्ग के हाथ से शिक्षा दूर होने लगी। शिक्षा के निजीकरण ने शिक्षा को महंगा और गुणवत्ता विहीन कर दिया। इसका जीता जागता उदाहरण इंजीनियरिंग की पढ़ाई है। आज हमारी युवा पीढ़ी बहुतायत में शिक्षित है, डिग्री नाम मात्र की है लेकिन उस पढ़ाई का ज्ञान नगण्य है। यह किसी भी देश के लिए बहुत चिंता का विषय है जरूरी है शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन करने का ताकि हमारे देश का बच्चा, युवा जो देश का नागरिक बनने वाला है उसके कंधों पर देश का भविष्य आने वाला है उस भविष्य को हम अच्छी सस्ती व गुणवत्ता युक्त शिक्षा देकर यदि उसे योग्य नहीं बनाएंगे तो हमारी युवा पीढ़ी कमजोर होगी जो किसी भी देश के लिए अच्छी बात नहीं है। अतः मैं आवाहन करता हूं आप सभी का कि देश में गुणवत्ता युक्त सस्ती अच्छी शिक्षा के लिए हम सबको पहल करनी चाहिए। केंद्र सरकार शिक्षा का राष्ट्रीयकरण करें,राज्य की जगह शिक्षा केंद्र का विषय हो। केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा के बजट को कुल जीडीपी का कम से कम 3% शुरुआत में कर, 5% तक करना चाहिए।
सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता युक्त शिक्षा कब मिलेगी जब सा शासन व प्रशासन अधिकारियों के बच्चे शासकीय स्कूलों में पढ़ेंगे तब इनकी गुणवत्ता का ध्यान रखा जाएगा।
डा. राम मनोहर लोहिया जी का यह नारा- "राष्ट्रपति हो यह चपरासी की संतान सबको शिक्षा एक समान" आज वक्त की जरूरत है।
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