*शारीरिक गुलामी से खतरनाक मानसिक दासता*
देश की तरक्की के लिए हर एक व्यक्ति को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा, तभी देश का विकास होगा। इसके लिए सभी बुद्धिजीवियों को मिलकर समाज में अंधविश्वास, पाखंड और तमाम सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष की जरूरत है। हमारा देश सोने की चिड़िया था। खुशहाल और भोलाभाला देश। इसमें विदेशी व्यापार क्या करने आए। व्यापार के साथ उसकी नीयत बिगड़ गई। देखा कि यहां के लोग भोले-भाले हैं, इन्हें मूर्ख बनाए जा सकते हैं। बेवकूफ तो बनाए, लेकिन गुलाम भी बना दिए गए।
शारीरिक गुलामी से व्यक्ति ज्यादा समय तक गुलाम नहीं रह सकता। आज नहीं तो कल गुलामी से मुक्ति पा जाएगा, अगर मुक्त नहीं हुआ तो शरीर को त्यागने के बाद तो शारीरिक गुलामी से मुक्ति मिल ही जाएगा। इसलिए विदेशियों ने सोचा भारत के मूलनिवासियों को ज्यादा समय तक गुलाम बनाना है तो मानसिक गुलामी पर ध्यान देना चाहिए। और ऐसा ही किया। यहां के निवासियों को धार्मिक पाखंड, अंधविशास और सामाजिक बुराइयों में ढकेल दिया। इसके बाद
आज भी मानसिक गुलामी से नहीं निकल पाए।
*जागरूक करने वालों को लोग समझते हैं दुश्मन*
देश तो आजाद हो गया, लेकिन मानसिक गुलामी से अभी तक आजादी नहीं मिली है। हर घर अंधविश्वास रूपी बीमारी फैली है। लोग तर्क कम पाखंड ज्यादा करते हैं। और हमारी सरकार तर्क और वैज्ञानिक चेतना की बात करने वालों से डरती है या कहूं समाज को जागरूक करने वालों को ही समाज के दुश्मन समझती है।
*दिमागी गुलामी से जकड़ा समाज*
हमारा समाज दिमागी गुलामी से इतना जकड़ा हुआ है कि इससे निकालना बहुत कठिन काम है। इतना कठिन जितना सांप को गले लगाने में होता है। हर समय डर रहता है कि कहीं कांट न ले। हजारों साल से गुलामी की आदत को छुड़ाना बहुत ही कठिन काम है। इसलिए समय-समय पर थोड़ा-थोड़ा इलाज की जरूरत है। इलाज नहीं कर सकते तो उस बीमारी को बढ़ाने वाली दवाई तो न दें।
*खाने के नहीं जलाने के लिए तेल*
पाखंड और अंधविश्वास महंगे हैं फिर भी लोग इसे करते हैं। खाने के लिए दाना नहीं है। पेट को काट कर जिंदगी चला रहे हैं, लेकिन पाखंड और अंधविषास के लिए पैसा उधारी लेकर करते हैं। बहुत से घर में सब्जी नहीं बनती, अगर बन भी जाए तो उसमें तेल की कमी होती है। लेकिन तेल से दीया जरूर जलाया जाता है। छत्तीसगढ़ में कुपोषित बच्चों की भारी संख्या है। फिर भी लोग पाखंड और अंधविश्वास को नहीं छोड़ रहे हैं। खाने को तेल नहीं, जलाने को दीपक। जितना भी पाखंड की सामग्री है, सभी खाने-पीने की सामग्री से ज्यादा मंहगी हैं। लेकिन लोग पेट काटकर नशा करते हैं, शराब पीते हैं या अंधविश्वास करते हैं। लोग खाने-पीने और मूलभूत जरूरत से ज्यादा पाखंड और शराब के नशे को ज्यादा जरूरी समझते हैं।
*अंधविश्वास के खिलाफ जागरूक करने की जरूरत*
नशे को लेकर जागरूकता की जरूरत है। ठीक इसी प्रकार पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है। तभी बेहतर समाज बनेगा। हमारा देश तरक्की करेगा।
*टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (एएसओ)*
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