बोधगया महाबोधी बुद्ध विहार मुक्ति आंदोलन, लड़ाई, कहीं संवैधानिक न लड़कर भावनात्मक तो नहीं लड़ रहे हैंॽ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,विजय बौद्ध, ,,,,,,,,,,,,,,,,राष्ट्रीय महामंत्री विश्व बौद्ध संघ, पूर्व राष्ट्रीय सचिव, बौद्ध संगठनों की राष्ट्रीय समन्वय समिति, बौद्ध धम्म संसद बोधगया, एवं संपादक दि बुद्धिस्ट टाइम्स भोपाल मध्य प्रदेश,,, ,,,,,,,भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यहां सभी धर्मालंबियों को अपने-अपने धर्म को मानने एवं प्रचार प्रसार करने का संवैधानिक अधिकार है। भारत में हिंदू, मुस्लिम इस्लाम सिख इसाई जैन फारसी लिंगायत, बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं। हिंदुओं के मंदिर है। उसमें ब्राह्मण पंडित पुजारी होता है। मुसलमान के मस्जिद में मुसलमान मौलाना काजी होता है। गुरुद्वारा में सिख और गिरजाघर में ईसाई पादरी होता है। फिर भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली देश, दुनियां की पवित्र भूमि बोधगया, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उस स्थान पर सम्राट अशोक ने महाबोधी बुद्ध विहार बनाया था। उस महाबोधी बुद्ध विहार का नाम बोधगया टेंपल मंदिर क्यों हैॽ मंदिर तो हिंदू देवी देवताओं के होते हैं। उस बोधगया टेंपल मंदिर मैनेजमेंट कमेटी में सरकार ने BMTC एक्ट 1949 के तहत चार हिंदू और चार बौद्धों की व्यवस्था क्यों की ॽ बोधगया बुद्ध विहार तो बौद्धों की विरासत हैॽ उनकी धरोहर है। वह तो महाबोधी बुद्ध विहार है। उसका नाम temple मंदिर क्यों रखा गया ॽ मंदिर तो ब्राह्मण हिंदुओं के देवी देवताओं के होते हैं। आखिर इस अहम मुद्दे पर भी क्या विचार नहीं होना चाहिए ॽ कहीं ऐसा तो नहीं है,कि भारतीय संविधान की धारा 25 2 बी के तहत जैन धर्म, सिख धर्म और बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म के अधीन है,,, क्या यह कारण है, कि बोधगया मैनेजमेंट कमेटी btmc act 1949 में चार हिंदू और चार बौद्धो को रखने की व्यवस्था की गई है ॽ और कमेटी का अध्यक्ष जिलाधीश होगा वह भी हिंदू ॽ आजाद भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 में बनकर तैयार हो गया था। और 26 जनवरी 1950 को लागू हो गया था। यह संविधान दुनियां के महानतम विद्वान डॉक्टर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने लिखा था। और जब वे संविधान लिख रहे थे। या लिखकर हो गया था। और लागू भी हो गया था। तब तक डॉक्टर अंबेडकर हिंदू ही थे। संविधान लागू होने के 6 वर्ष बाद 14 अक्टूबर 1956 को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी, धर्मांतरण किया था। क्या जब डॉक्टर अंबेडकर संविधान लिख रहे थे। तब वे संविधान की धारा 25 2b में बौद्ध धर्म को स्वतंत्र धर्म क्यों नहीं रख सके थे ॽ क्या वे उस समय हिंदू थेॽ इसलिए,, उनकी मजबूरी थीॽ, बौद्ध धर्म को हिंदू धर्म के अधीन रखने की ॽ क्या संविधान की धारा 25 2 b के कारण बौद्ध धर्म स्वतंत्र धर्म नहीं है ॽ बौद्धो की स्वतंत्र पहचान नहीं हैॽ धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में हिंदू मैरिज एक्ट है। मुस्लिम मैरिज एक्ट है। और अब तो सीखो का भी आनंद मैरिज एक्ट बन गया है। परंतु बौद्धो का मैरिज एक्ट पर्सनल लॉ क्यों नहीं है ॽ क्या हम बोधगया महाबोधी बुद्ध विहार मुक्ति आंदोलन की 40 वर्षों से लड़ाई लड़ रहे हैं। कभी हमने संविधान की धारा 25 2 b