🌻धम्म प्रभात🌻
"चत्तारी ठानानि नरो पमत्तो,
आपज्जति परदारूपसेवी।
अपुञ्ञलाभं न निकामसेय्यं,
निन्दं ततियं निरयं चतुत्थं। ।"
- धम्मपद: निरय वग्गो
अर्थात- प्रमादी एवं परस्त्रीगामी मनुष्य की चार गतियां हैं-
अपुण्य का लाभ,
सुख से न निद्रा,
तीसरे निन्दा और
चौथे नरक ( दु:ख )
अनाथपिण्डिक श्रेष्ठी के खेमक नाम का एक स्वरूपवान भानजा था। उसे स्त्रियां देखते ही मोहित हो जाती थी। वह भी स्त्रियों के साथ रमण करने में रत रहता था। अनैतिक कर्म करते हुए वह पकडा जाता था। राजा के कर्माचारियों उन्हें तीन बार पकड कर राजा के सामने हाजिर किया गया। वह अनाथपिण्डिक के भानेज होने के कारण राजाने उसे सजा नहीं दी। उसे छोड दिया। महाश्रेष्ठी अनाथपिण्डिक ने देखा की उनका भानेज अनैतिक कर्म करता है और सुधर ने का नाम नहीं लेता है। यह जानकर खेमक को भगवान के पास ले गया। श्रेष्ठी ने खेमक की बुरी आदत के विषय में भगवान को बताया। तथागत उस समय जेतवन महाविहार में थे। उन्होंने खेमक को उपदेश देते हुए कहा-
परस्त्रीगमन करने वाला प्रमत मनुष्य चार स्थानों को प्राप्त करता है- अपुण्य, लाभ- हानि, पाप का भागीदार, मनचाही नींद का अभाव, तीसरी निंदा और चौथा नरक याने दु:ख। ऐसे मनुष्य को अपुण्य लाभ, बुरी गति और भयभीत पुरूष की डरी हुई स्त्री की थोडी सी संगत प्राप्त होती है,किन्तु राजा भारी दंड नियत करता है, इसलिए मनुष्य दूसरे की स्त्री का सेवन न करे ।
हजारों साल पहले, बुद्ध के समय नैतिक जीवन पर बहुत भार दिया जाता था। सामान्यत: लोग नैतिक जीवन व्यतीत करते थे। लेकिन, अपवाद के स्वरूप खेमक जैसे लोग भी होते थे, वे अनैतिक जीवन जीते था। उनको सुधारने के लिए बुद्ध के उपदेश लाभदायक सिद्ध हुए ।
मनुष्यों के लिए नैतिकता धम्म है, अनैतिकता अधर्म ।
नमो बुद्धाय🙏🙏🙏
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