🌻धम्म प्रभात🌻
एक समय भगवान श्रावस्ती में अनाथपिण्डिक के जेतवन आराम में विहार कर रहे थे ।
उस समय, भिक्षाटन से लौट, भोजन कर लेने के बाद, सभागृह में इकट्ठे होकर बैठे हुए कुछ भिक्षुओं के बीच यह बात चली - " आवुस! कौन शिल्प जानता है ? किसने क्या शिल्प सीखा है ? कौन शिल्प सबसे अच्छा है ?"
कितनों ने कहा- हाथी , घोड़ा , रथ का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है। कितनों ने कहा -धनुष का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है। कितनों ने कहा-तलवार भाले का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा- हस्तरेखा का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा- गिनती करने का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा- हिसाब लगाने का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा -लिखा पढ़ी का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा - कविता करने का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा-झूठे तर्क करने का शिल्प अच्छा है। कितनों ने कहा-खेत के नाप जोख करने तथा पहचानने का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है ।
उन भिक्षुओं में यह बात चल ही रही थी तब भगवान सायंकाल की समाधि से उठ,जहाँ सभागृह था, वहां गए, जाकर बिछे आसन पर बैठ गए। बैठकर भगवान ने भिक्षुओं को आमन्त्रित किया, “भिक्षुओ ! तुम लोग यहाँ बैठकर क्या बात कर रहे थे— किस बात में लगे थे ?"
भन्ते ! भिक्षाटन से लौट, भोजन कर लेने के बाद, करेरी सभागृह में इकट्ठे होकर बैठे हुए हम लोगों के बीच यह बात चली -
" आवुस! कौन शिल्प जानता है? किसने क्या शिल्प सीखा है ? कौन शिल्प सबसे अच्छा है ?"
कितनों ने कहा- हाथी , घोड़ा , रथ का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है। कितनों ने कहा -धनुष का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है। कितनों ने कहा-तलवार भाले का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा- हस्तरेखा का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा- गिनती करने का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा- हिसाब लगाने का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा - लिखा पढ़ी का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा - कविता करने का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है।
कितनों ने कहा-झूठे तर्क करने का शिल्प अच्छा है। कितनों ने कहा-खेत के नाप जोख करने तथा पहचानने का शिल्प सभी शिल्पों से अच्छा है ।
भन्ते ! भिक्षाटन से लौट भोजन कर लेने के बाद, सभागृह में इकट्ठे होकर बैठे हुए हम लोगों में यह बात चल ही रही थी कि आप भगवान पधारे।
भिक्षुओ ! श्रद्धापूर्वक घर से बेघर हो प्रब्रजित हुए तुम कुलपुत्रों को ऐसी- ऐसी बातों में पढ़ना उचित नहीं ।
भिक्षुओ ! इकट्ठे होकर बैठने पर तुम्हें दो ही काम करने चाहिए-
(१) धार्मिक कथा,
(२) या उत्तम मौन भाव
उस समय भगवान के मुह से उदान के शब्द निकल पढ़े-
“असिप्पजीवी लहु अत्थकामो,
यतिन्द्रियो सब्बधि विप्पमुत्तो।
अनोकसारी अममो निरासो,
हित्वा मानं एकचरो स भिक्खूति॥
'बिना शिल्प का जीने वाला,
अल्पेच्छ, यतेन्द्रिय, बिलकुल स्वच्छन्द, वे घर का स्वार्थ और तृष्णा से रहित, मार को नष्ट-भ्रष्ट कर भिक्षु अकेला चलता है। ”
नमो बुद्धाय🙏🙏🙏
Ref: सिप्प सुत्त: खुद्दकनिकाय
26.01.2025
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