मैं संशोधन की कोई आर पार की लड़ाई लड़ा है ॽ कभी हमने सुप्रीम कोर्ट न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है ॽ क्या कभी संविधान की धारा 25 2 b मैं संशोधन के लिए संसद में कोई आवाज उठाई है ॽ क्या हमने किसी अंबेडकरवादी बुद्धिस्ट को संसद में सांसद बनाकर भेजा है ॽ नहीं,,,, संसद में कितने सांसद है, जो बुद्धिस्ट है ॽ और बौद्धों के संवैधानिक अधिकारों के लिए आवाज उठाते हैं ॽ मुझे नहीं लगता कि संसद में कोई कानूनन वैधानिक बुद्धिस्ट सांसद है। अंबेडकरवादी बुद्धिस्ट होने का दम भरने वाले सांसद दलित है। और अनुसूचित जाति के आरक्षित सीट से चुनकर जाते हैं। क्या वे बौद्ध हो सकते हैं ॽ भारत सरकार ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया है। और उसमें मुस्लिम सिख इसाई जैन फारसीऔर बौद्धो का समावेश किया है। क्या कोई संसद में बौद्ध अल्पसंख्यक सांसद हैॽ नहीं,, अनुसूचित जाति से है, और वे दलित है, बौद्ध नहीं है। कुछ विद्वान बौद्धो ने बौद्धों के संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई कई वर्षों पूर्व से लड़ा है। और लड़ते आ रहे हैं। संविधान की धारा25 2b मैं संशोधन के लिए 30 वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव से बौद्ध मुक्ति लिबरेशन मूवमेंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं विश्व बौद्ध संघ संस्थापक सदस्य डॉ,अधिवक्ता आर् एल कानडे, और 15 वर्ष पूर्व दिल्ली निवासी बौद्ध संगठनों की राष्ट्रीय समन्वय समिति, बौद्ध धम्म संसद बोधगया के राष्ट्रीय संगठक आसाराम गौतम उर्फ़ अभय रत्न बौद्ध ने भी लड़ी है। और लड़ रहे हैं। देश में कई बौद्ध संगठनों के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष मठाधीश और शंकराचार्य है। जो राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बौद्ध महोत्सव बौद्ध सम्मेलन और बौद्ध मेले हर साल लगाते हैं। अपने देश के बौद्ध की समस्या आज तक नहीं सुलझा पाए, 2-4 बौद्ध भिक्षु विदेश से पड़कर लाकर अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन महोत्सव करते हैं। और उस महोत्सव सम्मेलनों में कट्टर हिंदुत्व को मानने वाले मनुवादी विचारधारा के सत्ताधारी पक्ष के नेताओं को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करते हैं। और अपना स्वार्थ सिद्ध कर धर्म का धंधा चल रहे हैं। भारत के बौद्धों की कई संवैधानिक विकराल समस्याएं है। बौद्धों की स्वतंत्र पहचान नहीं है। बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ मैरिज एक्ट नहीं है। महान सम्राट अशोक द्वारा स्थापित देश में 84000 बौद्ध स्तूप, बौद्ध विहारों पर ब्राह्मण हिंदुओं ने कब्जा कर लिया है। और उनका आधिपत्य है। उसे मुक्त कराने में कोई लड़ाई नहीं लड़ रहे, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन कर रहे हैं। अयोध्या, जो साकेत बौद्ध विरासत है। बौद्ध नगरी है। जहां पुरातत्व विभाग के खुदाई के दौरान भगवान गौतम बुद्ध के हजारों मूर्तियां और सम्राट अशोक कालीन अवशेष मिले हैं। उस बुद्ध के हृदय स्थल पर हिंदुओं ने राम का मंदिर बना लिया है। उसकी लड़ाई, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन आयोजित करने वाले नहीं लड़ते। बौद्धो के विवाह को और बच्चों को न्यायालय अवैध और नाजायज घोषित करता है। इसका मुख्य कारण है कि बौद्धों का कोई मैरिज एक्ट बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ नहीं है। भारत के बौद्धों की इतनी विकराल समस्या है। उस समस्याओं का समाधान करने के बजाय, वह संवैधानिक लड़ाई लड़ने के बजाय हम आए दिन बौद्ध सम्मेलन करते आ रहे हैं। अयोध्या, जो साकेत बौद्ध विरासत है, वह भी हमारे अस्तित्व और स्वाभिमान की लड़ाई है, जिसे हमने छोड़ दिया है। अयोध्या निवासी विनीत मौर्य ने पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई के दौरान मिले साक्ष्य और प्रमाण 1100 पन्नों के प्रमाण सहित सुप्रीम कोर्ट में, अयोध्या नहीं साकेत बौद्ध विरासत है, जनहित याचिका दायर किया था। वह विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट के वकील के के गौतम द्वारा याचिका कर्ता के बिना सहमति के वापस ले लिया गया है। यदि हम चाहे तो अयोध्या, साकेत बौद्ध विरासत के मामले को लखनऊ हाई कोर्ट में प्रथम दृष्टा चुनौती दे सकते हैं। इसी तरह बोधगया महाबोधि विहार मुक्ति आंदोलन के चलते बौद्ध धर्म गुरु सुरई ससाई नागार्जुन, अटल बिहारी वाजपेई की संविधान विरोधी मनुवादी सरकार में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में चले गए थे। और सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ले लिए थे। जिसके कारण बोधगया महाबोधी बुद्ध विहार आंदोलन खत्म हो गया था। उस आंदोलन को सच्चे अंबेडकरवादी बुद्धिस्टों की सलाह एवं सहयोग से संवैधानिक कानूनन रूप से लड़ा जाए। बोधगया महाबोधि बुद्ध विहार, ब्राह्मण हिंदुओं से मुक्ति की लड़ाई भी हमारे स्वाभिमान सम्मान और अस्तित्व की लड़ाई है। इस लड़ाई को बड़ी सूझबूझ से लड़नी चाहिए। मुझे ऐसा प्रतीत होता है। कि हम बोधगया महाबोधी बुद्ध विहार, हिंदुओं से मुक्ति की लड़ाई लड़ रहे हैं। वह संवैधानिक कम भावनात्मक अधिक है। यह मेरे अपने विचार है। मैं कोई बुद्धिजीवी विद्वान नहीं हूं। परंतु मैं एक सच्चा अंबेडकरवादी बुद्धिस्ट हूं। नमो बुद्धाय, क्रांतिकारी जय भीम, mobile number 9424 756130
"बोधगया महाबोधी महाविहार मुक्ति आंदोलन" पर एक ऐतिहासिक विशेषांक प्रकाशित होगा,,,,,,,,, विजय बौद्ध, संपादक - 'दि बुद्धिस्ट टाइम्स' भोपाल, मध्य प्रदेश 9424 7 5 6130,,,✍️✍️✍️
देश के तमाम सम्मानित बुद्धिस्ट, अंबेडकराइट्स धम्म बंधुओं को मेरा सादर जयभीम ! नमो बुद्धाय !!! 🌹🙏🙏🙏🌹
👉दुनियां के महानतम विद्वान, महामानव, युग प्रवर्तक, क्रांति सूर्य, डॉ.बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने कहा था, जो अपने पूर्वजों के इतिहास को नहीं जानता वह कभी कोई इतिहास रच नहीं सकता।,,,भारत का इतिहास और कुछ नहीं, ब्राह्मणों और बौद्धों के बीच का संघर्ष मात्र है ज़ो आज भी अनवरत जारी है,,, ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध सम्राट ब्रहद्रथ मौर्य की हत्या कर छल कपट पूर्वक राज-पाट छीन लिया था। पुष्पमित्र शुंग द्वारा सम्राट ब्रहद्रथ मौर्य की हत्या की ओर किसी का ध्यान नहीं जाना दुर्भाग्य का विषय है। इस घटना की ओर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था उतना ध्यान आकर्षित नहीं किया गया। इतिहासकारों ने इसे दो व्यक्तियों की शत्रुता का स्वरूप देकर एक सामान्य सी घटना मान लिया था। जबकि यह एक युगांतरकारी घटना थी। इस घटना का महत्व इस बात से मापा नहीं जा सकता है, कि यह किसी राजवंश की घटना थी। शुंगो द्वारा मौर्यों का स्थान ग्रहण करना। यह फ्रांस की राज्य क्रांति से भी बड़ी नहीं, तो उतनी ही बड़ी राजनीतिक क्रांति थी। यह एक लाल क्रांति थी। इसका उद्देश्य था, बौद्ध राजाओं का तख्ता उलट देना। इसके सूत्र संचालक ब्राह्मण थे। सेनापति पुष्पमित्र शुंग द्वारा अपने बौद्ध सम्राट बृहद्रस्थ मौर्य की हत्या इस बात का द्योतक है। मनु स्मृति को रचने का उद्देश्य भी बुद्धिज़्म का विनाश कर ब्राह्मणवाद को स्थापित करना था। इसी उद्देश्य से पुष्पमित्र शुंग ने बौद्ध सम्राट बृहद्रस्थ की हत्या की थी।