राष्ट्रमाता महारानी अहिल्याई के लोककल्याण के कार्य
भारत में जन्म लेने वाले अनेक महान रत्नों में से एक महान महिला रत्न राष्ट्रमाता महारानी अहिल्याई होलकर हैं।
उनका जन्म 31 मई 1725 को अहमदनगर जिले के जामखेड तालुका के छोटे से गांव चौंडी में हुआ था। अपने शासनकाल में उन्होंने जो लोक कल्याण के कार्य किए और पुरुष प्रधान संस्कृति पर विजय प्राप्त कर एक विधवा महिला होकार भी राज्य हातमे लेकर नियमित शासन और प्रशासन चलाया। वह महाराष्ट्र के लोगों के लिए ही नही तो समस्त भारत के लोगों के लिए बहुत ही सम्माननीय और गौरवपूर्ण है।
सोमनाथ मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करते समय सनातनी वैदिको ने मंदिर-मस्जिद विवाद खड़ा करके मस्जिद को तोड़कर मंदिर बनाने का प्रयास किया, लेकिन अहिल्याई ने हस्तक्षेप किया और मस्जिद को अक्षुण्ण रखते हुए मंदिर का निर्माण कराया। यह राष्ट्रमाता की धर्मनिरपेक्षता का अनुकरणीय उदाहरण है।
शरीफभाई नामक एक मुस्लिम योद्धा को सेनापति नियुक्त किया गया। उन्हें चंद्रावतों को हराने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई। विजयश्री प्राप्त करने के बाद, उनका विधिवत सम्मान और अभिनंदन किया गया और उनकी प्रशंसा की गई। शरीफभाई उन महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से थे जिन्हें अहिल्याई के साथ भोजन के पंगत में भोजन करने का सम्मान मिला। सोमनाथ मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करते समय सनातनी वैदिकों ने मंदिर-मस्जिद विवाद खड़ा कर मस्जिद को तोड़कर मंदिर बनाने का प्रयास किया, लेकिन अहिल्याई ने हस्तक्षेप कर मस्जिद को अक्षुण्ण रखते हुए मंदिर का निर्माण कराया। यह राष्ट्रमाता का धर्मनिरपेक्षता का अनुकरणीय उदाहरण है।
लोगों को नियमित काम मिलता रहे और कलाकारों की स्थापत्य कला जीवित रहे, इसके लिए उन्होंने सभी धर्मों के बीच सद्भाव के आदर्श का संकल्प लेते हुए मस्जिदों, दरगाहों और पीरों के जीर्णोद्धार और निर्माण के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की। उन्होंने खड़ेपीर, चांदवाड़ में नानावली दरगाह, बुखारी बाबा की दरगाह, चांदशाह दरगाह और कई पीर और मस्जिदें बनवाईं। मंदिरों का निर्माण कराया और पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। इन सभी की देखरेख के लिए स्थायी नियुक्तियां की गईं।
लोक कलाओं और कारीगरों को प्रोत्साहित किया। होलकर साम्राज्य में व्यापार, व्यवसाय और संचार की समृद्धि के लिए पक्की सड़कें बनाई गईं। पूरे भारत में सड़कें, पुल और इमारतें बनाई गईं। पूरे भारत में निर्माण कार्य निरंतर चलता रहा, ताकि लोगों को नियमित काम मिल सके। जिससे लोगों को निरंतर रोजगार मिलता रहा। ग्रामोद्योग को बढ़ावा देकर बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराया गया। सभी जातियों और धर्मों के लोगों को समान न्याय और रोजगार दिया गया। बेरोजगारों को काम और श्रम के लिए उचित दाम दिया गया। सर्दियों में गरीबों को गर्म कपड़े बांटे। रास्ते में