*धर्मतन्त्र और लोकतंत्र का समानान्तर मॉडल-*
आज देश में धर्मतन्त्र और लोकतंत्र दो प्रकार के मॉडल कार्य करते हैं। धर्मतंत्र लोगों का चरित्र बनकर प्रभावसाली बना हुआ है तो लोकतंत्र उस चरित्र के विरोध को सहते हुए अपने आपको स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। यहाँ इन दोनों व्यवस्थाओं के अंतर्विरोधों को निम्न डायग्राम के द्वारा समझने का प्रयास करते हैं :-
*(A)* *(B)*
विषमता का मॉडल समता का मॉडल
(धर्मतन्त्र) (लोकतंत्र)
। ।
भगवा तिरंगा
। ।
मनुस्मृति संविधान
। |
धार्मिक संस्थाऐं संवैधानिक संस्थाऐं
(मठ,मन्दिर,आश्रम) (राष्टपति,संसद,
स.विभाग)
*(A). विषमतावादी व्यवस्था या धर्मतन्त्र का मॉडल-*
धर्मतन्त्र का जो मॉडल है उसका अपना 'भगवा' झण्डा है, 'मनुस्मृति' संविधान है, 'मठ, मन्दिर, आश्रम' इसके संविधान की प्रशासनिक संस्थाएं हैं।
'ईश्वर' इस मॉडल का खूँटा है जिसके साथ 'आस्था' रूपी रस्सी से जनता को बांध दिया जाता है। 'विषमता' इसकी विचारधारा है जिसके अनुसार '15% सवर्ण' (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) मालिक हैं तो '85% शूद्र'(obc/sc/st/mino.) गुलाम। इसकी कन्ट्रोलिंग पावर ब्राह्मण के हाथ में है, इसका सबसे बड़ा लाभार्थी ब्राह्मण है, इसलिए इसका रक्षक भी ब्राह्मण है।
ब्राह्मण अपने इस विषमता वादी व्यवस्था के मॉडल को धर्म के नाम से प्रचारित करता है तथा इसे ईश्वरीय व्यवस्था बताकर धर्म का वास्ता देकर अपने नेतृत्व में समाज को संगठित रखता है, ऐसे में ईश्वरीय आस्था से बंधे हुए लोग धर्मतन्त्र की प्रशासनिक संस्थाऐं मठ, मन्दिर, आश्रम की तरफ बिन बुलाए नाक रगड़ते हुए पहुँच जाते हैं वहाँ इन संस्थाओं के मालिक ब्राह्मण के चरणों में जाकर गिर जाते हैं। ऐसे गिरे हुए लोगों को ब्राह्मण हिन्दू कहते हैं और उन पर मनुस्मृति के नियमों को थोप देते हैं, फिर कहने की जरूरत नही है कि ब्राह्मण श्रेष्ठ है और बाकी सारे नीच, यह एक प्रशासनिक व्यवस्था है जो भी इस व्यवस्था की मान्यता परम्परा संस्कार त्योंहार व्रत आस्था से अपना सम्बन्ध रखेगा उसका वर्ण/जाति स्वभाविक तौर पर अपने आप तय हो जाती है फिर आप लाख कोशिश कर लीजिए, भलेही CM, PM बन जाइए लेकिन इस धर्मतन्त्र की व्यवस्था के अनुसार नीच ही माने जाएंगे । भूतपूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के घर का शुद्धिकरण सबसे बड़ा उदाहरण है।
धर्मतन्त्र का यह षड्यंत्र इतना बारीक है जो आम शूद्रों को समझ ही नही आता है यदि उनमें से कुछ मुठ्ठीभर लोगों को समझ भी आ जाता है तो ये धूर्त मनुवादी ब्राह्मण उन्हें नास्तिक, अर्बन नक्सल, अम्बेडकरवादी, धर्म विरोधी आदि आदि पहचान देकर अपने ही शूद्र भाइयों से अलग थलग कर देते हैं तथा अन्य धर्मों का डर दिखाकर जाति में बंटे हुए ना समझ शूद्रों को अपने धार्मिक दायरे में संघठित रखकर उनका निरन्तर नेतृत्व करते हैं।
*(B). समतावादी व्यवस्था या लोकतंत्र का मॉडल-*
लोकतंत्र का जो दूसरा मॉडल है उसका भी अपना 'तिरंगा' झण्डा है, 'भारत का संविधान' इसका संविधान है, 'राष्ट्रपति, संसद, सरकारी विभाग' इसके संविधान की संवैधानिक संस्थाएं हैं।
'उत्तरदायित्व' लोकतंत्र का खूँटा है जिस पर सवाल उठना जनता का 'अधिकार' है। 'समता' इसकी विचारधारा है, इसलिए कानून की नजर में हम केवल भारतीय है तथा धर्म हमारी निजी प्रेक्टिस है। जनता लोकतंत्र की ताकत है जो इसे अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण में रखती है जनता के सारे हित इस लोकतंत्र की व्यवस्था के साथ जुड़े हुए हैं, इसलिए इसकी रक्षा करना जनता का नैतिक दायित्व है।
परन्तु लोकतंत्र सत प्रतिशत जन हितैषी होने के बावजूद हमारे देश में यह व्यवस्था जनता को उतना फायदा नही दे पाई है जितना यह दे सकती थी, इसका एक मात्र कारण है, देश की जनता का लोकतंत्र के प्रति जागरूक ना होना। जिसका फायदा उठाते हुए प्रस्थापित मनुवादी लोग जो लोकतंत्र विरोधी हैं, वे भोली भाली जनता को गुमराह करके लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कब्जा जमा लेते हैं, फिर वे संवैधानिक संस्थाओं को नीजि हाथों में बेचकर लोकतंत्र को कमजोर करते हैं और धर्मतन्त्र को मजबूत करने के लिए मठ मन्दिर आश्रम को बढ़ावा देते हैं। यही वजह है कि आज अतार्किक अवैज्ञानिक और अनैतिक धर्मतन्त्र की ब्राह्मणवादी व्यवस्था दिन प्रतिदिन मजबूत होती जा रही है तो इसके विपरीत तार्किक वैज्ञानिक और नैतिक लोकतंत्र की मानवतावादी व्यवस्था दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है।
*निष्कर्ष-* धर्मतन्त्र और लोकतंत्र आज देश की जनता के पास दो मॉडल है, धर्मतन्त्र देश की जनता को मन्दिर की तरफ ले जाता है तो लोकतंत्र स्कूल की तरफ। ये दोनों तंत्र एक दूसरे के दुश्मन है, इनमें से आज नही तो कल एक की मौत निश्चित है ऐसे में यदि धर्मतन्त्र की मौत और लोकतंत्र की जीत हो जाती है तो 85% बहुजन शूद्र को सम्मान और कलम मिलेगा, इसके विपरीत यदि लोकतन्त्र की मौत और धर्मतन्त्र की जीत हो जाती है तो 85% बहुजन शूद्र को मिलेगा अपमान और घण्टा। अब निर्णय 85% बहुजन शूद्र (obc/sc/st) को करना है उन्हें सम्मान और स्कूल की कलम चाहिए या अपमान और मन्दिर का घण्टा यदि सम्मान और कलम चाहिए तो सभी 85% शूद्र बहुजन को 15% सवर्ण के खिलाफ संगठित होकर लोकतंत्र के समर्थन में और धर्मतन्त्र के खिलाफ विद्रोह करना होगा।
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