हिंदू इस तथ्य से परिचित नहीं हैं कि शिव एक अवैदिक और अनार्य देवता हैं। हिंदू उन्हें वेदों में उल्लिखित रुद्र देव से जोड़ते हैं। हिंदू मानते हैं कि #रुद्र और #शिव एक ही हैं। यजुर्वेद की तैत्तिरीय संहिता में रुद्र की स्तुति करते हुए एक ऋचा है। इस ऋचा में रुद्र अर्थात शिव को चोरों, दस्युओं और डकैतों का देवता और पतितों, कुम्हारों और लुहारों का राजा बताया गया है। प्रश्न यह है कि ब्राह्मणों ने चोरों और डाकुओं के देव को अपना परमदेव कैसे मान लिया ?
रुद्र को अपने #आराध्य भगवान शिव के रूप में स्वीकार करते हुए #ब्राह्मणों ने रुद्र के चरित्र में एक परिवर्तन किया। आश्वलायन गृह्यसूत्र में रुद्र की उपासना की विधि बताई गई है। उसके अनुसार, रुद्र की उपासना में #वृषभ की बलि दी जाती है। इस सूत्र में बलि देने के लिए उपयुक्त #ऋतु और नक्षत्र का भी उल्लेख है। इसमें गृहस्थों से कहा गया है कि वे अपने बाड़े के सर्वश्रेष्ठ वृषभ का चयन करें। उसका रंग निर्धारित करते हुए कहा गया है कि वह मोटा- ताजा होना चाहिए। उसे चावल के मांड और जौ के पानी से पवित्र किया जाना चाहिए। फिर, रुद्र के विभिन्न नामों का उच्चारण करते हुए उसकी बलि चढ़ाई जानी चाहिए और उसकी पूंछ, खाल, सिर और पैर #अग्नि में डाल दिए जाने चाहिए। स्पष्ट है कि रुद्र एक हिंसक देव थे, जिन्हें प्रसन्न करने के लिए पशु बलि आवश्यक थी। दूसरी ओर, शिव एक #अहिंसक देव हैं। उन्हें बलि नहीं चढ़ाई जाती। प्रश्न यह है कि ब्राह्मणों ने शिव से मांसाहार क्यों छुड़वाया और उन्हें शाकाहारी क्यों बना दिया ?
पूरे भारत के हिंदू बिना #लज्जा या ग्लानि के लिंग या शिश्न की पूजा का महत्व स्वीकारते हैं। शिश्न की पूजा शिव से जुड़ी है और सामान्यतः यह माना जाता है कि शिव की पूजा करने की सही विधि लिंग की पूजा करना ही है। क्या लिंग की पूजा सदा से शिव से जुड़ी हुई थी ? प्रोफेसर दांडेकर " ने अपने लेख विष्णु इन द वेदाज' में लिखते हैं: कई रोचक तथ्य उजागर किये हैं...!!!
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