जंगली इलाकों में भी यात्रियों के लिए खेत और बगीचे तैयार किए। दलितों, आदिवासियों, आवारा, मुक्त लोगों, ओबीसी और मुसलमानों को खेती के लिए जमीन दी गई। गरीबों के लिए मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई गईं। बेसहारा, अनाथ, विधवा और विकलांग जैसे असहाय लोगों का पुनर्वास किया गया। उनके लिए भोजनशाला और सदवर्त चलाए गए। धर्मशाला बनाई गई और उनके लिए मुफ्त आवास की व्यवस्था की गई।
पति की मृत्यु के बाद यदि विधवा के पास कोई पुत्र उत्तराधिकारी न हो या वह निःसंतान हो तो उसके पति की संपत्ति राजा, महाराजा और राजकुमारों द्वारा जब्त कर ली जाती थी। इससे ऐसी विधवाओं को जीवन यापन करने में कठिनाई होती थी। महिलाएं सम्मान के साथ जीवन यापन कर सकें, अपने पति की संपत्ति का आनंद ले सकें, इसके लिए अहिल्याई ने विधवाओं और निःसंतान महिलाओं को , 'संतान दत्तक उत्तराधिकार' का अधिकार दिया। ऐसी विधवाएं किसी भी बच्चे को गोद ले लेती थीं और वह उस समय की एकमात्र रानी थीं जिन्होंने महिलाओं को 'संतान-दत्तक उत्तराधिकार' के तहत अपने पति की संपत्ति का स्वतंत्र रूप से आनंद लेने का अधिकार दिया।
स्वराज्य में छुआछूत को समाप्त किया। वैदिक लोगों की पारंपरिक सती प्रथा और अंधविश्वास का विरोध किया। राज्य में शराब और दहेज पर रोक लगाई। ऐसे समय में जब चूल्हा-चौका और बच्चे ही महिलाओं का जीवन थे, उन्होंने महिलाओं की सेना खड़ी की और उनमें वीरता का भाव भरा। महिलाओं को पुरूष के बराबर का अथार्जनका सन्मान मिलने हेतू स्वयं रोजगार करणे का अधिकार बहाल किया।
स्वराज्य से भ्रष्टाचार को खत्म किया। उन्होंने उद्योग-धंधे बनाए और लोगों को रोजगार मुहैया कराया। उन्होंने श्रेष्ठ बुनकरों, कारीगरों और कलाकारों को राजकीय संरक्षण देकर प्रोत्साहित किया। तब से लेकर आज तक महेश्वर में बुनकर स्त्री पुरूषों द्वारा बनने वाली माहेश्वरी साड़ी पूरे भारत में प्रसिद्ध है।
व्यापारियों, यात्रियों, पर्यटकों, तीर्थयात्रियों, साहूकारों, जमींदारों और आम लोगों को लूटने वाले कुछ भील आदिवासी समूहों ने होलकर साम्राज्य में आतंक मचा रखा था। अहिल्याई ने घोषणा की कि वह अपनी इकलौती राजकुमारी का विवाह उस वीर योद्धा से करेंगी जो इन आतताइयों को परास्त कर राज्य में समुचित व्यवस्था करेगा। यह शर्त जीतने वाला व्यक्ति किसी भी जाति या धर्म का हो सकता था। वह राजकुमारी मुक्ता से उम्र में काफी बड़ा भी हो सकता था। वह गरीबी में जी रहा हो सकता था। जाति, धर्म और आर्थिक स्थिति से परे जाकर उन्होंने प्रजा की रक्षा के लिए इकलौती राजकुमारी, युवती को ही दांव पर लगा दिया। एक साधारण युवक यशवंत फणसे ने यह शर्त जीत ली। उसे उचित आदर और सम्मान देकर अहिल्याई ने राजकुमारी का विवाह यशवंत के साथ तय कर दिया।
