देश आजादी से पहले और देश आजाद होने के 78 वर्ष बाद अन्नदाताओं का अपमान लगातार होता आ रहा है जबकि भारत की पावन धरती पर ही नहीं वर्ल्ड में तथा पवित्र धर्म ग्रंथो में किसान को ईश्वर का स्वरूप बताया गया है आशा और उम्मीद के साथ वोट देकर किसान सरकार बदलता हैं कि उसका हक अधिकार मिलेगा लगभग 70% भारत की आर्थिक व्यवस्था को किसान अपने कंधों पर संभाले हुए हैं तथा देश की सीमाओं की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने में लगभग 60% किसान के बेटे मुख्य भूमिका निभा रहे हैं
सत्ता में आने के लिए तथाकथित नेता किसान के बेटे बनकर वोट मांगते हैं वादा करते हैं हमारी सरकार बनाए हम किसानों का सबसे ज्यादा भला करेंगे सत्ता में आने के बाद भूल जाते हैं अपने किए वादे को किसान अपनी जायज मांगों को लेकर सड़कों पर आकर आंदोलन करें, तो किसान को अलगाववादी, पाकिस्तानी, खालिस्तानी, आतंकवादी, परजीवी, आंदोलन जीवी, अनेक नामो से अपमानित कर लाठी डंडों एवं संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज कर जेल में डालकर मानो सम्मान किया जाता है नहीं समझते की जिस दर्द को लेकर किसान सोता है उसी दर्द को लेकर जगता है 24 घंटे उम्मीद की किरण ढूंढता है पुण्य का ही काम करता है गहरे समंदर जैसे दर्द को महसूस करके परिवार की परवरिश में जी तोड़ संघर्ष करता रहता है हिम्मत उम्मीद अगर टूट जाती है तो मौत को गले लगा लेता है अपने परिवार के लिए गमों का पहाड़ छोड़कर दुनिया से अलविदा कह जाता है
बारी-बारी से सत्ता में आने वाले लोग झूठी सहानुभूति देकर पल्ला झाड़ लेते हैं अन्नदाता पर मौसम की मार, सूखा, बरसात, बे मौसम बरसात, पानी की बाढ़, सर्दी, गर्मी, बीमारी, खरपतवार, कीट पतंगा, साहूकार, सरकार, आवारा पशु , जंगली जानवर, चोर बदमाश, आदि किसान को नुकसान पहुंचाते ही रहते हैं, सरकारी मुलाजिम, वोट लेकर जीतने वाले नेता, बिजनेसमैन, आदि हर वर्ष महंगाई भत्ता आदि सुविधाएं लेते रहते हैं देश में कारीगर भी अपने सुविधा अनुसार पैसे वसूलता है अन्य सामान बनाने वाले अपने माल की कीमत खुद तय करते हैं या सरकारों द्वारा सुनिश्चित करा लेते हैं, देश में किसान लगभग 85 मुख्य फसले पैदा करता है
1966 में सांसद की सैलरी लगभग 3500 रुपए थी अन्य सुविधा अलग से थी अब सांसद की सैलरी ₹100000 से ऊपर है महीने में लगभग ₹300000 अन्य भत्ता अनुसार खर्च होते हैं बाकी तो बुद्धिजीवी भली भांति जानते हैं बहुत से सांसद क्या-क्या तिकड़म करते हैं प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री एवं मंत्रियों तथा राज्यपालों पर काफी अधिक पैसा खर्च होता है 1966 में पेट्रोल लगभग ₹3.60 मैं 5 लीटर मिलता था एवं डीजल लगभग ₹3.50 मैं 5 लीटर मिलता था आज डीजल या पेट्रोल 1 लीटर ₹90 से ऊपर मिलता है
1966- 67 में 23 फसलों पर msp गारंटी कानून लागू हुआ गेहूं की फसल पर 54 रुपए प्रति क्विंटल तय हुआ इस समय गेहूं पर 2425 रुपए प्रति क्विंटल है आज भी लगभग 23 फसलों पर msp है लेकिन लगभग 14% ही msp पर खरीदारी होती है, बाकी तो कम रेट पर ही किसान का माल खरीदा जाता है भारत कृषि प्रधान देश कहा जाता है सभी फसलों पर msp नहीं मिलने से किसानों का हर वर्ष लगभग 15 लाख करोड रुपए का नुकसान हो रहा है जिसका लाभ व्यापारी एवं सरकार ले रही हैं लगातार विदेश का दौरा करने वाले भारत के प्रधानमंत्री को समझना चाहिए कि अमेरिका अपने हर किसान को वर्ष में लगभग 45 लाख रुपए सब्सिडी देता है भारत में हर किसान को वर्ष में लगभग ₹15000 सब्सिडी मिलती है सच्चाई यह भी है भारत में सब्सिडी सभी किसानों को नहीं मिलती है सर्वे के मुताबिक एक किसान की औसत आय 27 रुपए है आखिर कौन सुनेगा अन्नदाता की
