*~~~~झूठ पर ही टिका~~~~*
*~~~~उनका हर काम है~~~~*
*झूठ का दौर कितना भी लम्बा चले,*
*सच के आगे कोई जोर चलता नहीं।*
*उनके सूरज भी ढल कर बिखर ही गये,*
*जिनके शासन में सूरज भी ढलता नही।*
खण्डहर ही पड़े हैं महल हर जगह,
छोड़ कर के सभी दूर जाते रहे।
जो खड़े हैं निगाहों की दालान में,
एक गुजरी कहानी सुनाते रहे।
*हर जगह के अलग ही खयालात थे,*
*किस तरह से कई झूठ बोले गये ?*
*बस कहानी में लिपटे नजर आ रहे,*
*भेद जो भी रहे खूब खोले गये।*
जिनके श्रम ने सिकन्दर बनाया उन्हें,
दास्तानों में उनका नहीं नाम है।
देख लो हर जगह आज क्या चल रहा,
झूठ पर ही टिका उनका हर काम है।
*कोई कुछ कह रहा कोई कुछ सुन रहा,*
*ध्यान भटका हुआ है सभी का यहाँ।*
*बेजुबाँ भीड़ को बोलना ही नहीं,*
*प्राण अटका हुआ है सभी का यहाँ।*
घर बचाने को अपना लगे हैं सभी,
हम भी देखेंगे घर उनका जलता नहीं।
कितने मायूस हैं इस बियाबान में,
इस कदर तो कोई हाथ मलता नहीं।
*झूठ का दौर कितना भी लम्बा चले,*
*सच के आगे कोई जोर चलता नहीं।*
*उनके सूरज भी ढल कर बिखर ही गये,*
*जिनके शासन में सूरज भी ढलता नही।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
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