,,, आखिर,,, बौद्ध विरासतों और बुद्ध विहारों पर ही हिंदू ब्राह्मणों ने कब्जा क्यों किया ॽ
हमें अपनी विरासतें, बुद्ध विहारों और बौद्ध धम्म को बचाने क्या करना चाहिए ॽ क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 2b में संशोधन के लिए संसद/ सुप्रीम कोर्ट में कोई आवाज उठाना चाहिए ॽ बोधगया महाबोधी महा विहार मुक्ति आंदोलन 35 वर्षों से चल रहा है, वह सफल क्यों नहीं हुआॽ और अब कैसे सफल होगा ॽ उक्त तमाम अहम मुद्दों पर मैं 100 रंगीन पृष्ठों का ऐतिहासिक विशेषांक निकालना चाहता हूं। ,,,,,,,
जो भी बुद्धिस्ट, अंबेडकरवादी, बौद्ध विद्वान बुद्धिजीवी इसके प्रति गंभीर होंगे, वह अपने सारगर्भित विचार, लेख, आर्टिकल अपने नाम व फोटो, मोबाइल नंबर एवं पूर्ण पता सहित मेरे ईमेल - पर 2 अप्रैल 2025 तक भेज सकते हैं। जिन्हें मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के डॉ, अंबेडकर नगर से प्रकाशित बौद्ध जगत द्वारा प्रतिष्ठित एवं सम्मानित राष्ट्रीय मासिक पत्रिका 'दि बुद्धिस्ट टाइम्स' जो अपने निष्पक्ष एवं निर्भीक लेखों के लिए प्रसिद्धि प्राप्त है। उस विशेषांक में आपके द्वारा प्रेषित लेख आर्टिकल आपकी फोटो सहित प्रकाशित किए जाएंगे जो चिरकाल तक इस महान आंदोलन में आपकी भूमिका के साक्षी होंगे। यह प्रकाशित विशेषांक की हजारों प्रतियां पत्रिकाएं बोधगया में तथा 14 अप्रैल को डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर जयंती के अवसर पर भोपाल में वितरित की जाएगी। तथा समूचे देश में स्पीड पोस्ट से डाक से भेजी जाएगी। ,,,,,बोधगया महाबोधी महाविहार मुक्ति आंदोलन में धरने पर बैठे विद्वान बौद्ध भिक्षु, आंदोलन के प्रणेता आकाश लामा एवं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन, बौद्ध महोत्सव, बौद्ध मेलो का आयोजन करने वाले बौद्ध भिक्खू और बौद्ध संगठनों के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पदाधिकारी विशेष तौर पर अपने विचार आर्टिकल लेख अनिवार्य रूप से भेजें। ताकि समाज को मार्गदर्शन और आंदोलन को ताकत मिल सके।
बोधगया महाबोधी महाविहार मुक्ति आंदोलन पर विशेषांक,,, के प्रकाशन के लिए सच्चे अंबेडकरवादी बौद्ध होंगे,,,, वहीं आर्थिक सहयोग, धम्म दान,,,, दि बुद्धिस्ट टाइम्स के पंजाब नेशनल बैंक शाखा एमपी नगर भोपाल के खाता क्रमांक में राशि ट्रांसफर कर सकते हैं। दे सकते हैं। आपके आर्थिक सहयोग के बिना विशेषांक निकालना संभव नहीं होगा। यदि आप चाहते हैं,कि आने वाली पीढ़ी इस इतिहास से सबक लेकर गुलामी की जंजीरों से मुक्त होकर अपना इतिहास बनाएगी,,, तो निश्चित इस विशेषांक को ऐतिहासिक बनाएं। इन्हीं अपेक्षाओं के साथ,, क्रांतिकारी जय भीम🙏
विजय बौद्ध, राष्ट्रीय महामंत्री विश्व बौद्ध संघ, पूर्व राष्ट्रीय सचिव, बौद्ध संगठनों की राष्ट्रीय समन्वय समिति, बौद्ध धम्म संसद बोधगया, प्रधान संपादक- 'दि बुद्धिस्ट टाइम्स' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भोपाल, मध्य प्रदेश...✍️✍️✍️✍️✍️
टिप्पणियाँ