भारत में राष्ट्रीय संसाधनों, सार्वजनिक संस्थाओं के निजीकरण से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को खतरा!
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भारतीय वृद्धि विकास दर के विश्लेषण में संसाधनों एवं सार्वजनिक क्षेत्रों के औद्योगिकीकरण से निजी पूंजी,प्रबंधन,बाजार,को अधिक महत्व मोदी सरकार के देने से ग्रामीण विकास दर में गिरावट, शिक्षित नौजवानों के साथ बहुत बड़ा अन्याय मोदी सरकार कर हैं, यह नौजवानों को समझना होगा।
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भारतीय अर्थव्यवस्था का संदर्भ-अर्थव्यवस्था उत्पादन,वितरण,खपत एक सामाजिक व्यवस्था है। यह किसी देश या क्षेत्र विशेष में अर्थशास्त्र का गतिशील प्रतिबिंब÷ शब्दों का सबसे प्राचीन उल्लेख कौटिल्य द्वारा लिखित ग्रंथ अर्थशास्त्र में मिलता है।
अर्थव्यवस्था दो शब्दों से मिलकर बना है।
(1)- अर्थ का तात्पर्य ÷ मुद्रा अर्थात् धन से है।
(2)- व्यवस्था का तात्पर्य÷ कार्यप्रणाली के व्यवस्थापन से अर्थव्यवस्था,कार्यप्रणाली के स्वरुप-अर्थव्यवस्था के स्वरुप आयोजन-नियोजन प्रतिस्थापित व्यवस्था से है। अर्थव्यवस्था के तीन प्रकार आगे स्पष्ट करते है।
(1)-समाजवादी अर्थ व्यवस्था
(2)-पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
(3)-मिश्रित अर्थ व्यवस्था
(1)- समाजवादीअर्थव्यवस्था का तात्पर्य ÷ इस अर्थव्यवस्था में राज्य का हस्तक्षेप महत्वपूर्ण होता है।
(2)-मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ ÷ अर्थव्यवस्था में राज्य का हस्तक्षेप सीमित होता है।
(3)-पूंजीवादीअर्थव्यवस्था का अर्थ ÷इस अर्थव्यवस्था में राज्य का हस्तक्षेप अत्यल्प अर्थात सीमित होता है।
अर्थव्यवस्था के स्वरुप के आधार पर ही नियोजन का स्वरुप निर्धारित होता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में मुख्यतः मिश्रित प्रकृतियों का संचालन है,लेकिन हिंदू वृद्धि दर की सीमित सफलता और भूमंडलीकरण के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्ष 1991के बाद से सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण किया जा रहा है। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी की सरकार सार्वजनिक उपक्रमों के घाटे की प्रवृत्ति के कारण इनका निजीकरण प्रक्रिया पर अधिक तेजी से काम कर रही है। यह एक विमर्श और समझने का विषय है।
सार्वजनिक क्षेत्र की वर्तमान स्थिति,:वर्तमान में कुछ बड़े सार्वजनिक उपक्रमों जैसे- भारत संचार निगम लिमिटेड, महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड और एयर इंडिया में घाटे की प्रवृत्ति देखी जा रही है,इन उपक्रमों का घाटा इनके राजस्व प्राप्ति से अधिक है।
अर्थशास्त्रियों के पास ऐसे उपक्रमों के लिये एक शब्द है,मूल्य आहरण वाले उपक्रम (Value Subtracting Enterprises)इनका पुनर्गठन और यहाँ तक कि धन और अन्य संसाधनों के प्रयोग के बावजूद सकारात्मक परिणाम नहीं उत्पन्न नहीं हो रहे हैं। उनका निजीकरण कर रही है। जैसे सरकार ने दिल्ली डिस्कॉम का निजीकरण किया,इस निजीकरण के मामले की भाँँति खरीदार को भुगतान करना पड़ सकता है। इसे समझने की जरूरत है।
विश्व बैंक के सलाहकारों ने दिल्ली डिस्कॉम के निजीकरण के संबंध में कहा था,कि "निजीकरण का सहारा घाटे से निपटने का उपाय नहीं है, निजीकरण के बजाय इनका भौतिक प्रदर्शन सुधारने का प्रयास किया जाना चाहिये।"
निजीकरण के उद्देश्य,÷सामान्यतः यह माना जाता है, कि "व्यापार राज्य का व्यवसाय नहीं है"। इसलिये व्यापार,अर्थव्यवस्था में सरकार का अत्यंत सीमित हस्तक्षेप होना चाहिये। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन बाज़ार कारकों के माध्यम से होता है। भूमंडलीकरण के पश्चात् इस प्रकार की अवधारण का और तेज़ी से विकास हो रहा है।
निजीकरण के प्रमुख उद्देश्य हैं÷वर्तमान में यह आवश्यक हो गया है,कि सरकार स्वयं को “गैर सामरिक उद्यमों”के नियंत्रण, प्रबंधन और संचालन के बजाय शासन की कार्यकुशलता कै समझने को अधिक समझने और ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
