सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

उदारवादी-दक्षिणपंथी मध्यवर्ग

 






*उदारवादी-दक्षिणपंथी मध्यवर्ग का तो समझ में आता है- खुद को वामपंथी और आंबेडकरवादी कहने वालों को क्या हो गया है? संदर्भ: मनमोहन सिंह*


*Siddharth Ramu*


*सोशल मीडिया में मनमोहन सिंह की किन शब्दों में और कितना चढ-बढ़कर तारीफ किया जाए, इसमें उदारवादियों-दक्षिणपंथियों की होड़ तो समझ में आती है, लेकिन खुद को वामपंथी और आंबेडकरवादी कहने वाले किस जमीन पर मनमोहन सिंह की तारीफ में जमीन-आसमान एक किए हुए हैं, यह समझ में नहीं आ रहा है-*


● फिलहाल संसदीय वामपंथियों को लेते हैं- 


*सबको याद होगा कि जब मनमोहन सिंह की सरकार न्यूक्लियर डील के नाम पर पूरी तरह अमेरिका की गोद में बैठने का निर्णय लिया था, तो वामपंथी पार्टियों ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. उनका यह निर्णय सही भी था. यह सिर्फ अमेरिका की गोद में बैठना नहीं था, बल्कि पश्चिमी साम्राज्यवाद विरोध की स्वतंत्रता आंदोलन की बची-खुची थोड़ी सी विरासत को भी अंतिम तौर पर खत्म करने का निर्णय था. एक दूसरे अर्थों में भारत की संप्रभु और स्वतंत्र विदेश नीति से पूरी मुंह मोड लेने का निर्णय था.*


भारत की अर्थव्यवस्था को पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था से पूरी तरह नत्थी कर देने का निर्णय था. 


*भारत का इजरायल प्रेम और फिलिस्तिनियों से मुंह मोड़ने की शुरूआत इसी दौर में हुई थी,* जो आज परवान पर है. इजरायल द्वारा कत्लेआम के बाद भी चुप्पी.


*संसदीय वामपंथी पार्टियों ने  इसका विरोध करते हुए मनमोहन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. क्या इस समय इस बारे में संसदीय वामपंथियों की राय बदल गई है?*


नक्सलवाद-आतंकवाद देश की आंतरिक शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा है- इस पर आज क्या राय है?


*मनमोहन सिंह देश के पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने खुलेआम यह घोषणा किया था कि नक्सलवाद देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है. उनके गृहमंत्री ने नक्सलवाद के खात्में के नाम पर देश के विभिन्न हिस्सों के आदिवासियों के कार्पोरेट विरोधी संघर्षों को कुचलने के जो योजना बनाई और उसे अंजाम दिया, उसे ही तो आज के गृहमंत्री "अमित शाह" अंतिम रूप दे रहे हैं!*


*आदवासियों के जल, जंगल और जमीन बचाने के संघर्ष को इसी नक्सलवाद-माओवाद को बदनाम करके कुचला गया और कुचला जा रहा है, ताकि देश-दुनिया के कार्पोरेट के लिए आदिवासी इलाकों के अकूत प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा जमाने का रास्ता साफ किया जा सके. जो भी इसका विरोध करता है या जो कोई इस विरोध में आदिवासियों का साथ देता है, उस सबको नक्सली-माओवादी या अर्बन नक्सल ठहरा दिया जाता है.* 


अर्बन नक्सल शब्द मनमोहन के गृहमंत्री चिदंबर का दिया हुआ है.


*जिस साईं बाबा का भारतीय राज्य ने कत्ल कर दिया, उन्हें नक्सली-माओवादी और देश के लिए खतरनाक मनमोहन-चिदंबर की जोड़ी ने ठहराया था.* 


ऐसे और कितन लोग?

*कबीर कला मंच के लोगों के लिए जेल का रास्ता किसने खोला? सलवा जुडुम खड़ा करके आदिवासियों एक समूह को दूसरे के खिलाफ हिंसा के लिए तैयार करना और उन्हें हथियारबंद करना किसका काम था?*


*आतंकवाद को *मुस्लिम आतंकवाद का पर्याय* भी इस दौर में बनाया गया है.


