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रेडीमेड एफ. आई.आर. FIR

 


 


 


 


एक तरफ पीड़िताओं को सालों साल इंसाफ नहीं मिल पाता उन्हें जिन्दा जलाकर मारा जा रहा है तो दूसरी तरफ आधुनिक मानसिकता का शिकार ब्लैकमेलिंग को पेशा बना चुकी धोखाधड़ी करके कई कई शादियां करने वाली, कई कई पुरुषों को अपने मोहपाश में फंसाकर पुरुषों के परिवार को बर्बाद करने वाली महिलाएं भी है.?
 498-A हो या 376 एक रेडीमेड एफ. आई.आर. है, जो आपको कोर्ट में एक टाइपिस्ट के पास भी मिल जायेगी। नाम पते बदले जाते है ,कहानी में कुछ परिवर्तन करके पुरुष के पूरे परिवार के शोषण जी दास्तान शुरू हो जाती है.?
फिर शुरू होती है सौदेबाजी ,खुद को अक्लमंद समझने वाली महिला अपने आशिक़,पीहर वालों या दूसरे लोग जो उस महिला के साथ फिस्मफरोशी करके अय्यासी कर रहे होते है वह महिला कितनी भी पढ़ी लिखी डिग्रीधारी ,डॉक्टर,वकील,सी.ए. आदि कुछ भी क्यों न हो जिनके साथ अय्यासी कर रही होती है , उनके इशारों की कठपुतली बन जाती है।
और बर्बाद कर देती है पति के पूरे परिवार को.?  पति से रकम ऐंठती है अपने आशिक़ को देती है.?और एक दिन पछताती है और 10-12 साल बाद अपने उसी पति के पास ही वापस आना चाहती है.? 
यह समस्या भी समाज में बढ़ती ही जा रही है। एक दुष्ट महिला के  अत्याचार से पीड़ित पुरुष सभी आधुनिक भेषभूषा वाली महिलाओं से नफरत करने लगता है।
महिला सुरक्षा के लिए बहुत कुछ बदलना है पर इस तरह ब्लैकमेल करने वाली महिलाओं/लड़कियों का विरोध भी  करना होगा। यह विरोध महिलाओं को भी करना होगा क्योंकि पुरुष करेगा तो महिला विरोधी कहलायेगा.?
इसलिए महिलाओं व महिला संगठनों को ही इस तरह की दुष्ट पवृति की महिलाओं का विरोध करना पड़ेगा..?पीड़ित पुरुषो का साथ देना होगा..??
इसलिए बदलना महिला और पुरुष दोनों को ही है। तभी अश्लीलता,व्यविचार,बलात्कार फिर हत्या पर काफी हद तक रोक लग सकेगी यदि हमने ऐसा नहीं किया तो वर्तमान की घटनाये अंतिम नहीं है। मोमबत्ती जलाकर श्रद्धांजलि देना या  राजनीति चमकाना तथा राजनितिक शौक पूरा करना अलग विषय है.?
फैसला तो न्यायालय को ही करना है। इंसाफ कौन करेगा पता नहीं.?
इसलिए नैतिकता महिला और पुरुष दोनों को अपनानी चाहिये।
जब कोई महिला किसी पुरुष को झूठे बलात्कार,छेड़छाड़ के झूठे मुकदमे में फंसाये तो उसका विरोध महिला आयोग,महिला संगठनों और उन महिलाओं को भी करना चाहिए जो आज जंतर मंतर और देश के अन्य क्षेत्रों में बलात्कारियों को फांसी दिलाने की मांग कर रही है।
पुरुष तो हमेशा महिलाओं के प्रति हर जुर्म के विरोध में आंदोलन करता ही रहता है, पर जब कोई ब्लेकमेलर महिला पुरुष पर मोटी रकम ऐठने के लिए झूठा आरोप लगाती है तो कोई महिला संगठन पुरुषों का साथ नहीं देता और महिला आयोग का सारा ज्ञान विलुप्त हो जाता है। जब तक नैतिकता को महिला और पुरुष दोनों नहीं अपनाते है तब इस तरह के सिलसिले चलते ही रहगे ? कोई भी कड़े से कड़ा कानून अपराधों को नहीं रोक सकता..?
और इन्हीं सब बातों को देखते हुए अनेक अपवादों के होते हुए भी ,देश के आगामी भविष्य को देखते हुए हम   " राष्ट्रीय पुरुष आयोग " की मांग भारत सरकार से कर रहे है...? 
-:के.के.एस. राघव:- 
संचालक, सक्षम वार्ता एक सामाजिक आंदोलन


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