(1)- गैर-महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगी सार्वजनिक संसाधनों की बड़ी धनराशि को समाज की प्राथमिकता के आधार पर सर्वोपरि क्षेत्रों में लगाना चाहिये,जैसे- सार्वजनिक स्वास्थ्य,परिवार कल्याण, प्राथमिक शिक्षा, सामाजिक संरचना को मजबूती के लिए धनराशि को लगाया जाना चाहिए।
(2)- गैर-महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को संपोषित किये जाने वाले दुर्लभ सार्वजनिक संसाधनों के उत्तरोत्तर बाह्य प्रवाह (Further out flow) को रोककर वर्तमान सार्वजनिक ऋण के बोझ को कम किये जाने की बिधि को अमल में लानी चाहिये।
(3)-वाणिज्यिक जोखिम जिस सार्वजनिक क्षेत्र में करदाताओं का धन लगा हुआ है, को ऐसे निजी क्षेत्र में हस्तांतरित करना,जिसके संबंध में निजी क्षेत्र आगे आने के लिये उत्सुकता और योग्यता को जानने की आवश्यकता हैं। वस्तुत: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगा धन जनसाधारण का होता है। इसलिये कॉर्पोरेट क्षेत्र में लगाए जा रहे अत्यधिक वित्त की मात्रा पर विचार किया जाना अति आवश्यक है।
(4)- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बढ़ती गैर-निष्पादन परिसंपत्ति (NPA) की मात्रा, दबावग्रस्त परिसंपत्तियों से बढ़ते भ्रष्टाचार तथा बेहतर प्रबंधन एवं संचालन क्षमता की कमी और समस्या आदि के कारण सरकार बैंकों में अपने स्वामित्व अर्थात अपनी हिस्सेदारी बेचने की सरकार बात कर रही है। जिससे सार्वजनिक जीवन की संरचना पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।
निजीकरण से तात्पर्य,÷वर्तमान लोकतंत्र में निजीकरण अत्यंत बहुचर्चित विषय है। निजीकरण का अर्थ अनेक प्रकार से व्यक्त किया जाता है।
(1)-संकुचित दृष्टि÷ निजीकरण का अभिप्राय सार्वजनिक स्वामित्व के अंतर्गत कार्यरत उद्योगों में निजी स्वामित्व के प्रवेश से लगाया जाता है।
(2)- विस्तृत दृष्टि से निजी स्वामित्व के अतिरिक्त (अर्थात् स्वामित्व के परिवर्तन किये बिना भी) सार्वजनिक उद्योगों में निजी प्रबंध एवं नियंत्रण के प्रवेश से लगाया जाता है।
निजीकरण की उपुर्यक्त दोनों विचारधाराओं का अध्ययन करने के पश्चात् यही अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है कि निजीकरण को विस्तृत रूप से ही देखा जाना चाहिये। यह भी संभव है,कि सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र को संपत्ति के अधिकारों का हस्तांतरण बिना विक्रय के ही हो जाए।
तकनीकी दृष्टि से इस अधिनियम(Deregulation) कहा जा सकता है। जिसका आशय यह है, कि जो क्षेत्र अब तक सार्वजनिक क्षेत्र के रूप में आरक्षित थे, उनमें अब निजी क्षेत्र के प्रवेश की अनुमति दे दी जाएगी। अन्य स्पष्ट शब्दों में निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है,जिसके अंतर्गत एक नवीन औद्योगिक संस्कृति का विकास होता है, यानि सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र की तरफ कदम बढ़ाया जाना।
आर्थिक सुधारों के संदर्भ में निजीकरण का अर्थ है,कि सार्वजनिक क्षेत्र के लिये सुरक्षित उद्योगों में से अधिक-से-अधिक उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए खोलना,इसके अंतर्गत वर्तमान सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को पूरी तरह या उनके एक हिस्से को निजी क्षेत्र को बेच दिया जाता है।
निजीकरण के लाभ:"व्यापार राज्य का व्यवसाय नहीं है" इस अवधारणा के परिप्रेक्ष्य में निजीकरण से कार्य निष्पादन में बेहतरीन संभावना होती है।
निजीकृत कंपनियों में बाज़ार अनुशासन के परिणामस्वरूप वे और अधिक दक्ष बनने के लिये बाध्य होंगे और अपने ही वित्तीय एवं आर्थिक कार्यबल के निष्पादन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगे। वे बाज़ार को प्रभावित करने वाले कारकों का अधिक सक्रियता से मुकाबला कर सकेंगे तथा अपनी वाणिज्यिक आवश्यकताओं की पूर्ति अधिक व्यावसायिक तरीके से कर सकेंगे। निजीकरण से सरकारी क्षेत्र के उद्यमों की सरकारी नियंत्रण भी सीमित होगा और इससे निजीकृत कंपनियों को अपेक्षित निगमित शासन की प्राप्ति हो सकेगी।
