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ज्ञान को बाँटने की भावना ही सच्चा सामाजिक कर्म है

 


ज्ञान को बाँटने की भावना ही सच्चा सामाजिक कर्म है


✍🏻 लेखक: दिनेश कुमार कुशवाहा


मैंने अपना बचपन पटना के अपने घर में ब्रह्मणीय (धार्मिक और आध्यात्मिक) वातावरण में बिताया।

घर-परिवार, आस-पास के लोग और मेरे मित्रों के परिवार — सभी में धार्मिक नियमों, रीति-नीतियों और आस्था का एक विशेष स्थान था। यह वातावरण मुझे बहुत कुछ सिखा गया। धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि संयम, सेवा और संस्कार भी है — यह मैंने वहीं सीखा।


जब मैं दिल्ली आया, तो यहाँ का वातावरण कुछ भिन्न था।

यहाँ जीवन का स्वरूप, सोचने का ढंग, लोगों की दिनचर्या — सब कुछ नया था।

लेकिन यही विविधता मुझे कुछ नया देखने, जानने और समझने का अवसर देती गई। मैं उत्सुक था, जिज्ञासु था — इसलिए जीवन की हर नई सीख को अपने भीतर समेटता गया।


कुछ समय बाद मेरी मित्रता बौद्ध मत मानने वाले साथियों से हुई।

उनसे मिलने, बात करने और उनके साथ समय बिताने पर बुद्ध के विचारों को नजदीक से समझने का मौका मिला।

मैंने देखा कि बुद्ध का दर्शन केवल एक धर्म नहीं, बल्कि मानवता का मार्गदर्शन है — जो जीवन के हर पहलू को संतुलित और शांतिपूर्ण बनाने की प्रेरणा देता है।


मैंने संतों, भगवानों, महापुरुषों और महात्माओं की शिक्षाओं का तुलनात्मक रूप से अध्ययन किया।

इस अनुभव से जो सबसे महत्वपूर्ण अंतर मुझे दिखाई दिया, वह यह था—


👉 बाकी सभी को जो ज्ञान, अनुभव या सिद्धि प्राप्त हुई, वे उसे अपने तक सीमित रखकर ही संतुष्ट हो गए।

लेकिन जब बात महामानव गौतम बुद्ध की आती है, तो उन्होंने जो भी अनुभव किया, जो भी ज्ञान प्राप्त किया — उसे समस्त मानवता के साथ बाँट दिया।

उनकी यह उदारता, करुणा और निःस्वार्थ सेवा ही उन्हें विशेष नहीं, 'अद्वितीय' बनाती है।


बुद्ध ने यह कभी नहीं सोचा कि ज्ञान बांटने से उनका कुछ कम हो जाएगा।

बल्कि उन्होंने दिखाया कि ज्ञान बांटने से वह और अधिक गहराता है, और ज्यादा फलदायक बनता है।


आज मैं भी अपने जीवन में यही प्रयास करता हूं —

👉 जब भी मुझे कहीं से कोई ज्ञान, अनुभव या नई जानकारी प्राप्त होती है, तो मैं उसे अपने तक सीमित न रखकर दूसरों तक पहुंचाने की कोशिश करता हूं।

मुझे लगता है कि शायद किसी को वह ज्ञान दिशा दे दे, किसी का भला हो जाए, किसी की सोच बदल जाए।


लेकिन दुख इस बात का होता है कि आज के समाज में अनेक लोग ऐसे हैं जिन्हें ज्ञान है, संसाधन है, अनुभव है — फिर भी वे उसे सिर्फ अपने या अपने परिवार तक सीमित रखते हैं।

ऐसे लोग बाहरी रूप से भले सामाजिक व्यक्ति होने का दावा करते हैं, लेकिन वास्तव में वे ज्ञान की ऊर्जा को रोक रहे होते हैं।

ज्ञान केवल तभी मूल्यवान बनता है, जब वह साझा किया जाए, जब वह दूसरों के जीवन में बदलाव लाए।


मैं मानता हूं कि

👉 सच्चा सामाजिक व्यक्ति वही है जो जो कुछ अच्छा जानता है, वह समाज के साथ बांटता है।

जो अपने अनुभवों से दूसरों को दिशा देता है।

जो दूसरों को आगे बढ़ाने में स्वयं को भी सफल मानता है।


इसी भावना से मैं अपने संगठन 'प्रकृति सेवा फाउंडेशन' के माध्यम से भी समाज के लिए कार्य करता हूं — पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, और मानवीय सेवा के क्षेत्रों में।


🌱 मैं चाहता हूं कि समाज में 'ज्ञान बांटने की संस्कृति' विकसित हो।

ताकि हम सिर्फ व्यक्तिगत तरक्की नहीं, सामूहिक विकास की ओर बढ़ सकें।

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लेखक परिचय:

दिनेश कुमार कुशवाहा — सामाजिक कार्यकर्ता, 

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