सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

महाबोधि महाविहार, बोधगया हिन्दूओं के अवैध कब्जे में है। हिन्दूओं के अवैध कब्जा छुडवाने की लिए बौद्धों के द्वारा आंदोलन लंबे अरसे से चल रहा है।

 


धम्म साथियो,

नमो बुद्धाय 


महाबोधि महाविहार, बोधगया हिन्दूओं के अवैध कब्जे में है। हिन्दूओं के अवैध कब्जा छुडवाने की लिए बौद्धों के द्वारा आंदोलन लंबे अरसे से चल रहा है। जब भारत में बौद्धों का अस्तित्व अदृश्य था तब श्रीलंका से अनागारिक धम्मपाल जी ने महाबोधि महाविहार मुक्त करवाने के लिए लड़ाई लड़ी थी। इस लड़ाई के इतिहास की जानकारी अब बौद्धों को हो गई है। 


1891 में अनागरिक धम्मपाल ने भारत स्थित बौद्ध गया के महाबोधि महाविहार की यात्रा की। यह वही जगह है जहाँ सिद्धार्थ गोतम को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। वे देखकर हैरान रह गए की किस प्रकार से पुरोहित वर्ग ने बुद्ध की मुर्तियों को हिन्दू देवी-देवता में बदल दिया है। इन विषमतावादियों ने तब बुद्ध महाविहार में बौद्धो को प्रवेश करने से भी निषेध कर रखा था।


भारत में बुद्ध धम्म और बौद्ध तिर्थ-स्थलों की दुर्दशा देखकर अनागरिक धम्मपाल को बेहद दु:ख हुआ। बुद्ध धम्म स्थलों की बेहतरीन के लिए इन्होने विश्व के कई बौद्ध देशों को पत्र लिखा। इन्होने इसके लिए सन 1891 में महाबोधि सोसायटी की स्थापना की। तब इसका हेड आफिस कोलंबो था। किंतु शीध्र ही इसे कोलकाता स्थानांतरित किया गया। महाबोधि सोसायटी की ओर से अनागरिक धम्मपाल ने एक सिविल सुट दायर किया जिसमें मांग की गई थी कि महाबोधि विहार और दूसरे तीन प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों को बौद्धो को हस्तांतरित किये जाए। इसी रिट का ही परिणाम था कि आज महाबोधि विहार में बौद्ध जा सकते हैं। परंतु तब भी वहां तथाकथित हिन्दुओं का कब्जा था , आज भी है और तब तक रहेगा जब तक भारत के  बौद्ध सोते रहेंगे।


अनागारिक धम्मपाल से शुरु हुए आंदोलन की चिनगारी आज भी बौद्धों में मौजूद है। भदन्त नागार्जुन ससाई सुरी के नेतृत्व में भी आंदोलन चला, आंशिक सफलता मिली लेकिन महाबोधि महाविहार मुक्ति नहीं हुआ, आज भी मनुवादीओं के कब्जे में है।  यह हकीकत सब जानते हैं। यह भी हकीकत है कि सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं 12- 13 साल से लंबित है, कोई सुनवाई नहीं हुई। अब २९ जुलाई २०२५ के दिन सुनवाई हो सकती है। 

विलंबित रिट की सुनवाई लंबित पड़ी थी। यह देखकर आयु आकाश लामा जी  बहुत दुःखी हुए। उन्होंने ने महाबोधि महाविहार मुक्त करवाने के लिए संकल्प लिया और सन २०२२ से आंदोलन को खड़ा करने का प्रयास किया। तब से आकाश लामा जी ने महाबोधि महाविहार मुक्त करवाने के लिए लोगों को जोड़ने का प्रयास शुरू किया, सरकार को ज्ञापन सौंपे, शान्ति मार्च निकाला। फिर भी सरकार ने कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिया। इसलिए १२.२.२०२५ से बोधगया में आंदोलन शुरू किया।  लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन चल रहा था। महाबोधि महाविहार की मुक्ति के लिए विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा में सवाल उठाए और बौद्धों की मांग स्वीकार करने के लिए सरकार पर दबाव डाला। आंदोलन सुपेर चल रहा था, देश के सभी राज्यों से समर्थन मिल रहा था। बौद्ध लोग स्वयंभू आंदोलन में शामिल हो रहे थे। बड़े बड़े नेता भी आंदोलन को समर्थन देने के लिए बोधगया आकर समर्थन दे रहे थे। बौद्धों की एकता ताकत बनी थी। लगता था की बौद्धों की एकता देख कर सरकार महाबोधि महाविहार मुक्त करके बौद्धों को सुप्रत कर सकते हैं। लेकिन, १२.०५.२०२५ के दिन जो हादसा हुआ - महाबोधि महाविहार में हिन्दू और बौद्धों के बीच तनाव हुआ और सामणेर विनयाचार्य को पुलिस पकड़ कर जैल में बंद कर दिया। इस मौके का फायदा उठाकर कुछ भिक्खु और राजकिय नेता अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए दांव पेंच खेलने लगे। महाबोधि महाविहार की मुक्ति के लिए नेतृत्व कर रहे आकाश लामा और भदन्त प्रज्ञा शील महाथेरो पर झुठा आरोप लगाना शुरू किया। लोगों को भ्रमित करने का प्रयास किया और दिल्ली में जाकर राष्ट्र व्यापी आंदोलन खड़ा करने के लिए नया संगठन बनाया। ऐसा करने से बौद्धों की एकता पर कुठाराघात हुआ और मनुवादी लोग खुश हुए, उनका मक़सद पूरा हुआ।


