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माननीय महोदय सत्यता का आभास करने के लिए तथा गुलामों को गुलामी का अहसास करने के लिए बधाई।

 



माननीय महोदय सत्यता का आभास करने के लिए तथा गुलामों को गुलामी का अहसास करने के लिए बधाई।

दास!

यदि अपनी वैधानिक विधिक समस्या से भी अवगत कराए तो स्वामी उसे सुनने के बजाय दमनात्मक एवम दंडात्मक कार्यवाही कर दास को अज्ञातवास में 10- 12 वर्षों के लिए भेज दिया जाता है क्योंकि प्रशासनिक दृष्टि से कार्यवाही करने वाले ही अपनी सीट परिवर्तित कर न्यायिक दृष्टिकोण से उस पर बैठकर कार्यवाही करते है तथा मनमाने रूप से सालों साल प्रकरण की साशय सुनवाई तक नहीं करते है इसी कारण न्याय विभाग के अधिकारियों तथा कर्मचारियों को न्याय नहीं मिल पाता है किसी अन्य विभाग का कर्मचारी तथा अधिकारी होता तो उसे कब का न्याय मिल चुका होता इसके लिए आवश्यक है कि किसी अन्य स्वतंत्र अधिकरण का गठन होना चाहिए शीघ्र न्याय प्राप्त हो सके क्योंकि विलंब से मिला न्याय भी अन्याय के समान ही है।

      जब सालों साल में कोई न्यायप्रिय जस्टिस के समक्ष ऐसे विरले मामले आते है तो वह वास्तव में अपनी ही संस्था की वास्तविकत बखिया उधेड़ते हुए वास्तविक न्याय तथा निर्णय करता है किंतु ऐसे व्यक्ति भी ज्यादा दिन तक न्यायपालिका में बर्दाश्त नहीं कर पाते है उनके विरुद्ध भी  जमात सक्रिय हो जाती है देखते है माननीय जस्टिस महोदय कितने दिन मध्यप्रदेश हाइकोर्ट में विराजमान रहते है क्योंकि एक माननीय जस्टिस महोदय तो आगामी 09/08/2025 को सेवानिवृत होने वाले है दूसरे कब तक रहेंगे इंतजार कीजिए?

     क्योंकि अर्थशास्त्र का सिद्धांत है कि बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है।

    इस वक्तव्य को सुनकर एक प्रसिद्ध फिल्म का प्राचीन काल का दासता युग का एक अद्भुत डायलॉग है:-

"कि राणा के कानो को न सुनने की आदत नहीं है"

ठीक उसी तरह न्यायपालिका में भी इसी परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है भले भी मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश निर्देश की खुली धज्जियां उड़ाई जा रही है माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खुली अवमानना की जा रही हो यदि इस और आपने जरा भी ध्यानाकर्षण किया तथा तथ्यों से अवगत कराने का प्रयास किया तो कतिपय माननीय महोदय को शिमला मिर्ची लग जाती है। 

      मेरे द्वारा सही वास्तविक तथ्यों के संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट में माननीय उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश के प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध लगभग 4 अवमानना याचिका लगाई गई थी इसी कारण तो माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जारी दिशा निर्देश तथा प्रचलित विधि का खुला सामूहिक बलात्संग कर बिना सुने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का खुला उल्लंघन करते हुए निलंबन की अवस्था में विभागीय जांच में बिना आरोप प्रमाणित हुए विभागीय जांच लंबित रहते हुए जिन नियमों का हवाला दिया गया उस नियमों की परिधि में न आने के बावजूद, रातों रात नवीन नियम निर्मित कर दूसरे दिन ही अनिवार्य सेवानिवृत कर दिया गया किन्तु अब उस याचिका का विधिक व संवैधानिक प्रावधानों के तहत निराकरण करने तक की हिम्मत नहीं हो पा रही है।

     अवमानना याचिका लगाने का प्रभाव यह हुआ कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन होकर कई लोगों को लाभ भी प्राप्त होने लगा है किंतु अभी भी कई अनसुलझे मुद्दे बाकी है जिसके संबंध में निरंतर संघर्ष जारी है वह भी शीघ्र ही सुलझेंगे।

     सामंतवादी व्यवस्था का नियम है कि जिसका विधिक रूप से मुकाबला नहीं कर पाए उसका दमन कर दिया जाय यही कार्य मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में किया जाता है यदि वास्तव में विधिक रूप से मुकाबला करते तो पैंट खिसक कर नीचे आ जाती तथा अनिवार्य सेवानिवृत नहीं कर पाते जहां लगभग साढ़े सात साल बीत जाने के बाद अभी तक विभागीय जांच चालू नहीं कर पाकर प्रमाणित नहीं कर पाए जांचकर्ता अधिकारी जांच छोड़कर भाग जाए अर्थात रणछोड़ लाल बन जाए वे साढ़े सात पूर्व की गई अनिवार्य सेवानिवृति को विधिक रूप से नियमानुसार कैसे साबित कर पाएंगे।

        मुझे मालूम है कि मेरी याचिका का निराकरण शीघ्र होना शेष है यदि ऐसा कटु शब्दों में लिखा जाएगा तो शायद नुकसान हो किंतु बात नुकसान फायदे तथा सेवा में वापस आने का लोभ लालच नहीं है। 

       यह अद्भुत अलौकिक जीवन केवल अन्याय सहन करने तथा नौकरी एवम गुलामी के लिए थोड़े ही बना है।

"यूं तो सियासत से कोई अदावत नहीं

मगर जुल्म सहने की भी आदत नहीं।"

जय भारत जय संविधान।

             आर.के.श्रीवास

     जसेनि जिला न्यायाधीश नीमच

    40 जावरा रोड़ रतलाम 457001

               

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