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ये मजदूरों के दुश्मन पर लोग कहाँ पहचान रहे ?


*~~~~ये मजदूरों के दुश्मन पर~~~*

*~~~लोग कहाँ पहचान रहे ?~~~*


*हमने सड़कों पर दौड़ाया, साँस नहीं ले पाये हैं।*

*कुछ वर्षों में हमने ही, कितने मजदूर बढ़ाये हैं ?*

जिन्हें भेजना स्कूलों में, वे  हैं सब चौराहों पर।

उनके भी मुँह सूख रहे हैं, जो झूले हैं बाहों पर।

*हमने इन्हीं किसानों के, अन्धे कानून बनाये थे।*

*श्रमिकों के कानून बदल कर, हम कितने हर्षाये थे।*

अभी हाथ में है सत्ता, हम कलकत्ता भी जायेंगे।

जब तक बाजी नहीं पलटती, पत्ता खूब हिलायेंगे।

*भरने वाला घड़ा पाप का, जाने कब तक फूटेगा।* 

*ये तो ऐसा मिला लुटेरा, ये सबको ही लूटेगा।*

महल बना है जो तिलिस्म का, धीरे धीरे टूट रहा।

पर लगता है इस मौसम में, कुछ न कुछ तो छूट रहा।

*हींग फिटकरी नहीं लगेगी, तान रहो अपनी ताने।*

*अपने मन की करो उसे, दुनिया माने या न माने।*

मनरेगा से छूटे हैं जो, उनको भी तो लाना है।

मजदूरों की संख्या को, अब जमकर खूब बढ़ाना है।

*इनकी संख्या इतनी कर दो, देश छोड़ कर भाग चलें।*

*जाये जहाँ आग फैलायें, और पड़ोसी देश जलें।*

पहले भी थे जब सत्ता में, तब मजदूर बनाये थे।

गिरमिटिया बन कर ही तो वे, दुनिया भर में छाये थे।

*आज मिला है मौका , हम सबको मजदूर बना देंगे।*

*आग जला करती है जिसमें, वो तंदूर बना देंगे।*

ये जो कुछ भी बोल रहे हैं, सब ग्रन्थों की भाषा है।

फेर बदल हो सकता है पर, गढ़ी हुयी परिभाषा है।

*नौकरियाँ छीनी हैं जिनकी, वे भी सड़कों पर आये।*

*आँख खोल कर देखो सारे, घूम रहे हैं बौराये।*

बच्चे भी स्कूलों के, वे सभी रास्ते भूल गये।

जिन्हें बोझ लगता था पढ़ना, वे खुशियों में झूल गये।

*था मकान उनका किश्तों पर, बड़े अनोखे ठाठ रहे।*

*क्या कर सकते इस शासन में, जूठी पत्तल चाट रहे।*

पेंशन पाने वालों की भी, कैसी दशा बिगाड़ी है ?

धरना और प्रदर्शन करने, वाले बने अनाड़ी हैं।

*पेंशन बन्द करा के जिसने, अपनी दशा सुधारी थी।*

*ताबूतों के सौदे में, उसने ही बाजी मारी थी।*

लोग नहीं समझे हैं अब भी, सभी कमीशन खोर रहे।

चाहे जितने पन्ने पलटो, सात जनम के चोर रहे।

*ये मजदूरों के दुश्मन पर, लोग कहाँ पहचान रहे ?*

*पाँच किलो राशन पा कर के, करते सब गुणगान रहे।*

इसीलिए स्कूल बन्द कर, शिक्षा का दम तोड़ दिया।

ईर्ष्या और जलन का सारा, दमखम यहीं निचोड़ दिया।

*जितने ज्यादा लोग, गरीबी रेखा से नीचे होंगे।*

*उतने ज्यादा ये सत्ताधारी, आँखें मीचे होंगे।*

लालीपॉप दिखा कर के, ये सारे ही ललचायेंगे।

आने वाली हर पीढ़ी को, ये मजदूर बनायेंगे।

*मई दिवस तो यादगार है, दूर भ्राँन्ति करनी होगी।*

*नस्लों का यदि भला चाहते, अभी क्रान्ति करनी होगी।*

समय नहीं बरबाद करो, अब सारे तपे तपाये हैं।

इतनी लम्बी डगर मिली, सब पैदल चल कर आये हैं।

*हमने सड़कों पर दौड़ाया, साँस नहीं ले पाये हैं।*

*कुछ वर्षों में हमने ही, कितने मजदूर बढ़ाये हैं ?*


*मदन लाल अनंग*

द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।

*1-*  वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी है। लगभग *2000 /2300  से अधिक लेख / रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं   

*2-* कृपया कापी राइट का उल्लंघन न करें तथा रचनाओं को अधिक से अधिक अग्रसारित करें।

*3-* यदि आप सोशल मीडिया पर प्रसारित पूर्व की रचनाओं को पढ़ना चाहते हैं तो कृपया आप *अनंग साहब* के फेसबुक मित्र बनकर *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* पेज पर जाकर पढ़ सकते हैं।

*4-* जो महानुभाव मध्यम मार्ग समन्वय समिति से जुड़ना चाहते हैं वे कृपया *बी.एस.एफ.* से जुड़ें। अध्यक्ष बी.एस.एफ. एडवोकेट ए.के. मौर्या, मो.नं. 7011121296* 

*5- सम्पर्क सूत्र~* 

मो. न. 9450155040

दिनांक: 29.11.2023 /29.11.2024

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