*~~~~~~हो चुकी देर है~~~~~*
*~~~~~अब तो अंधेर है~~~~~*
*छोड़ कर के कदम वे चले ही नहीं,*
*किस तरह से उन्हें फिर फँसाया गया।*
आज तक वे गुलामों के मानिंद हैं,
बिन हँसी के उन्हें फिर हँसाया गया।
*अब तो चेहरे सभी के हैं उतरे हुये,*
*पद गया कोई भी भाव देता नहीं।*
एक भी न मिला उनकी चौपाल में,
क्या किसी को कोई घाव देता नहीं ?
*हो चुकी देर है अब तो अंधेर है,*
*आने वाले ही इसको घटा पायेंगे।*
जिस तरह से पटे लोग इस दौर के,
इस तरह से कभी न पटा पायेंगे।
*जो बिके कौड़ियों में अभी तक यहाँ,*
*उनको बंगले सजाये हुये मिल रहे।*
हो चुकीं बन्द काफी प्रथाएं यहाँ,
फिर भी बाजे बजाये हुये मिल रहे।
*वे समझते हैं उनको बड़ा पद मिला,*
*इसलिये उनके पीछे जमाना चला।*
भूल जाते हैं बर्बाद सब कर दिया,
कब तलक उनका नचना नचाना चले।
*साँप हरियाली में छिप के बैठे हुये,*
*जानते ही नहीं क्यों डंसाया गया ?*
जब जरूरत हमें आ पड़ी काम की,
देख लो किस तरह कसमसाया गया ?
*छोड़ कर के कदम वे चले ही नहीं,*
*किस तरह से उन्हें फिर फँसाया गया।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
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दिनांक: 29.11.2024
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