कोविद-19 के दौरान लोकसभा में 17 सितंबर 2020 को राज्यसभा में 20 सितंबर 2020 को विधेयक को मंजूरी दी तथा भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 27 सितंबर 2020 को अपनी सहमति दे दी कृषि बिल पूरी तरह से लागू हो गया बुद्धिजीवी किसानों को ज्ञात हुआ कि अदानी की डील पक्की हो गई देश में लगभग 9500 गोदाम बनाने का सरकार द्वारा एग्रीमेंट हो गया सरकारी मंडियां समाप्त हो जाएगी आडती का लाइसेंस भी समाप्त हो जाएगा केवल व्यापारी किसान के माल को कुछ दिनों के बाद अपने मन माने तरीके से खरीदेगा किसान की हालत मजदूर से भी बदतर हो जाएगी किसान अपने ही खेत में मजदूर बनकर रह जाएगा अपनी मर्जी से फसल में लागत नहीं लगा पाएगा तथा किसान कॉन्टैक्टर के रूप में अपने खेत में कार्य करेगा उसके बाद देश की लगभग 90% जनता खाने-पीने की वस्तुओं को दुगने दामों में खरीदने पर मजबूर होगी
इसीलिए किसानों ने सभी फसलों पर msp का गारंटी कानून बनवाने के लिए 26 नवंबर 2020 से 9 दिसंबर 2021 तक लगभग 380 दिन तक तीन कृषि अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली के चारों तरफ शांति प्रिय तरीके से विरोध आंदोलन किया था केंद्र ने किसानों को रामलीला मैदान में जाने से रोकने के लिए सीमाओं जैसी बाढ़ लगा दी थी हर परिस्थिति में किसानों ने धैर्य नहीं छोड़ा अड़े रहे जिसमें लगभग 17 मांगे सरकार के सामने रखी किसान एवं सरकार द्वारा लगभग 11 बार की वार्ता विफल रही 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कृषि बिल लागू करने पर रोक लगा दी चार सदस्यों की कमेटी गठित कर केंद्र सरकार को निर्देशित किया कि अगले आदेश तक कृषि बिल लागू नहीं किया जाए केंद्र सरकार ने लगभग 28 सदस्यों की कमेटी गठित कर अन्नदाताओं को आश्वासन दिया 6 महीने के बाद सभी मांगों का निस्तारण कर दिया जाएगा पांच राज्यों में चुनाव नजदीक थे किसानो की नाराजगी को देखते हुए 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री ने तीन कृषि बिलों को वापस लेने की घोषणा कर दी 26 जनवरी 2021 का दिल्ली ट्रैक्टर परेड इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया
केंद्र सरकार के वादा खिलाफी के अनुसार पंजाब एवं हरियाणा के किसानों ने दिल्ली की तरफ रुख किया 13 फरवरी 2024 को केंद्र सरकार ने पंजाब एवं हरियाणा के किसानों को शंभू एवं खनोरी बॉर्डर पर ही रोक दिया किसानों ने वहीं पर आंदोलन शुरू कर दिया सरकारों से लगभग 13 मांगे पूरी करने की शर्त रखी सरकारों ने किसानों के साथ अंग्रेजी शासन जैसी नीति अपनाई जिसमें कई किसान पुलिस की गोलियों से घायल एवं शहीद हुए लेकिन किसान अपनी बात पर डटे रहे लगभग 6 बार वार्ता हुई और 7वीं बार की वार्ता पंजाब में केंद्र सरकार एवं प्रदेश सरकार द्वारा 19 मार्च को संपन्न हुई जिसमें केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज चौहान भी शामिल हुए वार्ता विफल होने के बाद किसान धरना स्थल की तरफ रवाना हो गए लेकिन षड्यंत्र के तहत पंजाब सरकार एवं केंद्र सरकार ने लगभग 13 महीने चलते हुए आंदोलन को तोड़ने के लिए लगभग 250 किसानों को तानाशाही रवैया से गिरफ्तार कर लिया जिसमें कई महीने से भूख हड़ताल पर बुजुर्ग किसान नेता डल्लेवाल को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया तथा धरना स्थल पर बुलडोजर द्वारा तोड़फोड़ कर सब कुछ तहस-नहस कर दिया अन्य जगहों पर भी पुलिस द्वारा किसानों पर लाठी चार्ज एवं संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज किए गए