*मनमोहन सिंह की सरकार में कितने मुस्लिम नौजवानों को आतंकी के नाम पर मारा गया, बाटला हाऊस कांड तो सबको याद ही होगा.*

*निर्दोष अफजल गुरू को आतंकी ठहराकर किसके दौर में और किस तरह फांसी दी गई; क्या सब कुछ भुला दिया जाए?*


● भारतीय अर्थव्यवस्था और मनमोहन सिंह- 


*यह सच है कि मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण और देश अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण (साम्राज्यवादीकरण) की शुरूआत करके एक बड़ी संख्या में अरबपति पैदा किए,* उसके साथ ही एक मध्यवर्ग पैदा हुआ. दुनिया भर के सामान भारत के पैसे वाले खरीद सकें, यह सुविधा उपलब्ध कराई. भारतीय अपने बेटे-बेटियों को बड़ी संख्या में विदेशों में पढ़ा सके, इसके लिए रास्ता पूरी तरह खोल दिया. 


*भारत की आबादी एक हिस्सा आज दुनिया के, विशेषकर यूरोप-अमेरिका के लोगों के बराबर की जिंदगी जी रहा है, सुख-सविधाएं उठा रहा है, यह मनमोहन सिंह की देन है.*


पर सवाल है कि किसकी कीमत पर? इसके सबसे अधिक कीमत किन लोगों ने चुकाई है?


पहले सामाजिक समूह के तौर पर आदिवासी थे और हैं. इस दौर में उन्हें किस तरह उजाड़ा गया है, कैसे उनसे उनका जल, जंगल और जमीन छीना गया है, यह आंकड़े खूब उस समय आत थे, आज भी उपलब्ध हैं. *मनमोहन सिंह का दौर आदिवासियों के उजाड़ने, उनकी तबाही-कंगाली, उनकी हत्या और उन्हें जेलों में ढूंसने का दौर रहा है*. 


*शहरी मध्यवर्गीय समुदाय यह सब कुछ भूल कर चुका है, क्योंकि मनमोहन सिंह ने उसके खुद उसके स्वार्थों को पूरी किया थ,  वे आज मनमोहन सिंह का गुणगान कर रहा है*.


*आदिवासियों के बाद किसानों ने मनमोहन सिंह के आर्थिक मॉडल की सबसे अधिक मार सही. लाखों किसान आत्महत्या को बाध्य हुए. लाखों की जमीन छीन कर पूंजीपतियों की दे दी गईं*.


*मध्यवर्ग की आज दिख रही समृद्धि की कीमत आदिवासियों और किसानों ने चुकाई है;* लेकिन आज उनकी तरफ से बोलने वाला कोई नहीं, जिनको मनमोहन सिंह की नीतियों से फायदा हुआ. आज उन्हीं के पास आवाज है, उन्हीं की आवाज सुनाई दे रही है. किसानों की लाखों विधवाओं से जाकर पूछना चाहिए, मनमोहन सिंह ने उन्हें क्या दिया था? 


● *मनमोहन के आर्थिक मॉडल की मार आदिवासियों-किसानों के साथ जिस वर्ग ने सबसे अधिक चुकाई वह मेहनतकश वर्ग है, विशेषकर असंगठित क्षेत्र का. इस आर्थिक मॉडल के नाम पर ट्रेड यूनियनों को खत्म करने, काम के घंटे बढ़ाकर, मजदूरों की सुविधाएं और अधिकार छीनकर उन्हें पूरी तरह मालिकों की कृपा पर जीन के लिए मजबूर कर दिया गया!*


● अंतिम तौर पर देश के सार्वजनिक संसाधनों और प्राकृतिक संसाधनों की लूट की छूट देकर ही यह सारा विकास का तामझाम खड़ा किया गया. 


*बैंक की पूंजी कार्पोरेट की पूंजी बन गई, 50 सालों में विकसित सार्वनिक क्षेत्र की कंपनिया रातों-रात पूंजीपतियों की कंपनियां बन गईं. खेत, खदान, नदी-नाले, जंगल-जमीन सब कार्पोरेट का,जब चाहें ले लें*.


