"दुखिया का दु:ख दुखिया जाने, का दुखिया की माई।
जाके पांव न फटे बेवाई, वो का जाने पीर पराई।"
अर्थ:
जो स्वयं दुखी है या जिसने पीड़ा को झेला है, वही दूसरे के दुख को समझ सकता है। जैसे, जिसकी एड़ी (पांव) कभी फटी ही नहीं, वह फटी एड़ी की पीड़ा को नहीं समझ सकता। इसी प्रकार, जो व्यक्ति कभी किसी कष्ट से नहीं गुजरा, वह दूसरों के दुख को महसूस नहीं कर सकता।
जातिवाद भेदभाव ऊंच नीच की बीमारी का उपचार सिर्फ- *इंटरकास्ट सम्बन्ध*
इसके अतिरिक्त चाहे जितने ग्रुप , भाषण, संगठन, कार्यक्रम आयोजित कर लो कुछ परिवर्तन होने वाला नही है। ।
।।जय अर्जक। ।
दिलीप सिंह पटेल
बांदा उत्तर प्रदेश। ।
Right 👍 और ऐसे ही 15%मनुवादियों को 85%sc st OBC समाज वाले सता देकर मनुवादियों के मानसिक गुलाम बने रहेंगे , तभा बारी बारी से जुल्म अत्याचार सहते रहेंगे।10 बीस इक्ट्ठा होकर एक दो
दिन धरना प्रदर्शन करेंगे और फिर अपने अपने घर आकर फिर किसी और के खिलाफ जुल्म अत्याचार का इंतजार करेंगे। और हजारों साल से यही होता चला आ रहा है। जय भीम जय संविधान।
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