एकसमान सांस्कृतिक क्रांति क्यों जरूरी है ?
जातिभेद-जातिप्रथा स्वयं बहुजन समाज ही समाप्त कर सकता है।
चीन जापान रूस जर्मनी फ्रांस सउदी अरब थाई
लैंड श्रीलंका आदि विभिन्न देशो मे उनके अपने देश मे 80--90--95 प्रतिशत जनता की एक समान भाषा, एक समान संस्कृति है। इन देशों की बहुसंख्यांक जनता की भाषा और संस्कृति एक जैसी होने के कारण उनमे सच्चा भाईचारा ,समानता एवं एकता की प्रबल भावना हमेशा बनी रहती है इसलिए वे हमेशा सामाजिक स्वातंत्र्य समता भाईचारा प्रगति व विकास के मार्ग पर अग्रसर है। लेकिन उच्चजाति के वर्णभेद व ब्राह्मणवाद के कारण भारत ही दुनिया मे एक ऐसा देश है जहाँ 85% बहुजन मूलनिवासी समाज मे विभिन्न क्षेत्र के विविध लोगों की, पासपडोस के भी लोगों की भाषा और संस्कृति अलग अलग है । उनमे जातिय भेदभाव व असमानता की भावना कुटकुट कर भरी होती है जिससे भाईचारा व आपसमे विवाह संबंध तो होते ही नही है। विविधता मे एकता केवल दिखावे की होती है । वास्तव मे विविधता मे भेदभाव और शोषणवाद ही जादा फैलता फुलता है। भारतीय संविधान के कारण देश मे एकता सहिष्णुता सहजिवन जरूर है , लेकिन सामाजिक समता ,सामाजिक भाईचारा , भिन्न जाति मे विवाहसंबंध , सामाजिक एकता कभी निर्माण नही हुई है आज भी। विभिन्न भाषाओं के देश मे बहुजन समाज मे अब हिंदी भाषा सर्वसमावेशक बन रही है। बहुजन समाज को आपसी संबंध बढ़ाने मे इसका जरूर लाभ होगा।
यदि 85% मुलनिवासी बहुजन समाज मे सामाजिक धार्मिक राजनितिक सांस्कृतिक मजबूत एकता निर्माण करनी है तो संपूर्ण बहुजन समाज की एकसमान संकृति Uniform Culture निर्माण करनी ही होगी जो प्राचिन काल मे हमारी अपनी द्रविडसंस्कृति, नागसंस्कृति, श्रमणसंस्कृति , बौध्दसंस्कृति थी। मनुवाद ब्राह्मणवाद ने इसे कपट धूर्तता हत्या आक्रमण संहार ब्राह्मणीकरण से नस्ट कर दिया था। अब हमे अपनी प्राचिन मानवतावादी बौध्द संस्कृति को फिर से स्थापित करना होगा। संपूर्ण मुलनिवासी बहुजन समाज के डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर महान प्रेरणास्त्रोत , आदर्श महापुरूष व मुक्तिदाता है। बाबासाहेब आंबेडकरने ने हमे हमारी प्राचिन प्रगत मानवतावादी महान बौद्ध संस्कृति दी है जिसे हम सभी ने अपने मुक्ति प्रगति विकास के लिए निःसंकोच स्विकार करना ही चाहिए। हमारे ही शोषणकर्ता मनुवाद हिंदूवाद के हमने गुलाम कभी नही रहना चाहिए। विभिन्न संतो, पंथो, मतो , गुटो मे बटे कटे पिटे बिखरे रहना पूर्णता छोड़ देना ही चाहिए। तभी हम 85% मुलनिवासी बहुजन शक्तिशाली बन सकते है और अपनी सारी मुस्किल समस्याए आसानी से सुलझा सकते हेै। मानवतावाद के लिए कार्य करनेवाले सभी संतो महंतो सद्गुरूओ का हम सबने आदरसम्मान करना ही चाहिए, उनके अच्छे विचारों का पालन भी जरूर करना चाहिए। लेकिन अनेक भिन्न भिन्न संतो पंथो मतो जाति गूटो मे बटे कुटे कटे पिटे चिपके बिखरे कभी नही रहना चाहिए। यही बिखराव हमे आपस मे दुरावा पैदा करके वैवाहिक भेदभाव निर्माणकर कमजोर शक्तिहिन दुर्बल गुलाम बनाता है। इस बात को हम सभी हमेशा ध्यान मे रखे। वरना हमारे सारे प्रयत्न व्यर्थ जाते रहेंगे।
