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लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए एकजुट हों


 


 


 


*लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए एकजुट हों!*
*10 दिसंबर (अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस )को भोपाल में आयोजित “मानव श्रृंखला” में शामिल हों!*
*समय- दोपहर 2 बजे से रोशनपुरा चौराहा और 3 बजे से इक़बाल मैदान* 


*दोस्तो,* 
हमारे अधिकारों को पहचान देने और हक की लड़ाई को ताकत देने के लिए हर साल दुनियाभर में 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। इसकी घोषणा 'संयुक्त राष्ट्र असेंबली' ने विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी कर 1948 में की थी। पूरी दुनिया में मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्मों को रोकने और उसके खिलाफ आवाज उठाने में इस दिन की महत्वूपूर्ण भूमिका है। हालांकि अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई में हमने जो भी मूल्य और लोकतांत्रिक अधिकार हासिल किए थे उन्हें क्रमशः जनता से छीना जा रहा है। चाहे पूर्ववर्ती सरकारें हो या पहले से ज्यादा ताकत के साथ दुबारा सत्ता में आयी मौजूदा मोदी सरकार, सभी ने अंतरराष्ट्रीय घोषणा और संविधान द्वारा दिये गए, नागरिक और मानव अधिकारों को कमजोर करने या खत्म करने का काम किया है। 


*संवैधानिक अधिकारों का हनन*
हर इंसान को समता, स्वतंत्रता, समानता और बिना किसी भेदभाव के सम्मान से भयमुक्त जीवन जीने के अधिकार ही मानवाधिकार है। भारतीय संविधान में न सिर्फ इसकी गारंटी है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को सजा का प्रावधान भी है। लेकिन मौजूदा मोदी सरकार संविधान की आत्मा को लहूलुहान करते हुए आम मेहनतकश जनता के खिलाफ, लोकतंत्र विरोधी नीतियों को तेजी से लागू कर रही है। देश में रोजाना संवैधानिक अधिकारों को कुचला जा रहा है। आरटीआई एक्ट को कमज़ोर बनाकर जनता से सूचना के अधिकार को छीना जा रहा है। महिलाओं के साथ यौनिक हिंसा, बलात्कार की शर्मनाक घटनाएँ आम हो गई हैं। वहीं दलितों, आदिवासियों पर जातीय उत्पीड़न की घटनाएं रोजाना अखबारों में छप रही है। मानो ब्राम्हाणवादी ताक़तों को अत्याचार करने की खुली छूट मिल गई हो। बड़ी संख्या में कुपोषण से बच्चों की मौतें हो रही हैं। लोग बिना इलाज के मर रहे हैं। शिक्षण संस्थानों का भगवाकरण ज़ोरों पर है। यहाँ तक की देश के इतिहास को बदला जा रहा है। नफरत, असहिष्णुता, हिंसा और डर का माहौल बनाया जा रहा है। अब फैसले अदालत कि बजाय पुलिस या भीड़ द्वारा सड़कों पर ही किए जा रहे है।  हो फिर वो चाहे फर्जी एनकाउंटर या मॉब लिंचिंग (भीड़ के जरिये हत्या) की घटनाएं, जो लगातार बढ़ रही हैं। यूएपीए और एनआईए जैसे दमनकारी कानूनों को और सख्त कर इसे पहले से अधिक जनांदोलनों व संघर्षशील साथियों को चुप कराने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। विरोध दर्ज कराने या आवाज उठाने पर देशद्रोह के मामले और फर्जी मुकदमें दर्ज किए जा रहे हैं। निर्दोष लोगों को जेलों में ठूसा जा रहा है। राजकीय दमन और हिंसा अपने चरम पर है।  


*नागरिकता के अधिकार पर हमला* 
हमारे नागरिक अधिकारों पर लगातार हमलों के बाद अब सीधे हमारी नागरिकता को छीनने पर सरकार आमादा है। मोदी सरकार ने असम में राष्ट्रीय नागरिकता पंजी(एनआरसी) लागू कर 19 लाख अधिक देशवासियों को 'विदेशी या घुसपैठिया' बताकर 'राज्यविहीन' कर दिया है। अब इसे पूरे देश में लागू करने की तैयारी की जा रही है। मतलब अब हम नागरिकों को अपनी नागरिकता सिद्ध करने एक बार फिर लाइन में खड़ा होना पड़ेगा। जो अपनी नागरिकता सिद्ध नहीं कर पाएंगे उन्हें असम की तर्ज पर राज्यविहीन कर प्रताड़ित किया जाएगा। यहाँ तक कि उन्हें कैदियों कि तरह नज़रबंदी शिविरों में ठूंस दिया जाएगा। इसके शिकार न केवल अल्पसंख्यक होंगे बल्कि बड़ी संख्या में दलित-आदिवासी, मेहनतकश जनता व सभी प्रवासी मजदूर होंगे। इससे पूरे देश में 4-5 करोड़ लोगों के राज्यविहीन होने की आशंका है। सवाल *यह उठता है कि-* 
*●जो दलित, आदिवासी और पिछड़े अपने जाति प्रमाण पत्र के लिए जरूरी दस्तावेज़ नहीं जुटा पा रहे हैं वो नागरिकता सिद्ध करने के लिए सरकारी दस्तावेज़ कहाँ से लाएँगे?* 
*●वहीं आदिवासी समुदाय जो वनाधिकार कानून के तहत प्रस्तुत दावों के लिए जरूरी दस्तावेज़ नहीं दे पा रहे हैं क्या वो एनआरसी के लिए दस्तावेज़ जुटा पाएंगे?* 
*●मात्र असम की 3.09 करोड़ आबादी पर एनआरसी लागू करने पर जनता की गाढ़ी कमाई का 16000 करोड़ रुपयें फूँक दिया गया। आम लोग अमानवीय पीड़ा से गुजरे वो अलग है।  क्या देशभर में एनआरसी पर अरबों रुपए खर्च करना उचित होगा?*


