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इजराइल का बढ़ता प्रभाव और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर चिंताएँ

 


इजराइल का बढ़ता प्रभाव और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर चिंताएँ


अब तक भारतीय जनमानस में इजराइल को मुख्यतः अपने पश्चिम एशियाई संघर्षों — फिलिस्तीन, लेबनान और ईरान — तथा भारत में पेगासस जासूसी कांड के संदर्भ में जाना जाता था। लेकिन हाल ही में सामने आई एक नई रिपोर्ट ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, लोकतंत्र और संप्रभुता को लेकर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं।


मुख्य खुलासे और चिंताएँ:


1. मोसाद की कथित साइबर जासूसी:


रिपोर्ट के अनुसार, अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने और उनके शेयरों में भारी गिरावट के बाद, इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सैम पित्रोदा के फोन हैक किए।

* इस जासूसी का उद्देश्य अडानी पर हो रही आलोचनाओं और जांच को रोकना प्रतीत होता है।

* यह घटना भारतीय विपक्ष की डिजिटल सुरक्षा और गोपनीयता पर सीधा हमला है।


2. अडानी-इजरायल गठजोड़:


हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद, अडानी समूह ने इजराइल के हाइफा पोर्ट का अधिग्रहण किया — जिसे जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित किया गया।

* प्रधानमंत्री मोदी और नेतन्याहू के बीच हुई सार्वजनिक बैठकों ने इन संबंधों को और भी उजागर कर दिया।

* इस गठजोड़ ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या भारत की विदेश नीति और आर्थिक रणनीति निजी कॉर्पोरेट हितों के अधीन हो रही है?


3. भारतीय नेतृत्व और सुरक्षा तंत्र के लिए खतरा:


यदि मोसाद विपक्षी नेताओं के फोन हैक कर सकता है, तो क्या देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री या सैन्य अधिकारी भी सुरक्षित हैं?

* पेगासस कांड के बाद भी किसी प्रकार की पारदर्शिता या जवाबदेही सुनिश्चित नहीं हुई।

* राष्ट्रीय सुरक्षा अब विदेशी एजेंसियों की दया पर प्रतीत होती है।


व्यापक भू-राजनीतिक और आर्थिक चिंताएँ:


मादक पदार्थों की तस्करी और राष्ट्रीय सुरक्षा:

* अडानी के मुंद्रा पोर्ट से जब्त मादक पदार्थों की खेप में लश्कर-ए-तैयबा का नाम सामने आया था।

* इससे साबित होता है कि कॉर्पोरेट हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच जबरदस्त टकराव हो सकता है।


विदेशी प्रभाव और आर्थिक शोषण:

* इजराइल की भारत में बढ़ती सक्रियता वास्तविक मित्रता से अधिक लेन-देन आधारित लगती है।

* भारत के संसाधनों और बाज़ार का उपयोग इजराइल अपने भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए कर रहा है — बिल्कुल उसी तरह जैसे औपनिवेशिक युग में ब्रिटेन ने भारत का दोहन किया था।


लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों पर आघात:

* विदेशी जासूसी और चुनावी हस्तक्षेप के आरोप भारत के लोकतंत्र और संप्रभुता पर गहरा आघात करते हैं।

* मोदी सरकार द्वारा कॉर्पोरेट हितों को राष्ट्रीय हित से ऊपर रखने के आरोप लोकतंत्र की नींव को कमजोर करते हैं।

* “फूट डालो और राज करो” जैसी रणनीतियाँ, जो हिटलर के दौर की याद दिलाती हैं, आज देश के भीतर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही हैं।


कश्मीर और आंतरिक एकता:

* पहलगाम हमलों के बावजूद कश्मीरी मुसलमानों द्वारा हिंदू पर्यटकों की रक्षा करना एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि भारत की आम जनता विभाजनकारी राजनीति के ऊपर उठ सकती है।

* यह उम्मीद तो जगाता है, पर साथ ही नफरत और ध्रुवीकरण के खिलाफ निरंतर सतर्क रहने की चेतावनी भी देता है।


निष्कर्ष: सतर्कता और एकता की आवश्यकता


यदि रिपोर्ट में किए गए दावे सच हैं, तो भारत आज अपनी स्वायत्तता और संप्रभुता के सबसे बड़े खतरों में से एक का सामना कर रहा है।

* अडानी-इजरायल-मोदी त्रिकोण भारत को वैश्विक सत्ता संघर्ष में एक मोहरे में बदल सकता है।

* इसलिए देशवासियों को दलगत सीमाओं से ऊपर उठकर संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए एकजुट होना होगा।


अंतिम अपील:

* विभाजनकारी राजनीति को अस्वीकार करें।

* विदेशी हस्तक्षेप और कॉर्पोरेट मिलीभगत के खिलाफ जवाबदेही की माँग करें।

* भारत की संप्रभुता और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सजग, संगठित और सक्रिय बनें।

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