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अध्यात्म आयतन अनित्य है।

 

☸️ _मंगल मय सुप्रभात_ ☸️ 



 ```एक समय भगवान बुद्ध श्रावस्ती में अनाथपिंडक के जेतवन में विहार करते थे।वहां भिक्षुओं को आमंत्रित कर   बुद्ध ने कहा -

भिक्षुओं!

अध्यात्म आयतन अनित्य है।

तथागत बोले भिक्षुओं!

चक्षु अनित्य है।चक्षु द्वारा देखा संसार के सभी रूप भी  अनित्य है।जो अनित्य है वह दुख है और जो दुख है वो अनात्म है।

जो अनात्म है -

वह न मेरा है,

न मैं हु,

न वह मेरी अत्म्या है।

इसे यथार्थतः प्रज्ञापूर्वक जान लेना चाहिए।


भिक्षुओं!

श्रोत्र अनित्य है।श्रोत्र द्वारा सुना संसार के सभी शब्द भी अनित्य है।

जो अनित्य है वह दुख है।

और जो दुख है वो अनात्म है।

जो अनात्म है,

वो न मेरा है,

न मैं हु,

न वह मेरी आत्मा है।

इसे यथार्थतः प्रज्ञापूर्वक जान लेना चाहिए।


भिक्षुओं!

घ्राण अनित्य है।घ्राण द्वारा सूंघी गई संसार की सारी गंध भी अनित्य है।जो अनित्य है वह दुख है।

और जो दुख है अनात्म है।

जो अनात्म है,

वह न मेरा है,

न मैं हु,

न वह मेरी अत्म्या है।

इसे यथार्थतः प्रज्ञापूर्वक जान लेना चाहिए।


भिक्षुओं!

जिव्हा अनित्य है।जिव्हा द्वारा स्वादन संसार का सभी रस भी अनित्य है।जो अनित्य है वह दुख है।

जो दुख है वो अनात्म है।

जो अनात्म है ,

वह न मेरा है,

न मैं हु,

न वह मेरी अत्म्या है।

इसे यथार्थतः प्रज्ञापूर्वक जान लेना चाहिए।


भिक्षुओं!

काया अनित्य है।काया द्वारा छुआ संसार का सभी स्पर्श  भी अनित्य है।जो अनित्य है वह दुख है।

जो दुख है वो अनात्म है।

जो अनात्म है,

वह न मेरा है,

न मैं हु,

न वह मेरी अत्म्या है।

इसे यथार्थतः प्रज्ञापूर्वक जान लेना चाहिए।

भिक्षुओं!

मन अनित्य है।मन द्वारा उठी संवेदना से संसार के सभी धर्म भी अनित्य है।जो अनित्य है वह दुख है।

जो दुख है वो अनात्म है।

जो अनात्म है ,

वह न मेरा है,

न मैं हु,

न मेरी अत्म्या है।

इसे यथार्थतः प्रज्ञापूर्वक जान लेना चाहिए।


भिक्षुओं!

इसे जान प्रज्ञावान आर्यश्रवक -

चक्षु से वैराग्य करता है,

श्रोत्र से वैराग्य करता है,

घ्राण से वैराग्य करता है,

जिव्हा से वैराग्य करता है,

काया से वैराग्य करता है,

मन से वैराग्य करता है।


वैराग्य करने से रागरहित हो जाता है।

रागरहित होने से विमुक्त हो जाता है।

विमुक्त हो जाने से 'मैं' विमुक्त हो गया 

ऐसा ज्ञान होता है।तब उसका जाती/जन्म

क्षीण हो जाता है।उसका ब्रह्मचर्य पूरा हो गया

जानता है।संसार मे जो करना था सो कर लिया

अब मेरा पुनः जन्म नही होगा ये वह जान लेता है।

अनित्य सुत्त

 २९/११/२०२४ भवतु सब्ब मंगलं

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