*नागरिकता संशोधन विधेयक* 
देशवासियों की नागरिकता पर सवाल उठाने के साथ केंद्र की भाजपा सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद में लाने जा रही है। इस विधेयक में पड़ोसी देशों से आये प्रवासी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और इसाई धर्म (मुस्लिमों को छोड़कर) के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है, जो भारतीय संविधान के धर्म निरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ है।


*4 माह से कैदियों जैसी ज़िंदगी जी रहे कश्मीरी*
भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा तानाशाही तरीके से खत्म किया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश में बांट दिया है। धारा 370 और 35-ए को समाप्त कर बड़ी संख्या में सेना तैनात कर कश्मीर को एक 'खुले जेल' में तब्दील कर दिया। नतीजतन देश के कश्मीरी नागरिक पिछले 4 माह से कैदियों जैसी ज़िंदगी जी रहे हैं। अमानवीय यातनाओं को भोग रहे है। अभी भी मोबाइल, इंटरनेट और मीडिया पर प्रतिबंध लगा हुआ है और यह कब तक जारी रहेगा कहाँ नहीं जा सकता।


*गहराता आर्थिक संकट*
देश की अर्थव्यवस्था संकट में है। नोटबंदी और जीएसटी की असफलता के बाद वस्तुओं की बिक्री तेजी से घट गई है, कई उत्पादक इकाइयां या तो बन्द हो गई हैं या तालाबन्दी हो रही है। बेरोजगारी अपने भयावह स्तर पर पहुँच गई है। बड़ी मेहनतकश आबादी के समक्ष जीने का संकट खड़ा हो गया है। किसान आत्महत्या कर रहे है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण जैसे मूल अधिकारों को सुनिश्चित कराने की अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी से सरकारों ने पल्ला झाड़ लिया है। रेल्वे समेत सार्वजनिक क्षेत्र के बचे-खुचे उद्यमों को बेचने की तैयारी हो गई है। कॉर्पोरेट कंपनियों को हर रोज जल-जंगल-जमीन लूटने और पर्यावरण को तबाह करने की अनुमति दी जा रही है। जनता को कंगाल बनाते हुए सभी क्षेत्रों के लिए कॉर्पोरेटीकरण का दरवाजा खोल दिया गया है।


*जनता चुप नहीं है*
मोदी सरकार द्वारा देश की विविधता को दम्भपूर्वक खारिज कर हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्थान, एक राष्ट्र-एक चुनाव, एक राष्ट्र-एक टैक्स जैसी नीतियों थौपा जा रहा है। लेकिन आम मेहनतकश जनता और जनवादी ताकतें इसके खिलाफ पहले से कहीं अधिक लामबंद हो रही है। मजदूरों और किसानों का असंतोष बढ़ रहा है। मोदी-2 के कॉर्पोरेट परस्त और फासीवादी कदमों के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में जन आंदोलन उठ खड़ा हो रहा है। यह परिस्थिति मांग कर रही है कि संघर्षशील जनवादी और उत्पीड़ित वर्ग एवं ताकतें सभी स्तरों पर एकजुट हों और भारत को ब्राह्मणवादी हिन्दू राष्ट्र में तब्दील करने का प्रयास कर रही कॉर्पोरेट फासीवादी आरएसएस और भाजपा को चुनौती देते हुए जन आंदोलन की शुरुआत करें। *एमपीडीआरएफ़ जनता से अपील करता है कि धर्म निरपेक्ष, जातिविहीन और समतामूलक समाज के लिए संघर्ष करो, नव-उदारवाद को पूरी तरह खारिज करते हुए विकास के नये प्रतिमान के लिए संघर्ष करो, जनपक्षीय विकास नीति के लिए संघर्ष करो। इसी क्रम में आगामी 10 दिसंबर को भोपाल में दोपहर 2 बजे से रोशनपुरा चौराहा और 3 बजे से इक़बाल मैदान में “मानव श्रंखला” के माध्यम से मंच मांग करता है कि –*
*★संवैधानिक और मानवअधिकारों को सुनिश्चित करों!*
*★असम एनआरसी रद्द करो, देश भर में एनआरसी लागू करने का प्रयास बन्द करो!*
*★नागरिकता संशोधन विधेयक तत्काल वापस लो!*  
*★भारत में जन्में हर व्यक्ति को नागरिकता का अधिकार सुनिश्चित करो!*
*★जम्मू-कश्मीर की जनता पर लगाई गई पाबंदी तत्काल खत्म करो!*
*★धारा 370 और जम्मू-कश्मीर की जनता की स्वयत्तता बहाल करो!*
*★जनता के आत्म-निर्णय के अधिकार के आधार जम्मू-कश्मीर समस्या समाधान करो!*
*★सबको मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और रोजगार की गारंटी सुनिश्चित करो!*
*★सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण बन्द करो, कॉर्पोरेटीकरण नहीं चाहिए!*


*मध्यप्रदेश लोकतान्त्रिक अधिकार मंच (MPDRF)*
*माधुरी*-0917975640, *विजय*- 0998177205, *सचिन*-07869128784, *सीमा*-09425014874, *अब्दुल्ला*-9039248563


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