मुख्य माँगों में सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानूनी गारंटी करना, सभी किसानों के ऋण की पूर्ण माफी, 60 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक किसान को 10,000 रुपये प्रति माह पेंशन, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम मनरेगा के तहत किसानों को खेती के लिए 700 रुपये प्रतिदिन की निश्चित दैनिक मजदूरी,साल में 200 दिन का गारंटीकृत रोजगार,सरकार को उत्पादन की कुल लागत पर 50% लाभ सुनिश्चित करना, 2006 की एमएस स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करना, लखीमपुर खीरी मैं निर्दोष किसानों को गाड़ी से कुचलकर एवं गोलियों से शहीद कर दिया के लिए न्याय दोषियों को सजा,सरकार से किसानों की आय दोगुनी करने के अपने वादे को पूरा करने का आग्रह , हाल के वर्षों में खेती की लागत में वृद्धि और आय में स्थिरता को उजागर करें, जिसने खेती को घाटे का सौदा बना दिया है,2020-21 में आंदोलन के दौरान लगभग 23 हजार किसानों के खिलाफ दर्ज फर्जी मुकदमे बिना शर्त वापस लिए जाएं शांतिप्रिय आंदोलन में 750 से ज्यादा किसान शहीद हो गए उनके परिवार को आर्थिक मुआवजा एवं एक सदस्य को नौकरी दी जाए, विकास परियोजनाओं के लिए विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा अधिग्रहित भूमि के लिए केंद्र के 2013 कानून को लागू किया जाए,भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों के लिए आवासीय भूखंड 10% प्लॉट सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू किया जाए, किसानों और खेत मजदूरों को पेंशन, विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को रद्द करना, किसान बिजली के बढ़ते निजीकरण से भयभीत हैं और उन्हें राज्य सरकारों पर समय पर सब्सिडी,मसाला उत्पादक समाधान के लिए विभिन्न मसालों के लिए विशेष रूप से एक आयोग का गठन, किसान जनजातीय समुदायों की भूमि, जंगल और जल स्रोतों की सुरक्षा, कृषि उत्पादकता की रक्षा के लिए नकली बीज, कीटनाशक और उर्वरक बनाने वाली कंपनियों को दंडित करने का प्रस्ताव,कृषि-उद्योग एकीकरण किसान बिचौलियों से बचने और सीधे बाजार तक पहुंच सुनिश्चित, किसान के ट्रैक्टर पर 15 वर्ष की पाबंदी समाप्त हो आदि प्रमुख मांगे रखी लेकिन जिल्लत और अपमान के सिवा अभी तक अन्नदाता को सम्मान अधिकार नहीं मिला जय जवान जय किसान के नारे का स्वरूप ही बदल दिया एक दूसरे से लड़ जवान लड़ किसान हो गया
इसके प्रमुख कारण भी हो सकते हैं निजी स्वार्थ अज्ञानता अंधभक्ति जाति धर्म की चासनी जब तक हम समझेंगे नही की, एकता, जागरूकता, भाईचारा, तरक्की का रास्ता, झूठ, गुमराह, नफरत, बर्बादी का रास्ता, अब देखना समझना बाकी है कि किसान एवं सरकारे क्या रणनीति तैयार करते हैं
चौo शौकत अली चेची
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
किसान एकता (संघ) एवं
पिछड़ा वर्ग उo प्रo सचिव (सपा)
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