अब दो संगठन अलग-अलग आंदोलन कर रहे हैं - "ओल इन्डिया बुद्धिस्ट फोरम" और "बुद्धिस्ट समन्वय संघ" । 

ओल इन्डिया बुद्धिस्ट फोरम बोधगया में डट के बैठे हुए हैं। प्रशासन की ओर से अनेक अड़चनें पैदा की है। फिर भी भदन्त प्रज्ञा शील महाथेरो अपने प्रण पर अडीग है - जब तक महाबोधि महाविहार बोधगया की मुक्ति नहीं होती तब तक बोधगया में लड़ते रहेंगे। 

आकाश लामा और अन्य भिक्खु हार मानने वाले नहीं हैं, महाबोधि महाविहार मुक्त नहीं होगा तब तक आंदोलन जारी रहेगा। विरोधीओं के द्वारा मनगढ़ंत आरोप लगा कर बौद्धों के मन में शक पैदा करने का काम " नव गठित समन्वय समिति " के लोग कर रहे हैं।

सच तो यह है कि आकाश लामा और भदन्त प्रज्ञा शील महाथेरो और साथी भन्ते और बौद्ध उपासक लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन चला रहे हैं और दान में मिले धन का पारदर्शी उपयोग कर रहे हैं और समय-समय पर दान और खर्च का हिसाब देते रहे हैं।

बुद्ध धम्म के सच्चे अनुयाई उपासक और उपासिका ओल इन्डिया बुद्धिस्ट फोरम को सहयोग करते है और आखिर तक करते रहेंगे।

हमारा एक ही लक्ष्य होना चाहिए - महाबोधि महाविहार ( बोधगया) बौद्धों के हाथ में लेना है।


    बुद्ध सासन चिरंतिट्ठतु 

नमो बुद्धाय 

रमेश बौद्ध बैंकर 

अहमदाबाद ( गुजरात )


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तर प्रदेश सिविल जज परीक्षा (पी०सी०एस० जे)

  उत्तर प्रदेश सिविल जज परीक्षा (पी०सी०एस० जे) का परिणाम रैंक सहित सूची पर जरा गौर करें... 1.आकांक्षा तिवारी      रैंक 1  2.प्रतीक त्रिपाठी         रैंक 3 3.मीता पांडेय             रैंक 7 4.अनीमा मिश्रा           रैंक 13 5.सौरभ शुक्ला           रैंक 16 6.प्रशांत शुक्ला           रैंक 17  7.सौरभ पांडे              रैंक 20  8.ज्योत्सना राय          रैंक 21 9.रीचा शुक्ला             रैंक 24 10.रूचि कौशिक        रैंक 27 11.सौम्य भारद्वाज      रैंक 30  12.सौम्य मिश्रा          रैंक 34 13.वरूण कौशिक      रैंक 37  14.देवप्रिय सारस्वत    रैंक 38 15.सोनाली मिश्रा        रैंक 40  16.शिप्रा दुबे  ...

हनुमान_जयंती -- तथागत बुद्ध के पुत्र राहुल (हनुमान) के जन्मदिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।

  #हनुमान_जयंती तथागत बुद्ध के पुत्र राहुल (हनुमान) के जन्मदिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं। बोधिसत्व हनुमान वास्तव में बुद्ध पुत्र राहुल अर्थात बोधिसत्व वज्रपाणि है|         तथागत बुद्ध जब परिलेयक वन में निवास करते हैं, तब बंदर उन्हें मधु अर्थात शहद खिलाकर उनका सम्मान करते हैं ऐसी जानकारी हमें कपिचित जातक कथा में मिलती है| अनामक जातक कथा बताती है कि जब बोधिसत्व  राजकुमार अपनी महाराणी के साथ वन में विहार करते हैं, तभी समंदर का दुष्ट नागराजा उस महाराणी को उठाकर समंदर में अपने टापू पर भगाकर ले जाता है| महाराणी को मुक्त करने के लिए बोधिसत्व वानरराज और उनके सेना की मदद लेते हैं और महाराणी को नागराजा से मुक्त कर वापिस अपनी राजधानी लाते है| इस तरह, हनुमान से संबंधित कथाएं सबसे पहले हमें बौद्ध जातक कथाओं में मिलतीं हैं| भरहुत में बोधिसत्व वानर बुद्ध को मधु दे रहे हैं ऐसा शिल्प अंकित मिलता है| सन 251 में सोगदियन बौद्ध भिक्खु सेंघुई ने अनामक जातक कथा को चीनी भाषा में "लुई तु चि चिंग" नाम से अनुवादित कर दिया था| इससे पता चलता है कि, बोधिसत्व वानर का सबसे पहला जिक्र ब...

वो कौन VIP था जिसके साथ सोने से इनकार करने पर अंकिता को इतनी बड़ी सज़ा मिली?

  वो कौन VIP था जिसके साथ सोने से इनकार करने पर अंकिता को इतनी बड़ी सज़ा मिली?  क्या देश उस ‘VIP’ को पहले से जानता है?  उस VIP का नाम कभी बाहर क्यों नहीं आया? अंकिता भंडारी की हत्या इसलिए की गई क्योंकि उसने रिजॉर्ट में रुके किसी ‘VIP’ गेस्ट के साथ सोने से इनकार कर दिया था. महिला सशक्तिकरण?? 🤔🤨🤨😏