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मातादीन वाल्मीकि जयंती पर विशेष

 

*मातादीन वाल्मीकि जयंती पर विशेष


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*✍1857 की क्रांति के जनक ब प्रथम शहीद महान  क्रांतिकारी भारतीय वीर सपूत मातादीन वाल्मीकि/मेहतर जी की जयन्ती 29 नवम्बर की हार्दिक बधाई ब उन्हें शत शत नमन🙏*

वैसे तो 1857 की क्रांति की पटकथा 31 मई को लिखी गई थी,लेकिन मार्च में ही विद्रोह छिड़ गया। दरअसल जो जाति व्यवस्था हिन्दू धर्म के लिए हमेशा कलंक अभिशाप रही,उसी ने क्रांति की पहली नीव रखी हुआ यह था कि बैरकपुर छावनी कोलकत्ता से मात्र 16 किलोमीटर की दूरी पर था। फैक्ट्री में कारतूस बनाने वाले मजदूर मुसहर अछूत समझी जाने वाली वाली हेला, भंगी,मेहत्तर वाल्मीकि जाति के थे। एक दिन वहां से एक मुसहर मजदूर सैनिक छावनी आया। उस मजदूर सैनिक का नाम मातादीन वाल्मीकि था जो पहलवानी के भी बड़े उस्ताज थे जिन्हें हिन्द ए रुस्तम का खिताब मिला था। मातादीन को प्यास लगी,तब उसने मंगल पांडे नाम के सैनिक से पानी मांगा। मंगल पांडे ने ऊंची जाति ब्राह्मण का होने के कारण उसे पानी पिलाने से इंकार कर दिया कहा जाता है कि इस पर मातादीन वाल्मीकि बौखला गया और उसने कहा कि कैसा है तुम्हारा धर्म जो एक प्यासे को पानी पिलाने की इजाजत नहीं देता और गाय जिसे तुम हम लोग मां मानते हैं,सूअर जिससे मुसलमान नफरत करते हैं,लेकिन उसी के चमड़े से बने ब चर्बी लगे कारतूस को मुंह से खोलते हो। मंगल पांडे यह सुनकर चकित रह गए। उन्होंने मातादीन को पानी पिलाया और इस बातचीत के बारे में उन्होंने बैरक के सभी लोगों को बताया। इस सच को जानकर मुसलमान सैनिक भी बौखला उठे।इसके बाद मंगल पांडे ब सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। मातादीन वाल्मीकि द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिंगारी ने ज्वाला का रूप ले लिया।

*अंग्रेजो ने जो चार्ज सीट बनाई उसमे पहला नाम मातादीन वाल्मीकि का था ।केप्टन राइट ने एक पत्र मेजर वोनटीन दमदम के नाम 22 जनवरी 1857 को लिखा था जिसमें मातादीन द्वारा गुप्त जानकारी सैनकों को देकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ साजिश विद्रोह बर्तालाप आदि का उल्लेख था।इस प्रकार 29 नवम्बर 1825 में जन्में महान क्रांतिवीर मातादीन वाल्मीकि को 8 अप्रेल 1857 को फाँसी दी गई जो कि मंगल पांडे के पहले दी गई। शहीद मातादीन वाल्मीकि जी का नाम आज भी मेरठ /कानपुर आदि की शिलाओं पर भी अंकित है।*

एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की छावनी में सैनिकों ने बगावत कर दिया। बाद में क्रांति की ज्वाला पूरे उत्तरी भारत में फैल गई। अतः मातादीन वाल्मीकि को 1857 की क्राँति का जनक और प्रथम शहीद मानते हुये हम नमन करते हैं🙏।

*हमारा मकसद महान क्रांतिकारी अमर शहीदों को जातपात धर्म क्षेत्र छोटा बड़ा आदि में बांटकर नया विवाद खड़ा करना नहीं है बल्कि अनुरोध है कि वाल्मीकि समाज में इस विषय पर रोष पाया जाता है कि 1857 पूर्व से लेकर आज तक इस सेवाभावी/ स्वच्छकार देशभक्त कोम वाल्मीकि समाज को जो बाजिब स्थान और सम्मान नही मिल सका है वह शासन प्रशासन ब समाज में मिलना चाहिए।हम अन्य शहीदों का भी सम्मान करते हैं एबं चाहते हैं कि छुआछूत और जातिगत भेदभाव हर स्तर पर समाप्त हो वाल्मीकि समाज सहित हर जनसामान्य भारतीय को नई सामाजिक समरसता समानता की क्रांति की अलख जगाना होगी।तभी हमारे देश में एकता भाईचारा और अधिक मजबूत होगा।*

*यही सभी क्राँतिवीर शहीद सपूतों को वास्तविक हमारी श्रंद्धांजलि होगी भारत की सदा ही जय हो विजय हो🇮🇳🙏*

सादर,

      *लाखाराम उटवाल*

      वरिष्ठ प्रदेश महामंत्री

*म प्र महावाल्मीकि पंचायत*

         मो 7869656226

( विचार स्रोत-शिलालेख ब वाल्मीकि समाज के बुद्धिजीवियों, इतिहासकारों ब सोसल मीडिया ब सामाजिक संगठनों पर आधारित)

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