● *निजीकरण* ने *आरक्षण* का खात्मा सा कर दिया- 


*सरकारी नौकरी में ही आरक्षण मिल सकता है. मनमोहन सिंह ने जो आर्थिक मॉडल देश के दिया उसमें सरकारी नौकरी नहीं के बराबर या कम से कम करना ही उसका सिद्धांत और व्यवहार था. नौकरियों में आरक्षण खत्म करने की घोषणा किए बिना, मनमोहन सिंह और उनके आर्थिक मॉडल ने आरक्षण के बड़े-हिस्से का खात्मा कर दिया! रेलव आदि की उदाहरण से आप इसे देख सकते हैं.*


*जो नई अर्थव्यवस्था बनी, उसमें  थोड़े से दलित,आदिवासियों और पिछड़ों को जगह तो मिली, लेकिन बहुलांश के लिए मजदूरी के आलावा कोई रास्ता नहीं बचा.*


● संपत्ति का बडे़ पैमाने पर सवर्णों को हस्तानांतरण काल मनमोहन का काल-


*इस दौर में सेवा क्षेत्र, अर्थव्यवस्था का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा बना. इसके बहुलांश हिस्से ( करीब 80 प्रतिशत) पर इस देश के द्विज-सवर्णों और कुछ पुरानी शासक जातियों का नियंत्रण कायम हुआ.* 


इसके साथ ही नए तरह के उद्योग-धंधो जैसे अंबानी-अणानी के विकसित हुए, उसके बहुलांश हिस्से की सवर्ण-द्विज जातियां मालिक बनी. 


*जिन मुट्ठीभर एक 1 % लोगों या 10 % लोगों के पास आज देश की बहुलांश संपत्ति और संपदा का मालिकाना  है, उसमें में नहीं के बराबर दलित, आदिवासी है, पिछड़े की संख्या भी बहुत ही कम है.*


इसी मॉडल के चैंपियन मनमोहन सिंह थे.


*जो जिसका खाता है, वह उसका गाता है. भारत का शासक वर्ग और उसकी जूठन पाने वाला भारत का मध्यवर्ग आज मनमोहन का गुणगान कर रहा है, कोई आश्चर्य की बात नहीं है, जो जिसका खाता है, वह उसका गाता है. यह काम तो कुत्ता-बिल्ली, यहां तक सुग्गा भी करते हैं.*

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ये राजस्थान भाजपा सरकार की डिप्टी सीएम प्रिंसेस दिया कुमारी हैं

  ये राजस्थान भाजपा सरकार की डिप्टी सीएम प्रिंसेस दिया कुमारी हैं ‌ इनके परदादा के परदादा थे मान सिंह,  मान सिंह की बहन थी जोधा बाई,  जोधा बाई के पोते का नाम था औरंगजेब। औरंगजेब के रीश्तेदारों को भाजपा डिप्टी CM बनाती हैं, और उधर अंधभक्त औरंगजेब को गालियां देते हैं! भाजपा गड़े मुर्दे उखाड़ती है तो यहाँ गड़ा इतिहास उखाड़ लाया गया है।

वो कौन VIP था जिसके साथ सोने से इनकार करने पर अंकिता को इतनी बड़ी सज़ा मिली?

  वो कौन VIP था जिसके साथ सोने से इनकार करने पर अंकिता को इतनी बड़ी सज़ा मिली?  क्या देश उस ‘VIP’ को पहले से जानता है?  उस VIP का नाम कभी बाहर क्यों नहीं आया? अंकिता भंडारी की हत्या इसलिए की गई क्योंकि उसने रिजॉर्ट में रुके किसी ‘VIP’ गेस्ट के साथ सोने से इनकार कर दिया था. महिला सशक्तिकरण?? 🤔🤨🤨😏

उत्तर प्रदेश सिविल जज परीक्षा (पी०सी०एस० जे)

  उत्तर प्रदेश सिविल जज परीक्षा (पी०सी०एस० जे) का परिणाम रैंक सहित सूची पर जरा गौर करें... 1.आकांक्षा तिवारी      रैंक 1  2.प्रतीक त्रिपाठी         रैंक 3 3.मीता पांडेय             रैंक 7 4.अनीमा मिश्रा           रैंक 13 5.सौरभ शुक्ला           रैंक 16 6.प्रशांत शुक्ला           रैंक 17  7.सौरभ पांडे              रैंक 20  8.ज्योत्सना राय          रैंक 21 9.रीचा शुक्ला             रैंक 24 10.रूचि कौशिक        रैंक 27 11.सौम्य भारद्वाज      रैंक 30  12.सौम्य मिश्रा          रैंक 34 13.वरूण कौशिक      रैंक 37  14.देवप्रिय सारस्वत    रैंक 38 15.सोनाली मिश्रा        रैंक 40  16.शिप्रा दुबे  ...