अहिल्याई ने प्रतिबंधित गिरोहों के नेताओं द्वारा किए गए आतंकवादी कृत्यों के पीछे का कारण पता लगा लिया। जब उन्हें पता चला कि गरीबी और बेरोजगारी ही इन कृत्यों के पीछे मुख्य कारण हैं, तो उन्होंने शिकारियों को रक्षक का काम सौंप दिया और उन्हें मुख्यधारा में ले आईं। इस तरह स्वराज्य के माध्यम से राज्य में आतंकवाद समाप्त हो गया। राज्य में शराब और दहेज पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून पारित किया गया। भ्रष्टाचार को मिटाया गया। अवांछनीय रीति-रिवाजों और परंपराओं का विरोध किया गया।
गांव की महिलाएं झीलों और नदियों के किनारे कपड़े धोने जाती थीं। कभी-कभी वे महिलाएं जल समाधि ले लेती थीं। वैदिक विद्वानों ने कई झीलों और नदियों को धार्मिक महत्व दिया और तीर्थयात्राओं का आयोजन किया। उनमें शाही स्नान करने वाले कई श्रद्धालु अक्सर नदी की धारा में बह जाते थे। कुछ झीलों में डूब जाते और मर जाते। अहिल्या से भारतीयों का यह दुख देखा नहीं गया। इसलिए, उन्होंने पूरे भारत में ऐसे बहुत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानों पर झीलों के और नदी के किनारे घाट बनाए। उन्होंने तीर्थ स्थलों पर मेले लगाए। कई भारतीय वहाँ जाते रहते थे। वे गर्मी, सर्दी, हवा और बारिश से पीड़ित होते थे। कभी-कभी, कई बीमार पड़ जाते थे। यहां तक कि मर भी जाते थे। इस पीड़ा को देखकर अहिल्या ने गरीब तीर्थयात्रियों और भक्तों के लिए रहने की व्यवस्था करने हेतु पूरे देश में धर्मशालाएं बनवाईं। उन्होंने भोजन शालाएं चलाईं। इसके लिए उन्होंने सिर्फ स्वराज्य के बारे में नहीं सोचा, बल्कि उससे आगे बढ़कर पूरे भारत में सार्वजनिक सेवा के कार्य किए। यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उन्होंने इन सभी सार्वजनिक सेवा कार्यों को इस कार्य के लिए राज्य के खजाने का उपयोग किए बिना अपने निजी कोष से किया।
तीर्थयात्रियों, व्यापारियों, भक्तों और जनता को आसानी से पानी उपलब्ध कराने के लिए पूरे भारत में विभिन्न स्थानों पर कुएं, झील, बारव, टॉप बावड़ियां बनाई गईं। राहगीरों, यात्रियों और तीर्थयात्रियों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए जल-आपूर्ति शुरू की गई। यह जल नियोजन का एक अनुकरणीय उदाहरण है। यात्रियों और तीर्थयात्रियों को पानी उपलब्ध कराने के लिए गांवों के साथ-साथ दूर्गम क्षेत्रों में भी बराव, टॉप बावड़ी और कुंडों का निर्माण किया गया। नासिक-मुंबई राजमार्ग पर यात्रा करते समय यात्रियों को पानी उपलब्ध कराने के लिए अहिल्याओं द्वारा कसारा घाट के मध्य में एक टोकरी के आकार का टॉप बावड़ी कुआं बनाया गया था। इसे आज भी देखा जा सकता है। सन् 1818 में जब कैप्टन स्टुअर्ट केदारनाथ गए तो उन्होंने देखा कि अहिल्याबाई 3000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर एक दुर्गम क्षेत्र में, जहां मानव निवास का कोई चिह्न नहीं था, पत्थर की धर्मशालाएं और पानी के टैंक बना रही थीं। भोजनशालाएं, धर्मशालाएं, स्वास्थ्य विद्यालय, पंथशालाएं, राहगीरों के लिए विश्राम स्थल आदि की व्यवस्था की गई थी।
पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए सड़क के दोनों ओर तथा बंजर, बंजर भूमि और पहाड़ों पर वृक्ष लगाकर वृक्षारोपण जैसी गतिविधियां क्रियान्वित की गई थीं। किसान 20 पेड़ लगाते थे। उन्हें उनकी देखभाल करनी होती थी और उन्हें बड़ा करना होता था। इनमें से 11 पेड़ सरकार के और 9 पेड़ किसानों के स्वामित्व में होते थे। जिससे वृक्षारोपण आसानी से हो जाता था और मृदा अपरदन और पर्यावरण संतुलन आसानी से हो जाता था। सड़क के दोनों ओर तथा बंजर भूमि और पहाड़ों पर वृक्षारोपण जैसी गतिविधियां क्रियान्वित की गई थीं। इससे पर्यावरण का संतुलन आसानी से हो जाता था।
भारतीय शासन व्यवस्था में जो काम लोक निर्माण विभाग करता है, वही काम सैकड़ों साल पहले राष्ट्रमाता अहिल्या ने किया था। 'अगर जनता खुश है, तो हम खुश हैं', 'न्याय में देरी का मतलब है न्याय से इनकार करना।' ऐसा था अहिल्या का सिद्धांत। राष्ट्रमाता ने सामाजिक न्याय में समानता के आदर्श सिद्धांत को अपनाया था।
"शासक जनता के धन का मालिक नहीं है, बल्कि वह उनका ट्रस्टी है। उसे उस धन को बर्बाद करने का कोई अधिकार नहीं है।" अहिल्या का कितना बढ़िया दर्शन है।
विदेशी कवि जोनाबेली ने अहिल्या के काम से प्रभावित होकर 1849 में अहिल्या पर एक कविता लिखी। प्रसिद्ध कवि अनंत फंदी, माधव जूलियन और शाहिर प्रभाकर भी अहिल्या पर कविताएँ लिखने के लिए प्रेरित हुए।
प्रसिद्ध इतिहासकार सर जॉन माल्कम, वायसराय लॉर्ड एलनबरो जैसे अनेक पाश्चात्य एवं देशी लेखकों ने भी अहिल्याबाई के बारे में लिखते हुए उनके अनुकरणीय शासन एवं लोक कल्याण कार्यों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। पं. नेहरू, विनोबा भावे अहिल्याबाई के भारत भर में किए गए लोक कल्याण कार्यों से प्रभावित थे। ब्रिटिश लेखक लॉरेंस ने कहा है कि महारानी अहिल्याबाई विश्व में रूस की महारानी एलिजाबेथ और डेनमार्क की रानी मार्गरेट से भी श्रेष्ठ थीं।
गुणवान, ज्ञानवान एवं शिलवान 'अहिल्याबाई' एक ऐसी 'योद्धा' थीं, जो कठिन समय में घोड़े पर बैठकर हाथ में तलवार लेती थीं। वे संकट के समय साहस बनाए रखने वाली 'वीरांगना' थीं। वे राजसिंहासन पर बैठकर राज्य चलाने वाली 'रानी' थीं। वे लोगों के कल्याण के लिए काम करने वाली 'जनता की माता' थीं। वे एक ऐसी 'देशभक्त' थीं, जिन्होंने भारत को गुलाम बनाने की चाहत रखने वाले अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई। वे एक ऐसी 'राष्ट्रमाता' थीं, जिन्होंने समस्त भारतीय प्रजा को पुत्रवत के रूप मानकर सम्पूर्ण भारतीय राष्ट्र में जनहित के लिए कार्य किया।
राजमाता जीजाऊ का मातृत्व, राष्ट्रमाता अहिल्याई की कर्तृत्व एवंम क्रांतिज्योति सावित्रीमाई का नेतृत्व भारतीय समाज के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहेगा। विश्वविख्यात राष्ट्रमाता ने जाति, धर्म, पंथ, संप्रदाय, राज्य, साम्राज्य से परे जाकर सम्पूर्ण भारत में जनकल्याणकारी कार्य करके आदर्श शासन की मिसाल कायम की। महान क्रांतिकारी, विश्वरत्न, 'न भूतो न भविष्यति', विश्व में प्रथम आदर्श महिला प्रशासक के रूप में विश्व द्वारा सम्मानित राष्ट्रमाता महारानी अहिल्याई को उनकी 300वीं जयंती पर कोटि-कोटि नमन!
होमेश भुजाड़े नागपुर