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साथियो, अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद का आज जन्मदिवस है। आज़ाद हिन्दुस्तान की मेहनतकश जनता की क्रान्तिचेतना के प्रतीक हैं।

 


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HSRA के कमाण्डर इन चीफ़ महान स्वतन्त्रता संग्रामी चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्‍मदिवस (23 जुलाई) के अवसर पर*

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साथियो, अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद का आज जन्मदिवस है। आज़ाद हिन्दुस्तान की मेहनतकश जनता की क्रान्तिचेतना के प्रतीक हैं। आज़ाद और अशफ़ाक़, बिस्मिल, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, भगवती चरण जैसे उनके साथी एक शोषणविहीन और समतामूलक समाज के लिए लड़ रहे थे। इनके दल हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसियेशन का जोकि आगे चलकर हिन्दुस्तान सोशेलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन के तौर पर विकसित हुआ का देश के स्वतन्त्रता संग्राम में अहम योगदान है। चन्द्रशेखर आज़ाद एचएसआरए के कमाण्डर इन चीफ़ बने। 


आज़ाद सांगठनिक कौशल, सूझ-बूझ और अदम्य साहस रखने वाले क्रान्तिकारी थे। काकोरी ऐक्शन के बाद क्रान्तिकारी संगठन के बिखरे हुए सूत्रों को जोड़कर उसके पुनर्गठन का काम उन्हीं के नेतृत्व में हुआ। उन्होंने अत्यन्त कुशलता, त्याग और साहस के साथ नौजवान क्रान्तिकारियों की टीम को संगठित, प्रेरित और सक्रिय किया। आज़ाद एक दृढ़ निश्चयी और विचारवान क्रान्तिकारी थे। किसी भी तर्कपूर्ण और नये विचार के प्रति वे सदा खुले रहते थे तथा पुराने रूढ़ विश्वासों और विचारों को त्यागने में वे पल भर की भी देर नहीं करते थे।


आज़ाद का जन्म बेहद गरीबी, अशिक्षा और धार्मिक कट्टरता के माहौल में हुआ था। भगतसिंह आदि से उम्र में वे केवल एक-दो साल ही बड़े थे। वे पुस्तकों को पढ़कर नहीं, राजनीतिक संघर्ष और जीवन संघर्ष में अपने सक्रिय अनुभवों से सीखते हुए ही उस क्रान्तिकारी दल के नेता बने जिसका लक्ष्य भारत में धर्मनिरपेक्ष, वर्गविहीन, समाजवादी प्रजातन्त्र की स्थापना करना था। आज़ाद भगतसिंह की तरह नास्तिक तो नहीं थे, लेकिन वे शचीन्द्र नाथ सान्याल जैसे वेदान्ती या आध्यात्मिक भी नहीं थे। धर्म को निजी विश्वास की चीज़ मानते थे और सच्चे धर्मनिरपेक्षवादी की तरह उनका यह पक्का विश्वास था कि राज्य को पूरी तरह धर्म से अलग किया जाना चाहिए।


भगतसिंह और भगवती चरण वोहरा जैसे शिक्षित और बौद्धिक युवाओं के क्रान्तिकारी दल में भर्ती के बाद इसका वैचारिक विकास तेज़ी के साथ हुआ। आज़ाद के क्रान्तिकारी साथियों शिव वर्मा, भगवान दास माहौर, सदाशिव मलकापुरकर आदि के संस्मरणों से पता चलता है कि आज़ाद दल के सभी दस्तावेज़ों, बयानों, परचों आदि पर ध्यानपूर्वक चर्चा करते थे और उनकी सहमति से ही वे जारी किये जाते थे। गम्भीर वैचारिक पुस्तकें साथियों से पढ़वाकर सुनते थे और उन पर चर्चा करते थे। 


आज़ाद फिरोज शाह कोटला के खण्डहरों में सम्पन्न हुई उस ऐतिहासिक बैठक में शमिल नहीं हो पाये थे जिसमें हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसियेशन का नाम बदल कर हिन्दुस्तान सोशेलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन किया गया था और समाजवाद को संगठन के लक्ष्य के तौर पर स्वीकार किया गया। लेकिन इस मुद्दे पर साथियों से उन्होंने पूरी चर्चा के बाद सहमति पहले ही दे दी थी। आज़ाद के क्रान्तिकारी साथी भगवान दास माहौर ने ‘यश की धरोहर’ में बिल्कुल ठीक लिखा है कि उनका जीवन और नाम “अशिक्षा, अन्धविश्वास, धार्मिक कट्टरता में पड़ी भारतीय जनता की क्रान्ति चेतना का प्रतीक” बन गया है।


आज भी देश की मेहनतकश जनता पूँजीवादी शोषण-उत्पीड़न की बेड़ियों में जकड़ी हुई है। हम प्रत्यक्ष विदेशी ग़ुलामी के शिकार तो नहीं है किन्तु देशी-विदेशी पूँजी की लूट और शोषण ने जनता का जीना मुहाल कर रखा है। देश की मेहनतकश जनता के दिलों तक आज़ाद के अधूरे सपनों को पहुँचाना आज हम छात्रों-युवाओं की ही ज़िम्मेदारी बनती है। उनकी महान शहादत से प्रेरणा लेते हुए उन सपनों को पूरा करने का संकल्प लेना ही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।

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