*~~~पद पाने के लिये हमेशा~~~*
*~~~~~ये ईमान बेंचते हैं~~~~~*
*ये श्रृंगार बेंचने वाले, लम्बी तान खेंचते हैं।*
*पद पाने के लिये हमेशा, ये ईमान बेंचते हैं।*
रार नहीं ठानी थी जिसने, उसे महा कवि बोल रहे।
कितना काला धन पाया था, सारे पत्ते खोल रहे।
*बहुत स्वघोषित हुये राष्ट्र कवि, ये उनमें अलबेले हैं।*
*कुछ वक्तव्य दिये हैं ऐसे, अब पड़ गये झमेले हैं।*
लगे ठहाके जब मिथकों की, जम कर के बौछार हुयी।
श्रोता सारे उनके निकले, और नजर दो चार हुयी।
*उनके ही प्रचार माध्यम ने, सिर पर उन्हें उठाया है।*
*बिके हुये हर पत्रकार ने, क्या चेहरा चमकाया है ?*
भाट हुआ करते थे पहले, राजा के दरवारों में।
उसी राह पर चलकर देखा, लूटा मजा बहारों में।
*वक्त जवानों और किसानों का, काफ़ी गहराया है।*
*पर उनकी धुन में ही देखो, बस श्रृंगार सुहाया है।*
वे दौलत को ओढ़ रहे हैं, और बिछावन करते हैं।
सोचो ऐसे लोग देश को, कितना पावन करते हैं।
*ब्राह्मणवाद छिपा बैठा था, शायद उनकी गोदी में।*
*मौका मिला उछल कर आया, खेल हुआ आमोदी में।*
मत देखो ये रंग रूप में, बड़े सुहाने लगते हैं।
तुमको ही आधार बना कर, ये तुमको ही ठगते हैं।
*तन को साफ किया है लेकिन, इनका मन ही मैला है।*
*है माहौल अराजक अब तो, जगह जगह पर फैला है।*
बीच सड़क पर खड़े हुये ये, अब हर माल बेंचते हैं।
अपनी खाल बचाने को, जनता की खाल बेंचते हैं।
*ये श्रृंगार बेंचने वाले, लम्बी तान खेंचते हैं।*
*पद पाने के लिये हमेशा, ये ईमान बेंचते हैं।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
*1-* वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी *2500 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।
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*~~~~वही न्याय करने वाले हैं~~~*
*~~~~कैसे पकड़े जा सकते ?~~~*
*काम नहीं करते हैं वे, बस चोरी करने जाते हैं।*
*पद पर बैठे बैठे ही, हर जगह जुगाड़ लगाते हैं।*
जज हों या अधिकारी कोई, बड़े प्रशासन वाले हों।
कौन जान पायेगा उनके, क्या अंदाज निराले हों ?
*वही न्याय करने वाले हैं, कैसे पकड़े जा सकते ?*
*जनता चाहे तो फिर उनके, घर में आग लगा सकते।*
खेल पुराने वाले ही हैं, अभी सामने आये हैं।
पद का बुरा प्रयोग किया है, दौलत में भरमाये हैं।
*जहाँ विकास कराया पहले, वहीं प्लाट कटवाते हैं।*
*चाहे जो भी शहर देख लो, नाम इन्हीं के आते हैं।*
पकड़े जाते सभी अन्त में, पर आदत पुस्तैनी है।
ऊपर का कुछ नहीं मिले, तो बढ़ जाती बेचैनी है।
*अभी अयोध्या में घर टूटे, बस्ती गयी उजाड़ी है।*
*खेल वहाँ भी चला देख लो, जैसे आँगनबाड़ी है।*
हर मद में आबंटन होता, जब भी बजट बनाते हैं।
पाचन क्रिया बड़ी अच्छी है, आधा तो खा जाते हैं।
*हर प्रदेश की हालत ऐसी, हुक्मरान भी मिले हुये।*
*जहाँ धर्म का धन्धा ज्यादा, ऐसे ही कुछ जिले हुये।*
नहीं दाल में काला है कुछ, दाल समूची काली है।
नजर उठा कर देखो कैसा, वर्तमान का माली है।
*शिक्षा में भिक्षा वालों का, भाग अभी कुछ ज्यादा है।*
*जो भी कौआ बन कर बैठा, लगता सीधा सादा है।*
किसे पता है आज किया जो, भेद खुलेगा वर्षो में।
जैसे तेल निकाला जाता, सूखी वाली सरसों में।
*किया जेल में बन्द जिन्हें, अपराध बिना हैं लाखों में।*
*तभी समझ में आयेगा जब, डालो इन्हें सलाखों में।*
ये लहरें गिनने वाले हैं, खूब कमीशन खाते हैं।
भले किसी छोटे पद पर हों, पर कितना गुर्राते हैं ?
*काम नहीं करते हैं वे, बस चोरी करने जाते हैं।*
*पद पर बैठे बैठे ही, हर जगह जुगाड़ लगाते हैं।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
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