*आग लगी है पहलगाम की मस्ती में*
*ठाकुर घूम रहे दलितों की बस्ती में।*
*आग लगी है पहलगाम की मस्ती में।*
जनता को भेजा है नया संदेशा क्यों ?
आतंकी तो दोनों हैं फिर ऐसा क्यों ?
*जब मन चाहा चाहे जिस पर चढ़ते हैं।*
*अपनी एक अलग परिभाषा गढ़ते हैं।*
नीति दोगली अलग दिशा दिखलाती है।
हर घटना कुछ न कुछ तो सिखलाती है।
*इनके ऐसे भाषण सुन सब ऊब गये।*
*मोक्ष मिली जो महा कुम्भ में डूब गये।*
ये मुद्दों से ध्यान हटाते रहते हैं।
जनसंख्या हर रोज घटाते रहते हैं।
*उनकी सुख सुविधाओं पर आँच नहीं।*
*पोल खुलेगी इससे होती जाँच नहीं।*
एक हुआ चुप और दूसरा बोल रहा।
घटनाओं के सारे पत्ते खोल रहा।
*तोहमत मढ़ते हैं औरों के ठौरों पर।*
*वे तो खिसक गये हैं अपने दौरों पर।*
उनको नौ मन तेल यहाँ फैलाना है।
उनको तो राधा को अभी नचाना है।
*ये तो पहले वाला ही व्यापारी है।*
*मिथकों का संसार अभी भी जारी है।*
वे अपनी पूरी ताकत से आये हैं।
पर अन्दर ही अन्दर से घबराये हैं।
*जनता भी अब उनके साथ नहीं होगी।*
*उन्हें भागना ही होगा बन कर जोगी।*
अभी उन्हें कुछ तो दामाद बनाना है।
दलितों को पिछडों को मूरख जाना है।
*चमचे भी तो अजब गजब तैयार किये।*
*सारे चमचे अपनों पर ही मार किये।*
दुर्घटना में लोग रोज ही मरते हैं।
उनकी खातिर निर्मोही क्या करते हैं ?
*क्या प्रयाग की घटना ने कुछ भला किया ?*
*गट्ठर में लपेट कर जिन्दा जला दिया।*
गोंडा और फतेहपुर में चरखारी में।
खेल रहे आतंकी अपनी पारी में।
*पहलगाम की साजिश को मत पहचानो।*
*भरे पड़े हैं काण्ड कहाँ किसको जानो ?*
ये साजिश के हिस्से हैं भटकाने को।
घर में खुद को ही उल्टा लटकाने को।
*होना हैँ कुछ और मगर ये फेल रहा।*
*भारत कैसी महा त्रासदी झेल रहा।*
संसद के गलियारों में जो बात हुयी।
घटना घटी समझ लो उसकी रात हुयी।
*बूँद नहीं उनकी आँखों में आयी है।*
*कहने वाले कहते राम दुहाई है।*
चैनल वालों के करतब बेजोड़ रहे।
बिन भीगे ही कपड़े रोज निचोड़ रहे।
*दो हजार का नोट चिप्स के साथ रहा।*
*इसको फैलाने में किसका हाथ रहा ?*
ये सारे आतंकी गुट के हिस्से हैं।
अब इनके मशहूर हर जगह किस्से हैं।
*चोर पुलिस का खेल अजब ये लीला है।*
*पहचानो किस किस का आँचल गीला है ?*
चलो देखते हैं गाँवों गलियारों में।
अब भी भटक रहे हैं लाखों नारों में।
*नशा अधिक होता है शराब सस्ती में।*
*बैठे हैं सब फँसी भंवर की कश्ती में।*
*ठाकुर घूम रहे दलितों की बस्ती में।*
*आग लगी है पहलगाम की मस्ती में।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
*1-* वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी *2700 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।
*2-* कृपया रचनाओं को अधिक से अधिक अग्रसारित करें।
*3-*सम्पर्क सूत्र~*
मो. न. 9450155040
टिप्पणियाँ