🌻धम्म प्रभात🌻
🎄दान पारमी🎄
दान धम्म का मूल है,
पाप मूल अभिमान।।
"दानं ददन्तु सद्धाय,
सीलं रक्खन्तु सब्बदा ।
भावना भिरता होन्तु,
एतं बुद्धां सासनं ।। "
श्रद्धा पूर्वक दान करो,
सर्वदा शील का पालन करो,
ध्यान (भावना) में रत रहो,
यही बौद्धों की शिक्षा हैं।
बौद्ध शास्त्रों में दान और शील - सदाचार की बडी महिमा की गई हैं।
शील - सदाचार की सुगंध श्रेष्ठ हैं।
घम्मपद के पुप्फ वर्ग में गाथा हैं - -
" चन्दनं तगरं वापि, उप्पलं अथ वस्सिकी ।
एतेसं गन्धजातानं, सीलगन्धो अनुत्तरो ।। "
अर्थात चंदन और तगर की गंध, कमल और चमेली की गंध - इन भिन्न-भिन्न सुगंधियों से शील की गंध अधिक श्रेष्ठ हैं।
शील - सदाचार ही बुद्ध धम्म की नींव हैं।
इस नींव को बनाये रखने, मजबुत करने में, कायम रखने में दान का महत्वपूर्ण स्थान हैं। बिना दान दिये धम्म आगे बढ नहीं सकता हैं।
दान का अर्थ हैं देना याने अपनी वस्तु का स्वत्व त्याग कर दूसरे को देना। दान के तीन उपकरण हैं -
दान की चेतना (इच्छा),
दान की वस्तु और
दान का लेने वाला।
अनेक प्रकार के दान हैं, इसमें धम्म का दान श्रेष्ठ हैं।
धम्मपद के तण्हा वग्ग में कहा हैं-
"सब्बदानं धम्मदानं जिनाति" - धम्म का दान सब दानों को जीत लेता हैं अर्थात धम्म का दान सब दानों में श्रेष्ठ हैं।
दान तीन प्रकार के होते हैं -
धम्म दान,
अभय दान और
आमिष दान अर्थात वस्तु दान।
दान देने वाले तीन प्रकार के होते हैं -
दानदास,
दानसहाय और
दानपति।
"सब दोनों से श्रेष्ठ है,
धम्म रतन का दान।
दायक पाये पुण्य बल,
ग्राहक सुख निर्वाण।।"
निर्वाण की ईच्छा रखनेवाले को शील, समाधि और प्रज्ञा पथ पर अग्रसर होकर दान देना ही श्रेयकर हैं।
नमो बुद्धाय 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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