#पुत्ता_मत्थि_धनम्मत्थि_इति_बालो_विहञ्ञति।
#अत्ता_हि_अत्तनो_नत्थि_कुतो_पुत्ता_कुतो_धनं॥
।। बाल वर्ग - धम्मपद ६२ ।।
'यह पुत्र मेरा है', 'यह धन मेरा है' - ऐसा सोचकर मुर्ख व्यक्ति का जीवन दुखमय हो जाता है । अरे ! जब मनुष्य स्वयं अपने आप का नहीं है तो कहाँ से उसका पुत्र और कहाँ से उसका धन होगा ।
हम सदैव गलतफहमी में रहते हैं की हम सदा के लिए जीवित रहेंगे । अतः हमारी सांसारिक चीजों में आसक्ति हो जाती है जबकि सच्चाई यह है की जीवन तो पानी के बुलबुले की तरह है । वह जल्दी ही फुट जाएगा ।
संकलन:- भिक्खु धम्मशिखर
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