राजनीतिक व अन्य मानव अधिकारों की समस्याओं के निवारण के लिए हमारे अन्य एस सी, एस टी, ओबीसी, बहुजन मूलनिवासी नामो से विविध संस्था संगटन कार्यरत है जो हमे एकसूत्रता मे जोड़कर संघर्ष कर ही रहे है। लेकिन एकसमान बौद्धसंस्कृति मे आने के लिए हमने अपने पुराने सभी अंधविश्वास, पाखण्ड, कुप्रथाए कुरीतिया कुसंस्कार पूर्णता छोड़कर त्यागकर हमारे उध्दारकर्ता आधुनिक बुद्ध बाबासाहाब आंबेडकर ने दी हुई 22 प्रतिज्ञाओं का पुर्णता पालन करना चाहिए तभी हम एकसमान संस्कृति के सर्वसमावेसक भावना से एक हो पायेंगे और हमारे बहुजन समाज की विभिन्न जातियों मे आपसी भाईचारा निर्माण होकर आपसी ' अरेंज मैरिजेस ' निरंतर होते रहेंगे जिससे जातिभेद व जातिप्रथा समूल नस्ट होने मे पूर्णता मदत मिलेगी। संपूर्ण भारत फिर से बौद्धमय, बुद्धिवादी, विकसित बनेगा। हमने व्यर्थके पूजापाठ, आरती,भजन संगीत, मनोरंजक कार्यक्रमो, ध्यान विपष्यना शिबिर, जयंती जत्रा यात्राओं मे व्यर्थ मे अपना और समाज का धन समय बर्बाद नही करना चाहिए। धन और समय का सदुपयोग विद्यार्थीयों के अध्ययन करीअर विकास और समाज संगठन , समाज की प्रगति पर करना चाहिए। हम सभी ने "एकसमान बौद्धसंस्कृति" , एकसमान आदर्श तत्व प्रणाली, एकसमान विचारधारा का स्विकार करने व पालन करने और व्यापक प्रचार प्रसार करने पर जादा ध्यान देना चाहिए। न्याय स्वातंत्र्य समता भाईचारा नैतिकता (शिल) बुद्धिवाद विज्ञानवाद (प्रज्ञा) जनकल्याण (करूणा) मानवतावादी विकास पर आधारित समाज व्यवस्था निर्माण कर संपूर्ण विश्व को धम्मराज्य बनाना यही तो एक समग्र बौद्धसंस्कृति है जिसे गौतम बुद्ध ने , बाबासाहेब आंबेडकर ने हम सब को दी है। राष्ट्रीय बौद्ध महासभा, भारतीय बौद्ध महासभा, दि बुद्धिस्ट सोसायटी आफ इंडिया यह सभी यही कार्य करते जा रहे है। हमारी विविध सभी दलित पिछडे बहुजन बौद्ध आंबेडकरी संस्था संगठनों ने अपने अपने क्षेत्र मे जिला , तहसिल ,ब्लाक स्तर पर चार पांच अच्छे जानकार कर्तृत्ववान प्रचारकों की टीम बनाकर निरंतर ग्राम ब्लाक क्षेत्र मे "एकसमान बुद्धिस्ट कल्चर " के निर्माण के लिए प्रचार, प्रसार करते रहे , धम्मदीक्षा व मानसिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कार्य करते रहे, प्रशिक्षण के लिए विशेष आयोजन भी करते रहे। अपनी जवाबदारी व कर्तव्य जानिवपूर्वक करते रहे । देश के छः लाख गावों की बहुजन समाज की सभी छः सात हजार जातियों को बुध्द आंबेडकर 22 प्रतिज्ञाओं से जोड़ो जिससे सभी जातियो मे "एकसमान कलचर" निर्माण होने से जातिभेद- जातिप्रथा समाप्त होकर रहेगी । यह महत्वपूर्ण जवाबदारी राष्ट्रीय प्रांतिय तथा जिला कार्यकारिणी पर है जिसे वह अपनी पूरी सामर्थ्य से अपने जिला ब्लाक ग्रामीण क्षेत्र के प्रचारक बंधुओ का सहयोग लेकर व उन्हे सहयोग देकर दक्षतापूर्ण इमानदारी से पूर्ण करे । प्रचार के लिए आवश्यक बौद्ध आंबेडकरी साहित्य सभी प्रचारकोने अपनेपास अनिवार्य रखना चाहिए। सांस्कृतिक क्रांति लाने के लिए प्रचारक धम्मबंधु अपने सही सूझाव , अपनी मदत अवश्य दे। सड़ीगली लास(बाबा/नेता) पर जैसी हजारो लाखो मख्यिया भिनभिनाती है वैसे लोगों की भीड़ जमाने वाले यह कार्य नही है। इसके लिए त्याग परिश्रम साहस और कर्तव्य निभाने की तिव्र इच्छाशक्ति की जरूरत होती है। हमने, हमारी संस्था संगठनों ने महापुरूषों की जयंती जत्रायात्रा मंनोरंजनों तक ही सिमित नही रहना चाहिए। दो चार पांच लोगों की टीम बनाकर निरंतर गांव देहांत, ब्लाक तक जा जा कर, विविध कार्यक्रम आयोजित कर योजनाबध्द तरिकों से प्रचारप्रसार प्रशिक्षित करना चाहिए। आईए, हम सब मिलकर अपना कर्तव्य इमानदारी से पूरा करे ।
🙏अनिल रंगारी ☸