ईसा से 600 साल पहले भारत में एक ऐसे dynamic person का जन्म हुआ था , जिसकी सोच से उद्भूत वैज्ञानिक दर्शन ने लंबा सफर पूरा करते हुए कार्ल मार्क्स तक पहुंच कर पूर्णता प्राप्त की, उस दौर में उन्होंने जो कह दिया, उसे विज्ञान सम्मत होते हुए भी कहने की हिम्मत बहुत कम लोग कर सके , उन्होंने बुद्धत्व प्राप्त करके ,,बुद्ध ,, नाम धारण किया , उनका साहस असीम है , उन्होंने अपने मानने वालों /अनुयायियों को कोई निर्देश नहीं दिए,अपितु सुझाव दिए , जरा गौर कीजिए , आज भी यह कहने के लिए कितने लोग हिम्मत जुटा पाएंगे ,
१----अति ( अति भोग एवं अति त्याग ) के मार्ग के बजाय मध्य मार्ग अपनाना उचित है,
२---- वीणा का तार कसो, तो टूट जाता है, ढीला करो तो ध्वनि नहीं निकलती ,बीच में रखने पर सुमधुर आवाज निकलती है,
३---- बौद्ध संघ के दरवाजे ब्राह्मण से शूद्र तक सबके लिए खुले हैं, मानव सभी समान है,
४---- कोई सन्यासी ,कोई बुद्ध , कोई तथागत मुक्ति का मार्ग नहीं बता सकता ,वह तुम्हें खुद खोजना है , "आत्म दीपो भव "
५---- यह मेरा अंतिम जन्म है, इसके बाद मेरा दूसरा जन्म नहीं होगा,
६----कोई देव नहीं , कोई ईश्वर नहीं ,कोई बुद्ध नहीं ,कोई तथागत नहीं ,अपना मार्ग स्वयं को खोजो ,
७----मेरे ज्ञान का इस्तेमाल उतना ही करो , जितना जरूरत हो, और आगे बढ़ो ,और अपने मार्ग को स्वयं खोजो ,
इतने बड़े वैज्ञानिक और दिखाई देने वाले ज्ञान को , आज लोगों को समझ पाना मुश्किल है , मगर उस दौर में दुनिया के बड़े क्षेत्र में यह ज्ञान तेजी से फैला ,और लोग इसका अनुसरण करने को तैयार हुए ,
मगर इसके साथ दिया गया अहिंसा का उपदेश हमलावरों के साथ संघर्ष में ,जहां-जहां ऐसा हुआ , पराजय का ही नहीं , विनाश का भी कारण बना, वर्तमान अफगानिस्तान ,पाकिस्तान, कश्मीर , शिनझियांग जैसे बौद्ध धर्म के बड़े इलाकों को न सिर्फ पराजय बल्कि इन क्षेत्रों से बौद्ध धर्म के विनाश का दंश भी झेलना पड़ा , अगर बौद्ध धर्म अपनी रक्षा के लिए खड्गहस्त होता तो फिर हमलावर,ईरान की सरहद पार करके , अफ़ग़ानिस्तान में कदम रखने का साहस न कर पाते,
यह सबक सीखने का मुकाम है
लम्हों ने खता की है ,सदियों ने सजा पाई है,
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