निजीकरण के परिणामस्वरूप, निजीकृत कंपनियों के शेयरों की पेशकश छोटे निवेशकों और कर्मचारियों को किये जाने से शक्ति और प्रबंधन को विकेंद्रित किया जा सकेगा।
निजीकरण का पूंजी बाज़ार पर लाभकारी प्रभाव होगा। निवेशकों को बाहर निकलने के सरल विकल्प मिलेंगे, मूल्यांकन और कीमत निर्धारण के लिये अधिक विशुद्ध नियम स्थापित करने में सहायता मिलेगी और निजीकृत कंपनियों को अपनी परियोजनाओं अथवा उनके विस्तार के लिये निधियाँ जुटाने में सहायता मिलेगी।
सार्वजनिक क्षेत्रों का उपर्युक्त निजी निवेशकों के लिये खोल देने से आर्थिक गतिविधि में वृद्धि होगी और कुल मिलाकर मध्यम से दीर्घावधि तक अर्थव्यवस्था, रोज़गार और कर-राजस्व पर लाभकारी प्रभाव पडे़गा।
दूरसंचार और पेट्रोलियम जैसे अनेक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार समाप्त हो जाने से अधिक विकल्पों और सस्ते तथा बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं के चलते उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी।
निजीकरण से संबंधित समस्याएँ,÷सार्वजनिक उपक्रमों के अनेक लाभ हैं,इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता,कि निजी क्षेत्र की अपेक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के अधिक आर्थिक, सामाजिक लाभ हैं,और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में निजीकरण की कई कठिनाइयाँ हैं। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की संकल्पना की गई है, सैद्धांतिक तौर इन विचारों का निजीकरण की प्रक्रिया से मतभेद होता है।
निजीकरण की प्रक्रिया की सबसे बड़ी कठिनाई यूनियन के माध्यम से श्रमिकों की ओर से होने वाला विरोध है,वे बडे़ पैमाने पर प्रबंधन और कार्य-संस्कृति में परिवर्तन से भयभीत होते हैं।
निजीकरण के पश्चात् कंपनियों की विशुद्ध परिसंपत्ति का प्रयोग सार्वजनिक कार्यों और जनसामान्य के लिये नहीं किया जा सकेगा।
निजीकरण द्वारा बड़े उद्योगों को लाभ पहुँचाने के लिये निगमीकरण प्रोत्साहित हो सकता है जिससे धन संकेंद्रण की संभावना बढ़ जाएगी।
धन संकेंद्रण और व्यापारिक एकाधिकार की वजह से बाज़ार में स्वस्थ्य प्रतियोगिता का अभाव हो सकता है।
कार्यकुशलता औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं का एकमात्र उपाय निजीकरण नहीं है। उसके लिये तो समुचित आर्थिक वातावरण और कार्य संस्कृति में आमूल-चूल परिवर्तन होना आवश्यक है। भारत में निजीकरण को अर्थव्यवस्था की वर्तमान सभी समस्याओं को एकमात्र उपाय नहीं माना जा सकता।
वर्तमान में वैश्विक स्तर पर चल रहे,व्यापार युद्ध और संरक्षणवादी नीतियों के कारण सरकार के नियंत्रण के अभाव में भारतीय अर्थव्यवस्था पर इनके कुप्रभावों को सीमित कर पाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है।
निजीकरण के पश्चात् कंपनियों का तेज़ी से अंतर्राष्ट्रीयकरण होगा और इन दुष्प्रभावों का प्रभाव भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
निष्कर्ष:वर्तमान में भूमंडलीकरण के प्रभावों के कारण गतिशील अर्थव्यवस्था का स्वरूप और अर्थव्यवस्था में कार्य। निष्पादन, कॉर्पोरेट शासन के साथ-साथ NPA जैसी समस्याओं के कारण सरकार द्वारा निजीकरण को प्रोत्साहित किया जाना अपरिहार्य हो गया है। इसलिये सरकार को इस कदम के साथ-साथ सामाजिक और सार्वजनिक हितों पर भी ध्यान देना अतिआवश्यक है, जिससे भारतीय संविधान की प्रस्तावना के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु एक सकारात्मक कदम उठाया जा सके।
“निजीकरण का प्रयोग राजस्व घाटे से निपटने की बजाय संरचनात्मक सुधार हेतु किया जाना चाहिये।” निजीकरण से जुड़े मुद्दों का समग्र विश्लेषण करते रहने की आवश्यकता है।
रुमसिहं राष्ट्रीय अध्यक्ष लेबर पार्टी आफ इंडिया
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