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420 = मनुवाद के तीर से

 

.✍️📢 *जी करता है दिखा दूँ सीना चीर के*

 *कलेजा छलनी हुआ पड़ा है,*

 *मनुवाद के तीर से !!*


 *हमारे पूर्वज राक्षस और राक्षसों के,*

 *अवतार हो गये !!*

 *इस तरह हम चक्रवर्ती से कुर्मी ,*

 *और कुम्हार हो गये !!*


 *ये यूरेशियन भारत में शरणार्थी बन कर आये थे !*

 *रोटी भी हम लोगों से माँग कर खाये थे !!*

 *फिर धीरे-धीरे वो हमारे,*

 *कबीलों के सरदार हो गये !!*

 *इस तरह हम चक्रवर्ती से पाल और कलार हो गये !!*


 *हमारी संस्कृति और सभ्यता को मिटाया था,*

 *जान ना ले हकीकत इसलिए,*

 *हमारा इतिहास भी जलाया था !*

 *रहते थे जो फिरंगी मेहमान बन कर*

 *वो राजा, वजीर और सूबेदार हो गये !*

 *इस तरह हम चक्रवर्ती से कहार हो गये !!*


 *वैदिक सभ्यता थी इनकी !*

 *जो इंसान को इंसान ना समझे,*

 *वो धर्म नहीं ऐसा अधर्म था !!*

 *वर्णवाद और जातिवाद के कारण,*

 *समाज के टुकड़े हजार हो गये !*

 *इस तरह हम चक्रवर्ती से तेली*

 *नाई, लोधी और महार हो गये !!*


 *सरेआम बहन-बेटियों की इज्ज़त को ,*

 *नीलाम करवा दिया !*

 *बांध कर गले में हांड़ी और पीछे झाड़ू,*

 *आत्मसम्मान भी हमारा खत्म करवा दिया !!*

 *देख-देख हाल अपने समाज का,*

 *हम शर्मसार हो गये !*

 *इस तरह हम चक्रवर्ती से अहिरवार हो गये !!*


 *जिह्वा कटवाते थे,*

 *कानों में शीशा डलवाते थे !*

 *मर जाता था प्यासा एक अछूत,*

 *मगर ना उसको पानी पिलाते थे !!*

 *ऐसा गुलामी भरा जीवन पाकर,*

 *हम कुत्तों से भी बेकार हो गये !*

 *इस तरह हम चक्रवर्ती से रावत और*

 *कोरी और बरार हो गये !!*


 *"अपना दीपक खुद बनो" लिंगो दादा हीरा मोती कंगाली ने,*

 *सत्य की राह दिखाई थी !*

 *क्या होती है तर्क और विवेक की शक्ति,*

 *हम सब को बतलायी थी !!*

 *लेकर बुद्ध की शिक्षा "सम्राट अशोक"*

 *अरब देशों के पार हो गये !*

 *इस तरह हम चक्रवर्ती राजा से,*

 *केवल मौर्य हो गये !!*


 *कह गये सतगुरु रविदास "मन चंगा तो कठौती में गंगा" पढ़े हमारे समाज का हर एक बंदा !*

 *मधुमक्खियों की तरह रहो मिलकर ताकि,*

 *ले ना सके कोई तुमसे पंगा !!*

 *पाकर ऐसा रहबर, पाकर ऐसा सतगुरु*

 *परमात्मा के भी साक्षात्कार हो गये !*

 *इस तरह हम चक्रवर्ती से अहीर*

 *और लुहार  हो गये !!*


 *"बाबा साहेब" ने शिक्षा, संघर्ष और*

 *संगठन का गहरा नाता बताया था !*

 *लिख संविधान हर गुलाम को,*

 *गुलामी से मुक्त कराया था !!*

 *पर अब भूलकर बाबा साहेब को ,*

 *देवी-देवता तुम्हारे अपार हो गये !*

 *इस तरह हम चक्रवर्ती से चमार हो गये !!*


 *जय संविधान*📘 *जय विज्ञान*

*जय मूलनिवासी*


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