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दुनिया के बौद्धों की विरासत बुद्धगया का बहुत पुराना प्राचीन इतिहास है। कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ गौतम की ज्ञानस्थली तपोभूमि संबोधि प्राप्त स्थान है। चक्रवर्ती सम्राट अशोक महाराज ने वज्रासन Diamond Throne का निर्माण कराया था।


दुनिया के बौद्धों की विरासत बुद्धगया का बहुत पुराना प्राचीन इतिहास है। कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ गौतम की ज्ञानस्थली तपोभूमि संबोधि प्राप्त स्थान है। चक्रवर्ती सम्राट अशोक महाराज ने वज्रासन Diamond Throne का निर्माण कराया था।


बोधिसत्व से सम्यक संबुद्ध बने उस वृक्ष को बोधिवृक्ष कहा गया है।


बोधिमंड, संबोधि शब्दों का उल्लेख असोक महाराजा के सिलालेखों (शिलालेखों) में मिलता है।


जिस स्थान पर तीन मंजिला महाबोधि स्तूप मौजूद है। वहां पर पहले संबोधि स्तूप महाराज असोक द्वारा निर्मित किया गया था।

प्रथम शताब्दी में महाराज कनिष्क द्वारा निर्मित वर्तमान की इमारत है जो महाराज कनिष्क के पोते हुविष्क के समय पूरी होने का ऐतिहासिक उल्लेख मिलता है।


महाबोधि महाविहार मुक्ति का तीसरा आंदोलन जारी है। 1891 से अनागारिक धर्मपाल जी के द्वारा 1933 तक उसके बाद महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के साथ मिलकर 1949 को The BodhGaya Temple Act 1949 बना और संचालन जारी है। 


1991-92 में डॉ आंबेडकर जन्म शताब्दी वर्ष में नागपुर के भिक्खु डी संघरक्षित और भिक्खु सागतबोधि रंगाचार्य (जगदीप रंगारी, दि बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया और RPI प्रकाश आंबेडकर परिवार) के द्वारा महाबोधि महाविहार में कनिष्ठ ब्राह्मण पुजारी BTMC के ऋषिलाल मिश्रा के साथ हाथापाई हुई थी। पांच पांडव बताने वाले स्थान पर के कपड़े हटाए गए थे।


उस समय BTMC अध्यक्षा जिलाधिकारी गया श्रीमती राजबाला वर्मा IAS थी। महाबोधी महाविहार के अंदर गर्भगृह में महाराष्ट्रीयन आंबेडकरवादी बौद्धों के प्रवेश पर रोक लगाने के लिए पितल का गेट लगाया गया था।


उस समय महाबोधि महाविहार के बौद्ध पुजारी अधिक्षक Superintendent भंते ज्ञान जगत लगभग बीस वर्ष से कार्यरत थे। भंते ज्ञान जगत पहले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय BHU में उपाध्याय जी प्रोफेसर थे। श्रीलंका में किसी सेमिनार में बौद्ध भिक्खुओ की प्रतिष्ठा देख भंते बने और बोधगया मठ के तत्कालीन महंत के बलिया उत्तरप्रदेश के बचपन के मित्र होने के कारण महाबोधि महाविहार में सर्वेसर्वा बने हुए थे।


राजबाला वर्मा ने ही अधिक्षक Superintendent का पद समाप्त किया था और विश्व हिन्दू परिषद तथा कट्टरपंथी बामनों के संगठनों के मार्गदर्शक भंते ज्ञान जगत जी को विदेशी यात्राओं में बहुत अधिक व्यस्त रहने के कारण हटा दिया था। भंते आर्य नागार्जुन शुरेई ससाई जी ने भंते डी संघरक्षित और भंते सागतबोधि रंगाचार्य नागपुर को उनका आंदोलन में खर्चा (दिल्ली डॉ आंबेडकर भवन के दिवंगत भिक्खु विनय कीर्ति के अनुसार 33 हजार रुपए) देकर अपने हाथों में लिया था और अखिल भारतीय बुद्धगया महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन समिति का निर्माण नागपुर के इंदोरा बुद्ध विहार,  पोस्ट बेझनबाग के पत्ते से शुरू हुआ था। भदंत आर्य नागार्जुन शुरेई ससाई जी ने धम्मसेना के द्वारा सामनेर सामनेरी प्रव्रज्या कार्यक्रम शुरू किए थे। आगरा से भदंत आनंद महाथेरो, अलिगढ़ से भदंत करूणाकर महाथेरो भदंत आर्य नागार्जुन शुरेई ससाई जी के साथ प्रचार प्रसार कार्य में साथ थे।


बुद्ध गया से प्रोफेसर डॉ पी सी राय, मगध विश्वविद्यालय, प्राचीन भारत का इतिहास विभाग प्रमुख, सिरीमान कालीप्रसाद सेवानिवृत्त सैनिक (राजेश कुमार बौद्ध के पिताजी) गया रेलवे स्टेशन पर कार्यरत सिरी राजकुमार जी बुद्धगेरे निवासी ने महाबोधि महाविहार में भंते ज्ञान जगत द्वारा बोधिवृक्ष की मोटी डाली काट कर बेचने, पुरानी ग्रेनाइट की मुर्तियां और बौद्ध स्तूपों की बोधगया महंत के साथ मिलकर की गई तस्करी की खबरें नागपुर में भदंत आर्य नागार्जुन शुरेई ससाई जी के पास लेकर गये थे। नागपुर में पत्रकार वार्ता हुई थी और दीक्षाभूमि नागपुर से बुद्ध गया महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई। 


दादर चैत्य भुमि से आंदोलन का रथ निकाला गया। नागपुर के उद्यमी सिरीमान राजू लोखंडे ने अपना कारखाना बंद कर सभी कामगारों को रथ के साथ मुंबई रवाना किया था। ट्रक में बौद्ध उपासिका और उपासक दिल्ली के लिए रवाना हुए थे। चंबल घाटी में डाकुओं ने घेरा था और वे सभी दिल्ली के बोट क्लब पर इकट्ठा हुए थे। भंते करुणाकर मोटरसाइकिल से साथ थे और बोट क्लब दिल्ली में सभा मंच पर एडवोकेट प्रकाश राव आंबेडकर को चढ़ने नहीं दिया था। आंदोलन में भंते करुणाकर जी ने कुछ बैनर पोस्टर फाड़े थे, हल्ला हंगामा हुआ था। 

दिल्ली से मुक्ति आंदोलन की यात्रा पटना से राजगीर होते हुए बुद्ध गया आयी थी।


बुद्ध गया में महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन की यात्रा आना नहीं चाहिए इसके लिए महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया बुद्ध गया के भिक्खु प्रभारी भिक्खु बी पन्याराम जी (बुलथसिंहल पन्याराम) बंगाली भंते जी जो फिलहाल बुद्धगया में सबसे पुराने है भदंत अनुरूद्ध महाथेरो के नेतृत्व में एक डेलिगेशन तत्कालीन जिलाधिकारी सह-अध्यक्षा श्रीमती राजबाला वर्मा ने राजगीर को भेजा था।


भदंत आर्य नागार्जुन शुरेई ससाई जी के नेतृत्व में महासचिव भदंत आनंद महाथेरो और भदंत करुणाकर जी ने भेजे गए डेलिगेशन की बात नहीं मानी तब बुद्धगया में 144 धारा लगाई और महाबोधि महाविहार के प्रवेश द्वार से बहुत दूर तक बांस बल्लियों से आने जाने के रास्ते बंद कर दिए थे।

आगे का इतिहास बाद में लिखूंगा।


भदंत प्रज्ञाशील महाथेरो

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