*~~~~वे बन्द करें स्कूलों को~~~~*
*~~~तुम लौटो अपनी काया में~~~*
*ये काँवड़िये क्या जाली हैं, लगते तो बड़े बवाली हैं।*
*ये काँवड़िये का भेष धरे, क्या गुण्डे और मवाली हैं।*
कुछ तो हैं काफी पढ़े लिखे, लाचार उन्हें कर डाला है।
भण्डारे इतने खोल दिये, तब मुँह में गया निवाला है।
*घर द्वार छोड़ कर पढ़े लिखे, कुछ दिन भूखे ही काटे हैं।*
*जब से हाँडी परवान चढ़ी, तब से घर घर सन्नाटे हैं।*
वे बन्द करें स्कूलों को, तुम लौटो अपनी काया में।
इतिहास पुराना पलट चलो, जो छिपा लिया है छाया में।
*स्तूप छिपा कर देख लिया, शिव लिंग की कथा बखान चले।*
*कुछ ही तो बने कथा वाचक, अब कितने तीर कमान चले ?*
ये है प्रजाति परजीवों की, ये श्रम से रहते दूर सदा।
ये छिप कर मूल निवासी को, कर देते हैं मजबूर सदा।
*ये कथा सुनाते हैं झूठी, षड्यंत्र चलाते रहते हैं।*
*तुम सबको भटका कर अपनी, हर ज्योति जलाते रहते हैं।*
तुम दौड़ रहे हो पैदल ही, तुम संघर्षों के आदी हो।
कुछ मन्नत ले कर आये हैं, उनकी जल्दी से शादी हो।
*पुरखों की कठिन तपस्या का, तुमने श्रम जाना नहीं अभी।*
*इतना अन्धा कर डाला है, सच को भी माना नहीं कभी।*
उनकी बातें मत ध्यान धरो, वे तो भटकाने वाले हैं।
दो चार पीढ़ियों में देखा, उल्टा लटकाने वाले हैं।
*षड्यंत्र रचाने वाले तो, रहते हर दिन ही खाली हैं।*
*तुम उनकी रोजी छीन रहे, ये तो सीधे मुँह गाली है।*
*ये काँवड़िये क्या जाली हैं, लगते तो बड़े बवाली हैं।*
*ये काँवड़िये का भेष धरे, क्या गुण्डे और मवाली हैं।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
*1-* वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी *2700 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।
*2-* कृपया रचनाओं को अधिक से अधिक अग्रसारित करें।
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