💐संत रैदास 💐
👉संत रविदास जी ने भक्ति के विरोध में लम्बी कविता लिखी। कविता का शिर्षक है,
‘भक्ति भ्रम है सो जान।’ अर्थात भक्ति एक भ्रम है।
भ्रम यह एक मानसिक बिमारी है। ब्राह्मण हम लोगों को भक्ति के नाम पर बिमार बनाये रखना चाहते हैं। जो मानसिक रूप से बिमार होते हैं उन्हें काबू में रखना, उन्हें गुलाम बनाए रखना बहुत आसान होता है।
👉मूलनिवासी संतों का आंदोलन भक्ति का आंदोलन नहीं था। संत हमारे आज़ादी के लिए ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरोध में, जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था, अस्पृश्यता के विरोध में विद्रोह का आंदोलन चला रहे थे।
संतों के इस विद्रोह की वजह से ब्राह्मणों ने हमारे मूलनिवासी संतों की हत्याएँ करने का प्रयास किया, इसी कारण रैदास जी को हत्या की,कुछ प्रमुख संतों की हत्याएँ की।
👉जाति-जाति में जाति है, ज्यों केलन में पात।
रैदास मानुष ना जुड़ सके, ज्यों लो जाति न जात।।
सतगुरु रविदास जी जाति व्यवस्था के विषय में बता रहे हैं कि जाति में जाति और उस जाति में भी जाति, बिल्कुल केले की जैसे, उसके तने से छिलका उतारो, फिर एक परत उतारो और परत उतारते ही जाओ। छिलका उतारते - उतारते पेड़ समाप्त हो जाएगा, ठीक उसी तरह जाति में जाति बताते बताते मानवता समाप्त हो जाती है, परंतु जाति खत्म नहीं होती है। अतः जाति व्यवस्था ही खत्म करनी चाहिए, चूँकि इसके रहते हुए मनुष्यों में प्यार मोहब्बत हो ही नहीं सकती, जाति आपसी प्रेम में बड़ी बाधा है।
जय गुरु रविदास ✍️✍️✍️साभार---सोशल मीडिया। 💐🙏😊सुरेश पहाड़े, जबलपुर
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