🌻धम्म प्रभात🌻
"इमस्मिं सति इदं होति,
इमस्मिं असति इदं न होति।"
अर्थात-
इस कारण के होने से यह परिणाम होगा।
इस कारण के नहीं होने से यह परिणाम नहीं होगा।
कौन से कारण?
चित्त पर तृष्णा जन्य विकार होंगे तो दु:ख होगा।
चित्त तृष्णा रहित होगा तो दु:ख अपने आप दूर हो जायेगा।
यह प्रकृति है, यह नियम है।
तृष्णा से भवचक्र चलता है। तृष्णा निरूद्ध हो गई तो धम्मचक्र चलता है।
कोई बुद्ध इन नियमों को बनाते नहीं। कोई बुद्ध इनमें परिवर्तन करते नहीं। कर भी नहीं सकते। बुद्ध हुए माने प्रकृति के सनातन नियमों को प्रत्यक्ष अनुभूति द्वारा जान गए और जान कर स्वयं विकार विमुक्त हो गए। ऐसे व्यक्ति कोई भी हो, यही सिखाएंगे कि शील, समाधि, प्रज्ञा द्वारा दु:खसमुदय के कारणों-राग, द्वेष आदि को नष्ट कर दो और दु:खविमुक्ति की अवस्था का साक्षात्कार कर लो।
तथागत गौतम बुद्ध ने यही शील, समाधि और प्रज्ञा ही सिखाया।
गौतम बुद्ध के पहले २७ बुद्ध हुए थे,उन सभी ने यह धम्म सिखाया।
इति सीलं,
इति समाधि,
इति पञ्ञा ।
यह शील है,
यह समाधि है,
यह प्रज्ञा है।
एस धम्मो सनन्तनो-
यह सनातन धम्म है।
नमो बुद्धाय🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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