पचीपुरा गांव में सामाजिक परिवर्तन की नई पहल: कर्मकांड नहीं, समाज सेवा को प्राथमिकता
जालौन जिले के पचीपुरा गांव में एक महत्वपूर्ण सामाजिक पहल देखने को मिली है। जहां OBC समाज के लोगों ने सैकड़ों वर्षों पुरानी रूढ़िवादी परंपराओं को तिलांजलि दी। नवनीत पटेल ने अपनी मां के निधन के बाद पारंपरिक धार्मिक कर्मकांडों, भोज और अंधविश्वासों से हटकर समाज कल्याण के कार्यों के माध्यम से श्रद्धांजलि देने का निर्णय लिया। यह कदम न केवल एक व्यक्तिगत निर्णय था, बल्कि एक व्यापक सामाजिक संदेश भी था — कि श्रद्धा और संवेदना का वास्तविक मूल्य समाज सेवा में निहित है, न कि दिखावटी अनुष्ठानों में।
पारंपरिक अपेक्षाओं के विपरीत, न कोई त्रयोदशी भोज आयोजित किया गया, न पंडितों द्वारा धार्मिक अनुष्ठान। इसके स्थान पर, नवनीत पटेल और उनकी टीम ने गांव के बच्चों को स्टेशनरी वितरित की, विद्यालयों को इन्वर्टर और फ्रीजर दान किए, सार्वजनिक जल-शीतलन संयंत्र (वाटर कूलर) स्थापित किया और नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर का आयोजन कराया।
नवनीत पटेल बताते हैं कि इस निर्णय के दौरान उन्हें सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ा। परंतु उन्होंने स्पष्ट रूप से तय कर लिया था कि यदि समाज में बदलाव लाना है तो उसकी शुरुआत व्यक्तिगत स्तर से ही होगी। उन्होंने बाल कटवाने जैसी मृत्यु-परंपराओं का भी विरोध किया और सार्वजनिक रूप से कहा कि धर्म, आस्था और कर्मकांड मूलतः मानसिक अवधारणाएं हैं, जो वैज्ञानिक सोच के विकास में बाधक बनती हैं।
इस आयोजन के दौरान लगाए गए एक विशेष पोस्टर में दो बच्चों की तस्वीरों के माध्यम से संदेश दिया गया — एक बच्चा अंधविश्वास और रूढ़ियों से ग्रसित, जबकि दूसरा वैज्ञानिक सोच और स्वतंत्र विचारधारा का प्रतीक। इस प्रतीकात्मक प्रस्तुति के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया कि अंधविश्वास से मुक्ति और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना आज के समय की आवश्यकता है।
टीम बदलाव के अन्य सदस्यों — प्रताप यादव, संतोष राजपूत, कपिल यादव और हरकिशोर पटेल — ने भी इस पहल में सक्रिय योगदान दिया। सभी सदस्यों का मानना है कि त्रयोदशी भोज जैसे खर्चीले अनुष्ठानों की बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के कार्यों में धन का निवेश करना समाज के दीर्घकालिक हित में है।
कपिल यादव ने पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए गांव में चिड़ियों के लिए पानी और घोंसले की व्यवस्था की। हरकिशोर पटेल ने इस पहल को एक बड़े वैचारिक आंदोलन से जोड़ते हुए कहा कि जब तक तथागत बुद्ध, शाहूजी महाराज और डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसे विचारकों के सिद्धांत आम जनजीवन का हिस्सा नहीं बनते, तब तक वास्तविक सामाजिक परिवर्तन संभव नहीं है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए शासकों की मानसिकता बदलनी अनिवार्य है।
निष्कर्ष:
पचीपुरा गांव में नवनीत पटेल और उनकी टीम की यह पहल बताती है कि सामाजिक कुरीतियों और ब्राह्मणवादी पाखंड से मुक्ति, वैज्ञानिक सोच का प्रसार और समाज सेवा का व्यापक विस्तार — यही सच्चे सामाजिक परिवर्तन की दिशा है।
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